इनसे कांग्रेस पार्टी बिलकुल नहीं संभल रही है / EDITORIAL by Rakesh Dubey

Bhopal Samachar
२४ जुलाई को राजस्थान हाईकोर्ट का निर्णय राजस्थान की में कांग्रेस की राजनीति की दिशा और दशा तय करेगा |मध्यप्रदेश में कांग्रेस के विधायक अब फुटकर में कांग्रेस छोड़ भाजपा में जा रहे है, थोक में सिंधिया के साथ जो गये वे मौज कर रहे हैं | अभी पार्टी में पूरे देश में जो खींचतान दिख रही  है, उसमे कांग्रेस का नौजवान तबका ही सामने है, उन्हें पार्टी का कोई भविष्य दिखायी नहीं दे रहा है| सही मायने में  नेतृत्व कुछ कर भी तो नहीं पा रहा है, एक वर्ष से पार्टी का कोई अध्यक्ष नहीं हैं| सोनिया गांधी कार्यकारी अध्यक्ष हैं और  बीमार चल रही हैं| पार्टी में निर्णय कोई और ले रहा है, राहुल गांधी कभी निर्णय लेते हैं, कभी नहीं | जो नौजवान पीढ़ी है, उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर पार्टी में क्या हो रहा है? पार्टी बिल्कुल भी संभल नहीं पा रही है|

राजस्थान सुर्ख़ियों में है |सचिन पायलट को उपमुख्यमंत्री बनाये जाने के बाद से ही खटपट शुरू हो गयी थी| वर्ष २०१८  में चुनाव जीतने के बाद से ही सचिन को लग रहा था कि अशोक गहलोत उन्हें हाशिए पर डाल रहे हैं| उन्होंने तो यह भी कहा कि उनके अपने चुनाव क्षेत्र में अधिकारी उनकी बात नहीं सुनते| एक तरह से सचिन के लिए असहनीय स्थिति बन गयी थी| कमोबेश यही स्थिति ज्योतिरादित्य सिंधिया की थी, कमलनाथ सरकार में |यहां यह प्रश्न स्वाभाविक है कि क्या गहलोत और कमलनाथ  चाह रहे थे कि कोई ऐसी प्रक्रिया शुरू हो, जिसमें ये दोनों बाहर चले जायें| मध्यप्रदेश में यह सफल हो गया राजस्थान में असफल | कमल नाथ और गहलोत के लिए ये दोनों कांटे की तरह थे| राहुल गांधी ने सचिन को राजस्थान और ज्योतिरादित्य को मध्यप्रदेश भेजते हुए कहा था कि अगर वे कांग्रेस को वापस सत्ता में ले आते हैं, तो उन्हें मुख्यमंत्री बनाया जायेगा|  दोनों ने काफी मेहनत की और पार्टी को खड़ा किया था |लेकिन, टिकट बंटवारे और सरकार बनने के बाद दोनों की नहीं चली|  राहुल गांधी ने सचिन और ज्योतिरादित्य  से जो वादे किये  थे , उससे वे पीछे हट गये| दोनों जगह नौजवान तबका जवान मुख्यमंत्री देखना चाहता था| खींचतान से बचने के लिए राज्यों  में सत्ता साझेदारी का फॉर्मूला बना लेकिन, संभव हुआ ही नहीं| बूढ़े नेता धीरे-धीरे इन्हें काटते चले गये|

मध्य प्रदेश हाथ से निकल चुका है, और खिसकता जा रहा है | जहां-जहां नौजवान तबका है, जिसकी २०-३० वर्ष की राजनीति बची है, उन्हें अपने भविष्य की चिंता सता रही है| कहीं न कहीं कांग्रेस से जुड़े लोग घुटन महसूस कर रहे हैं| मौका मिलते ही निकल रहे हैं, जैसे सिंधिया ने किया| वैसे नेताओं के बीच जो भी मनमुटाव था, शीर्ष नेतृत्व को उसे दूर करना चाहिए था| यहां तक नौबत नहीं आनी चाहिए थी|कांग्रेस के लिए यह बहुत ही दुर्भाग्यपूर्ण है कि एक और राज्य उसके हाथ से जा रहा है| गहलोत के विश्वास मत जीत जाने के बाद भी उनकी सरकार अस्थिर ही रहेगी| उसे चलाना अब मुश्किल होगा|यह किस तरह की राजनीति हुई, आप तो अपने परिवार को ही नहीं संभाल पाये | यह कांग्रेस के शीर्ष नेतृत्व की बहुत बड़ी विफलता है| अगर देखा जाये तो आज कांग्रेस के पास शीर्ष नेतृत्व ही नहीं है|

यह कहा जा रहा है कि भाजपा की वजह से यह सब हुआ है, तो इस बार भाजपा ने पहल नहीं की है, वह प्रतीक्षा करो और देखो की नीति पर चल रही है| भाजपा अब दखलअंदाजी करेगी, वह अब और लोगों को तोड़ेगी| राजनीति में सब जायज है, यह भाजपा का नया मूल मन्त्र है |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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