आज कल शासकीय विभाग हो या न्यायालय में अगर कोई व्यक्ति नहीं हाजिर होता है तो नोटिस भेज दिया जाता है। उसके बाद भी विभागों के उनके आदेश, सूचना, समन की एक प्रतिलिपि नोटिस बोर्ड पर लगा दी जाती हैं या प्रकाशित की जाती है जिससे संबंधित व्यक्ति को पता चल जाएगा। परन्तु कुछ व्यक्ति जानबूझकर कर इनको हटा देते हैं उन मिटा देते हैं। जिसके ऊपर कार्यवाही हो रही है वो आदेश, सूचना, समन को हटाएगा, मिटाएगा या अनुपालन करेगा ऐसा कृत्य करना भी एक अपराध की श्रेणी में आता है।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 173 की परिभाषा:-
ऐसा लोकसेवक जो प्राधिकार रखता है ओर उसके दुआरा दिए गए वैध आदेश वो कानूनी(विधि) तरीके से वैध है। ऐसे आदेश, सूचना,या न्यायालय की लिखित सूचना(समन) को कोई व्यक्ति जानबूझकर कर नही मानता है या इनको मिटाता या हटाता है, या प्रकाशन पर रोक लगता है आदि। ऐसा करने वाला व्यक्ति धारा 173 के अंतर्गत दोषी होगा।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 173 के अंतर्गत दण्ड का प्रावधान:-
इस धारा के अपराध किसी भी प्रकार से समझौता योग्य नहीं होते है। यह अपराध असंज्ञेय एवं जमानतीय अपराध होती हैं। इनकी सुनवाई कोई भी मजिस्ट्रेट कर सकते हैं। सजा- इस अपराध की सजा को दो भागों में बाँटा गया है-:
1. किसी सरकारी अधिकारी दुआरा दी गई सूचना, आदेश,नोटिस आदि के प्रकाशन से रोकना,हटाना, मिटाना या निवारित करना तब :- 1 माह की सदा कारावास या 500 रु का जुर्माना या दोनो से दण्डित किया जा सकता है।
2. न्यायालय की समन को न मानना जानबूझकर या निवारित करना तब :- 6 माह की सदा कारावास या 1000 रु जुर्माना या दोनों से दण्डित किया जा सकता है।
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बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 |
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