सबसे पहले हम आपको बताएंगे कि कूटकरण क्या होता है जानिए, किसी एक वस्तु को दूसरी वस्तु से इतनी मिलती-जुलती बनाना कि जिससे व्यक्ति को धोखा हो सके या धोखा खाने की संभावना हो। कूटकरण के लिए यह आवश्यक नहीं है कि बनाई गई नकली वस्तु ठीक वैसी ही हो यदि इस प्रकार निर्मित नकली वस्तु को देखकर उसे असली समझने का धोखा दिया जा सके तो इसे इस धारा के अनुसार कुटकरण कहा जाएगा। तात्पर्य यह है कि किसी वस्तु या सिक्के को कुटकृत तभी कहा जा सकता है जब उसमे धोखा दे सकने के लिए पर्याप्त सादृश्यता हो।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 232 की परिभाषा:-
जो कोई व्यक्ति भारतीय सिक्के का जानबूझकर कूटकरण करेगा या भारतीय सिक्के का कूटकरण करने की कोशिश भी करेगा वह इस धारा के अंतर्गत दोषी होगा।
【नोट:-1. सिक्के से तात्यर्य सिक्का धातु का होना चाहिए।
2.सिक्के का उपयोग धन के रूप में होना चाहिए, पदक सिक्का नहीं।
3. सरकार या संप्रभु की प्राधिकार-शक्ति के अंतर्गत स्टामिप्त जारी की गई धातु को सिक्का कहा जाता हैं।
4. भारतीय सिक्के में वर्तमान में प्रचलित सिक्के तथा ऐसे सिक्के जो किसी समय धन के रूप में भारत में प्रयुक्त होते थे। दोनो का ही समावेश है।】
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 232 में दण्ड का प्रावधान:-
इस धारा के अपराध किसी भी प्रकार से समझौता योग्य नहीं होते हैं। यह अपराध संज्ञेय(गम्भीर) एवं अजमानतीय अपराध होते हैं। इनकी सुनवाई सेशन न्यायालय द्वारा की जाती है। सजा- आजीवन कारावास या दस वर्ष की कारावास और जुर्माना से दण्डित किया जा सकता है।
बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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