अमित चतुर्वेदी। कर्मचारियों के विरुद्ध, कथित कदाचरण के लिए नियोक्ता द्वारा घरेलू या आंतरिक क्षेत्राधिकार के आधीन, अनुशासनात्मक कार्यवाही की जाती है। अनुशासनात्मक या विभागीय कार्यवाही, सामान्यतः विभागीय जांच कही जाती है, जो कि किसी भी कर्मचारी के ऊपर कदाचरण हेतु दंड अधिरोपित करने की पूर्व शर्त है। विभागीय कार्यवाही या जांच हेतु विभागीय नियमों या निर्देशों में प्रक्रिया विहित होती है, जिसका अनुपालन, दंड अधिरोपण के पूर्व आवश्यक है।
विभागीय जांच या अनुशासनात्मक कार्यवाही एक अर्धन्यायिक प्रक्रिया है (न्यायालय के अलावा) एवं जांच अधिकारी का कार्य भी अर्द्ध न्यायिक प्रकृति का होता है। जाँच अधिकारी, पक्षकारों द्वारा उपलब्ध सामग्री के आधार पर निष्कर्ष देने के लिए कर्तव्य के आधीन होता है।
किसी भी कर्मचारी के विरुद्ध, अस्पष्ट आरोपों के आधार पर कार्यवाही नही चलाई जा सकती है।
आरोप विशिष्ट एवं निश्चित होने चाहिये।
जांच उदेश्य परक होनी चाहिए ना कि व्यक्तिपरक।
जाँच अधिकारी का निष्कर्ष अनुमान के आधार पर नकारात्मक नही होना चाहिये।
सभी प्रकार के कार्य या चूक, कदाचरण नही माने जा सकते हैं।
अधिकारी द्वारा जाँच निष्कर्ष के कारणों का उल्लेख आवश्यक रूप से किया जाना चाहिए।
कर्मचारी पर लगाए गए आरोपों के स्पष्ट नही होने की आपत्ति नही लिये जाने की स्थिति मे भी, जांच अधिकारी के निष्कर्ष को दूषित कहा जा सकता है, उक्त निष्कर्ष कर्मचारियों के विरुद्ध, नकारात्मक एवं दांडिक परिणाम सम्मिलित करने एवं प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत (सुनवाई के अवसर) का अतिक्रमण करने वाला हो सकता है।
लेखक श्री अमित चतुर्वेदी मध्यप्रदेश हाईकोर्ट, जबलपुर में एडवोकेट हैं। (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)