कोरोना बचपन के महत्वपूर्ण क्षणों को निगल रहा है। भारत समेत दुनिया में कोरोना संक्रमण के फैलाव के कारण लगाये गये प्रतिबंधों का असर बच्चों एवं किशोरों के मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ रहा है| इन दिनों अपने घरों में सीमित होने की वजह से बच्चे न तो अपने दोस्तों से मिल पा रहे हैं और न ही वे पसंदीदा खेल खेल पा रहे हैं। वे सामान्य सामाजिक सपंर्क से भी कट गये हैं, जो उनकी दिनचर्या का एक हिस्सा था। वे बचपन के महत्वपूर्ण क्षणों को जीने से वंचित हो रहे हैं| इन बच्चों में से कई के माता-पिता लालन-पालन से जुड़ी सलाह के लिए मनोचिकित्सकों के पास जा रहे हैं। अनेक देशों में माता-पिता भी इन दिनों मानसिक समस्या, जैसे- चिंता एवं नींद की कमी, से जूझ रहे हैं।
कोरोना की स्थिति का मनोवैज्ञानिक प्रभाव सभी वर्गों पर है, लेकिन बच्चों एवं किशोरों पर सबसे अधिक असर पड़ रहा है क्योंकि वे अक्सर अपने दैनिक जीवन और गतिविधियों में महामारी के कारण आये बदलावों को स्वीकार नहीं कर पाते, जिसके कारण उन्हें भ्रम, निराशा, चिंता तथा अज्ञात भय का सामना करना पड़ रहा है। कोरोना वायरस के बारे में वे जो कुछ सुनते हैं, उससे सशंकित होना स्वाभाविक है। बच्चे व किशोर भी जो कुछ आनलाइन या टेलीविजन पर देखते हैं या दूसरों से सुनते हैं, उसके कारण उनमें चिंता और तनाव पैदा हो रहा है।
कोरोना काल से पहले बच्चे अपना समय स्कूल और दोस्तों के बीच बिताते थे, अब अधिकतर समय टीवी और मोबाइल पर बीत रहा है। बच्चे उत्तेजित एवं आक्रामक हो रहे हैं। माता-पिता के लिए यह आवश्यक है कि वे बच्चों की आनलाइन सुरक्षा के बारे में सतर्क रहें तथा निगरानी रखें कि किस प्रकार का एप बच्चे उपयोग कर रहे हैं। यदि कोई एप बच्चे के लिए उपयुक्त नहीं है, तो उसे लॉक कर देना उचित है| बच्चों को आनलाइन कंटेंट के प्रति सुरक्षा तथा टीवी व मोबाइल पर अधिक समय बिताने के नुकसान के बारे में बताना चाहिए।
माता-पिता के लिए बच्चों की मदद करने का सबसे अच्छा तरीका है पहले खुद की देखभाल ठीक से करें। ऐसा करना स्वार्थपूर्ण नहीं है, क्योंकि यह उन्हें एक स्थिर, शांत और जिम्मेवार माता-पिता के रूप में अधिक सक्षम बनायेगा। अपने परिवेश के प्रति जागरूक रहने के कारण बच्चे माता-पिता तथा देखभाल करनेवालों के अंदर तनाव एवं चिंता को महसूस करते हैं और उसी के अनुरूप आचरण भी करते हैं, जो उनके लिए अच्छा नहीं माना जा सकता।
कोरोना की वर्तमान स्थिति के कारण आर्थिक एवं सामाजिक रूप से कमजोर परिवारों में तनाव का स्तर तेजी से बढ़ेगा। माता-पिता की देखभाल से वंचित रहनेवाले बच्चों, जो चाइल्ड केयर संस्थानों या वैकल्पिक देखभाल में रहते हैं या फिर सड़कों पर रहनेवाले एवं प्रवासी बच्चे, की स्थिति विशेषरूप से चुनौतीपूर्ण होगी। सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थितियों के अनुभवों के अनुसार हिंसा में वृद्धि की आशंका भी है। इसमें लिंग आधारित हिंसा, घरेलू हिंसा या बच्चों एवं महिलाओं के खिलाफ शारीरिक दंड शामिल है। यात्रा प्रतिबंधों के कारण हिंसा के शिकार किशोर-किशोरियों को मदद प्राप्त करने तथा सपोर्ट सिस्टम तक पहुंचने के लिए बाधाओं का सामना करना पड़ेगा।
माता-पिता एवं परिवार के सदस्य के रूप में हम बच्चों के अंदर होनेवाले बदलाव पर नजर रखकर इस मुश्किल समय से उबरने में उनकी मदद कर सकते हैं। माता-पिता को शांत रहना चाहिए और बच्चों की समस्याओं को सुनना चाहिए. उनके साथ भरोसेमंद संबंध बनाना चाहिए। बच्चों को व्यायाम, नृत्य, योग आदि में व्यस्त रखें। उन्हें सशक्त बनायें तथा तथ्यों के साथ उनका मार्गदर्शन करें। उन्हें उपयुक्त पारिवारिक या घरेलू गतिविधियों में भी व्यस्त रख सकते हैं। दोस्तों एवं रिश्तेदारों के साथ आनलाइन स्रोतों से जुड़ें। बच्चों के लिए दिनचर्या बनायें।
गतिविधियों में संलग्न होने से ताकत पैदा होती है, सकारात्मक सोच विकसित होती है और आत्मविश्वास विकसित करने में मदद मिलती है। आप बच्चों को खुद के अंदर कृतज्ञता विकसित करने हेतु प्रोत्साहित कर सकते हैं। आप उनसे कह सकते हैं कि वे रात को सोने से पहले उन चीजों के बारे में लिखें, जिसके बारे में वे खुद को कृतज्ञ अनुभव करते हैं और उसे एक डब्बे में रखते जायें और सप्ताह के अंत में पढ़ें। यह अभ्यास उनके अंदर आशा का संचार करेगा तथा उनके चेहरे पर मुस्कान लाने में मदद करेगा।
इस समय जो एक चीज हम सभी को जोड़ती है, वह यह है कि हम सभी संकट से जूझ रहे हैं और नयी वास्तविकता के अनुरूप खुद को ढालने की कोशिश कर रहे हैं। बच्चों एवं उनकी देखभाल करनेवालों के मानसिक स्वास्थ्य पर ध्यान देना इस समय उतना ही महत्वपूर्ण है, जितना कि संक्रमण के प्रति सावधानी बरतना।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।