किसी भी शासकीय विभाग में कार्य करने से पहले उस विभाग के कुछ नियम होते हैं जिनकी शपथ या प्रतिज्ञा लेना व्यक्ति का कर्तव्य होता है। उस विभाग का ऐसा लोकसेवक आशा करता है कि विभाग के कर्मचारी जो वैध शपथ या प्रतिज्ञा है उसका पालन करे। अगर कोई व्यक्ति ऐसी शपथ या प्रतिज्ञा मानने से इनकार या माना करता है तब वह भी अपराधी माना जाता है जानिए।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 178 की परिभाषा:-
जो कोई व्यक्ति सत्य कथन की प्रतिज्ञा या विधि से वैध किसी शपथ को ऐसे अधिकारी के सामने जो उसका अधिकार रखता है, उसके सामने शपथ या प्रतिज्ञा लेने से इनकार या जानबूझकर माना करता है वह व्यक्ति इस धारा के अंतर्गत दोषी होगा।
नोट:-1.ऐसी शपथ या प्रतिज्ञा के लिए माना करना जो विधि के नियम से अवैध हो उसके लिए माना करना दण्डनीय अपराध नहीं है।
2.न्यायालय के समक्ष शपथ लेने से इनकार करना इस धारा के अंतर्गत अपराध नहीं है। इसके विरुद्ध दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 345 के अंतर्गत संक्षिप्त परीक्षण या धारा 195 के अंतर्गत दाण्डिक कार्यवाही की जा सकती है।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 178 के अंतर्गत दण्ड का प्रावधान:-* इस धारा के अपराध किसी भी प्रकार से समझौता योग्य नहीं होते है। यह अपराध असंज्ञेय एवं जमानतीय अपराध होते हैं। इनकी सुनवाई जिस न्यायालय में अपराध किया गया है वहाँ पर या अपराध न्यायालय से अलग किया गया है तब कोई भी मजिस्ट्रेट के पास सुनवाई की जा सकती है। सजा - 6 माह की कारावास या 1000 रु जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जा सकता है।
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बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 |
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