ऑनलाइन शिक्षा के परिणाम समाज के सामने आने लगे है। बच्चों और उनके अभिभावकों का एक बड़ा प्रतिशत एकाएक गाज की तरह सर पर आ गिरी इस मुसीबत से दो-दो हाथ करने के लिए तैयार नहीं थे। जिन बच्चों ने कभी घर पर किताब खोली तक नहीं थी, अब उन्हें घर पर ही बैठकर पढ़ना पड़ रहा है। यह और बात है कि किताब-कापी उन्हें अब भी नहीं खोलनी, बस कंप्यूटर खोलना है। बड़े नामी स्कूल तो पूरी बेहरहमी के साथ घर में भी स्कूली यूनिफार्म के साथ ऑन लाइन होने की हिदायत देते हैं। मध्यम श्रेणी स्कूल भी बड़े स्कूलों की तरह पूरी निष्ठुरता से फ़ीस वसूल रहे है। इन स्कूलों ने छात्रों को स्कूलों की वर्दी आदि से छूट है।
ऑनलाइन शिक्षा में आ रही दिक्कतों के कारण करीब 43 प्रतिशत दिव्यांग बच्चे पढ़ाई छोड़ने की तैयारी कर रहे हैं। एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आयी है। दिव्यांग लोगों के अधिकारों के लिए काम करने वाले संगठन स्वाभिमान ने मई में ओडिशा, झारखंड, मध्य प्रदेश, त्रिपुरा, चेन्नई, सिक्किम, नगालैंड, हरियाणा और जम्मू कश्मीर में यह सर्वेक्षण किया। इस सर्वेक्षण में छात्रों, अभिभावकों और शिक्षकों समेत कुल 3627 लोगों ने भाग लिया। सर्वेक्षण के अनुसार 53.5 प्रतिशत दिव्यांग बच्चों को मुश्किलें आ रही हैं तब भी वे रोजाना कक्षाएं ले रहे हैं, जबकि 77 प्रतिशत छात्रों ने कहा कि वे दूरस्थ शिक्षा के तरीकों से वाकिफ नहीं होने के कारण पढ़ाई नहीं कर पाएंगे।
सर्वेक्षण में पाया गया कि 56.48 प्रतिशत छात्र अपनी पढ़ाई जारी रख रहे हैं, जबकि बाकी के 43.52 प्रतिशत छात्र पढ़ाई छोड़ने का मन बना रहे हैं। इसमें कहा गया है कि 39 प्रतिशत दृष्टिबाधित छात्र कई छात्रों के एक साथ बात करने के कारण विषयों को समझने में सक्षम नहीं हैं। करीब 44 प्रतिशत दिव्यांग बच्चों ने शिकायत की कि वेबीनार में सांकेतिक भाषा का कोई दुभाषिया मौजूद नहीं होता। 86 प्रतिशत दिव्यांग बच्चों के अभिभावकों का कहना है कि वे तकनीक का इस्तेमाल करना नहीं जानते और करीब 81 प्रतिशत शिक्षकों ने कहा कि उनके पास दिव्यांग छात्रों तक पहुंचाने के लिए शिक्षण सामग्री नहीं है।
ये ऑनलाइन क्लासेज मम्मियों की जान पर आफत बनकर आई है। हर मम्मी अब मम्मी कम और टीचर जी ज्यादा बन गई है। स्कूलों में कम से कम हर विषय के अलग-अलग टीचर होते हैं पर मम्मी तो आल इन वन हो चुकी है। बेचारी मम्मी स्पोर्ट्स-डांस से लेकर कंप्यूटर और विज्ञान व व्याकरण तक पढ़ाने में जुटी है। जो मम्मी किसी जमाने में आठवीं-दसवीं में हिंदी-अंग्रेजी में बहुत तंग थी, अब धड़ल्ले से भाषाई ज्ञान छांट रही है और बांट रही है।
ऑनलाइन कक्षाओं की सबसे भयानक गाज गिरी है बैक बेंचर्स पर। अब तो उन्हें अकेले ही बैठना है, न कोई आगे और न कोई पीछे। कक्षाओं की चुहलबाजी, लतीफेबाजी, नोकझोंक और दोस्तों के हाथ पकड़ कर स्कूल के गलियारों में घूमना-फिरना व कैंटीन की मस्ती आदि सब गायब।बच्चे बेचारे घर में रहते हुए भी बेघर से हो गये हैं। मानो किसी ने घोर एकान्त में रहना उनकी नियति तय कर दी है। इन कक्षाओं ने मानो जीवन का सार समझा दिया हो कि अकेले ही आये थे और अकेले ही जाना है। अब इसमें नई बात जुड़ गई है कि अकेले ही रहना है।
सर्वे में एक बच्चे से पूछा कि ऑनलाइन क्लास में कितना होमवर्क मिलता है? बच्चा कहता-मुझे नहीं मिलता, मैंने तो मैडम को ब्लॉक कर रखा है। दूसरा बोला-मुझे नहीं मिलता वो तो मम्मी-पापा को मिलता है। वे सारा दिन मेरे स्कूल बैग से किताबें निकालने में लगे रहते हैं। और पेरेंट्स के मुंह से एक बात रात-दिन निकल रही है कि स्कूल वालों की धन्य छाती है।
एक और बड़ी समस्या ये बच्चे भुगत रहे है। ऑनलाइन क्लास में बच्चों को जब जरा-सा पाठ समझ में आना शुरू होता है तभी न बाज़ार की अनुकम्पा से नेट धीमा या गायब हो जाता है तो बच्चों का क्या बडो का ध्यान भंग हो जाता है। कभी घर या कमरे में कोई आ गया, कभी रसोई में हलवे या नूडल्स की खुशबू बेचारे बच्चों को ध्यान नहीं लगने देती ऐसे में कुछ दिखने-सुनने छूटा तो तुरंत कान खिंचाई पक्की है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।