कोई व्यक्ति अपराध करता है या नहीं करता है यह तो वह स्वयं ही बता सकता है क्योंकि कभी कभी आँखों का देखा भी गलत साबित हो जाता है। इसलिए पुलिस कभी कभी बेगुनाह व्यक्ति को भी अंदर कर देती हैं और उनको मार-मार कर झूठे बयान भी दर्ज करा लेती हैं ऐसा भी होता है पुलिस अधिकारी द्वारा इतनी मारपीट की जाती हैं कि व्यक्ति बीच में ही दम तोड़ देता है। ऐसे में पुलिस वाले के ऊपर किस धारा के अंतर्गत मामला दर्ज होगा एवं पुलिस वाले को आरोपी को हिरासत के समय इतनी मारपीट मारपीट करने का अधिकार हैं जानिए।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 330 एवं 331 की परिभाषा:-
धारा 330 :- अगर कोई व्यक्ति किसी बात की स्वीकृति के लिए किसी अन्य व्यक्ति को डराता धमकाता हैं या सामान्य मारपीट करता है। या कोई अधिकारी किसी व्यक्ति को किसी भी प्रकार की कोई काम करने के लिए यातनाएं देता है एवं मजबूर करता है तब ऐसा करने वाला व्यक्ति धारा 330 के अंतर्गत दोषी होगा।
धारा 331:- अगर कोई व्यक्ति अपनी या कोई अन्य स्वीकृति के लिए गम्भीर चोट पहुचाता हैं। या ऐसी यातनाएं देता है जिससे व्यक्ति की जान भी जा सके, या किसी काम करने के लिए मजबूर करता है तब वह व्यक्ति इस धारा के अंतर्गत दोषी होगा।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 330 एवं 331में दण्ड का प्रावधान:-
1. धारा 330 का अपराध संज्ञेय एवं जमानतीय होता है।इनकी सुनवाई प्रथम श्रेणी के मजिस्ट्रेट करते हैं। सजा- सात वर्ष की कारावास और जुर्माना से दण्डित किया जाएगा।
2. धारा 331 के अपराध संज्ञेय एवं अजमानतीय होते हैं, इनकी सुनवाई सेशन न्यायालय में होती हैं। सजा- 10 वर्ष की कारावास एवं जुर्माना।
उधारानुसार वाद:- आत्माराम बनाम महाराष्ट्र राज्य:- किसी व्यक्ति के कब्जे से चोरी का माल बरामद किए जाने के संदेह में उसे हिरासत में लेते हुए पुलिस द्वारा उससे मारपीट करके सच्चाई उगलवाने का प्रयत्न पुलिस के कर्तव्य के अधीन किया गया होने के कारण क्षम्य कृत्य होगा? उल्लेखनीय हैं कि दण्ड प्रक्रिया संहिता 1973 की धारा 161 एवं 163 के अधीन इस बात पर पूर्ण प्रतिबंध हैं कि पुलिस हिरासत में रखे गए व्यक्ति से कथन उगलवाने के लिए उससे मारपीट करे या उसे प्रताड़ना दे। ऐसी मारपीट किसी भी स्थिति में पुलिस के कर्तव्य के अधीन नहीं माना जाएगा। तथा यह धारा 331 एव 348 के अधीन दण्डनीय अपराध होगा।
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बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 |
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