कभी-कभी ऐसा भी होता है कि एक व्यक्ति किसी कर्मचारी / शासकीय सेवा के खिलाफ एक तरफ को विभागीय कार्रवाई हेतु शिकायत करता है और दूसरी तरफ न्यायालय में याचिका प्रस्तुत कर देता है। ऐसे ही मामले जो कदाचरण की श्रेणी में आते हैं, न्यायालय से दोषमुक्त हो जाने के बाद भी विभागीय जांच प्रक्रिया जारी रहती है और कभी-कभी दंडित भी किया जाता है। सवाल यह है कि न्यायालय से दोषमुक्त हो जाने के बाद क्या उसी मामले में शासकीय सेवक के खिलाफ विभागीय जांच की जा सकती है।
मध्य प्रदेश हाई कोर्ट जबलपुर के एडवोकेट श्री अमित चतुर्वेदी बताते हैं कि आपराधिक प्रकरण, जो कि कर्मचारी कदाचरण की श्रेणी में भी आते हैं एवं आपराधिक विचारण के पश्चात किसी कर्मचारी के दोषमुक्त पाए जाने के बाद भी भिन्न आधारों पर, कर्मचारी के विरुद्ध विभागीय जांच की जा सकती है। दूसरे शब्दों में, उन आधारों पर, क्रिमिनल कोर्ट, विभाग को कार्यवाही करने से नही रोकता है जो, आपराधिक विचारण में शामिल नही थे।
आपराधिक विचारण एवं विभागीय जांच दोनो ही भिन्न उद्देश्यों के लिए होती हैं। विभागीय जांच आवश्यक है अथवा नही, इसका निर्णय विभाग, न्यायालय के निर्णय के निष्कर्ष के आधार पर कर सकता है। सामान्यतः जहां कर्मचारी को न्यायालय द्वारा सभी आरोपों से सम्मानपूर्वक दोषमुक्त कर दिया जाता है, वहां समान आरोपों, आधारों एवं साक्ष्यों पर विभागीय जांच उचित नही है।
माननीय उच्चतम न्यायालय के अनुसार, विभागीय कार्यवाही की शक्तियों का प्रयोग विभाग द्वारा, सद्भावपूर्ण युक्तियुक्त कारणों एवं आरोपों के समर्थन में सक्ष्यो के आधार पर करना चाहिये।
जहां, संदेह से परे अभियोजन या विभाग कर्मचारी के विरुद्ध, समान साक्ष्यों, आधारों एवं गवाहों के आधार पर, आरोपों को सिद्ध करने में असफल रहा है, वहां, उन्ही समान आरोपों के आधार पर, विभागीय जांच एवं विपरीत निष्कर्ष को वैध नही माना जा सकता है।
लेखक श्री अमित चतुर्वेदी मध्यप्रदेश हाईकोर्ट, जबलपुर में एडवोकेट हैं। (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)