भारत के इतिहास में कई महान राजाओं की कहानियां लिखी हुई है। कुछ कहानियों में मुकुट के बारे में विशेष वर्णन मिलता है। किसी भी राजा के लिए उसका मुकुट प्राणों से भी प्रिय होता था। सवाल यह है कि राजा महाराजाओं को उनका मुकुट इतना प्रिय क्यों होता था। सार्वजनिक जीवन में वह हमेशा मुकुट क्यों पहने रहते थे। क्या इसके पीछे कोई विज्ञान है या सिर्फ अपनी शान के लिए राजा-महाराजा ऐसा करते थे। आइए मजेदार प्राचीन भारतीय विज्ञान के बारे में जानते हैं:-
राजा-महाराजा के मुकुट के पीछे का विज्ञान क्या है, यहां पढ़िए
प्राचीन भारत में राजा का मुकुट विशेष रूप से तैयार किया जाता था। सिर की परिधि के बिंदुओं पर गोलाकार में समानरूप से दबाव उत्पन्न करता था। उसमें समाई रिक्ति द्वारा ब्रह्मांड की शक्तितत्त्वात्मक तरंगों को अपनी ओर आकृष्ट कर देह में तेज का संवर्धन करने हेतु पूरक सिद्ध होता था। अतः उनके लिए तेज के स्तर पर सूर्यनाडी द्वारा निरंतर सजगता एवं कार्यरतता बनाए रखना संभव होता था।’
राजा-महाराजा सोने का मुकुट क्यों पहनते थे, यहां पढ़िए
सात्त्विक राजाओं द्वारा स्वर्णमुकुट धारण करने से उनकी बुद्धि सात्त्विक होकर उनके लिए देवताओं से ज्ञान ग्रहण करना संभव होना एवं सर्व प्रसंगों में उचित निर्णय ले पाना : ‘सात्त्विक राजाओं द्वारा मुकुट धारण करने से उसमें विद्यमान सात्त्विकता के कारण उनकी बुद्धि सात्त्विक हो जाती थी। ब्रह्मदेव एवं श्री सरस्वती देवी से प्रक्षेपित ज्ञानतरंगें वे सहजता से ग्रहण कर पाते थे। अतः उनकी गहन विचार करने की वृत्ति थी एवं उनकी निर्णयक्षमता भी उत्तम थी। वे प्रजा को उचित निर्णय देते थे। प्रजा की सर्व समस्याओं पर उत्कृष्ट उपाय ढूंढते थे। ज्ञान के कारण उनकी बुद्धि सात्त्विक बनती थी तथा उनका विवेक सदैव जागृत रहता था। देवताओं द्वारा समय-समय पर प्राप्त मार्गदर्शन के कारण कठिन प्रसंगों में भी वे उचित निर्णय लेकर, न्याय कर पाते थे। इसलिए ऐसे राजाओं की संपूर्ण राजव्यवस्था भली-भांति चलती थी।
राजा के मुकुट में रत्न क्यों लगाई जाते थे
मुकुट के रत्नों में उच्च देवताओं की शक्ति, चैतन्य, आनंद एवं शांति के स्तर की सूक्ष्मतर एवं सूक्ष्मतम तरंगें हीरों के रंगों के अनुसार आकृष्ट होना : ‘मुकुट का पार्श्व भाग स्वर्ण का बना होता है एवं उस पर विविध रत्न तथा हीरे जडे होते हैं। मुकुट के स्वर्ण में उच्च देवताओं की सूक्ष्मतम स्तर की तत्त्वतरंगें आकृष्ट होती हैं। मुकुट के रत्नों में उच्च देवताओं की शक्ति, चैतन्य, आनंद एवं शांति के स्तर की सूक्ष्मतर और सूक्ष्मतम तरंगें हीरों के रंगों के अनुसार आकृष्ट होती हैं, उदा. गुलाबी तथा लाल रंगों की ओर शक्ति की, पीले रंग की ओर चैतन्य की, नीले रंग की ओर आनंद की तथा श्वेत रंग की ओर शांति की तरंगें आकृष्ट होती हैं।
राजा के मुकुट में रिक्त स्थान क्यों होते थे
मुकुट के रिक्त स्थान में उच्च देवताओं का निर्गुण तत्त्व कार्यरत रहता है । मुकुट धारण करने से राजाओं को उच्च देवताओं के सगुण-निर्गुण दोनों स्तरों के तत्त्वों का लाभ मिलता था । उन्हें ज्ञान, पराक्रम, ऐश्वर्य, यश, कीर्ति इत्यादि गुणों की प्राप्ति होती थी और वे अपने कर्तव्य भली-भांति पूर्ण कर पाते थे।
मुकुट धारण करने के उपरांत मुकुट का भार सिर पर पडता है, जिससे सिर के विविध बिंदुओं पर दबाव पडकर सूचीदाब (एक्यूप्रेशर) एवं आध्यात्मिक उपाय होते हैं।’
सरल शब्दों में समझिए
राजा के लिए विशेष प्रकार से मुकुट तैयार किया जाता था। मुकुट के निर्माण के दौरान खगोल शास्त्र, ज्योतिष विज्ञान, एक्यूप्रेशर सहित कई प्रकार की विधाओं का ध्यान रखा जाता था। राजा के सिर पर मुकुट ठीक वैसे ही पॉजिटिव तरंगे उत्पन्न करता था जैसे कि मंदिर के शिखर अंदर होती है। मुकुट पहनने के कारण राजा देर तक काम कर पाता था। वह सब्जेक्ट पर कंसंट्रेट कर पाता था और उसे नए-नए आइडिया आते थे। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article (current affairs in hindi, gk question in hindi, current affairs 2019 in hindi, current affairs 2018 in hindi, today current affairs in hindi, general knowledge in hindi, gk ke question, gktoday in hindi, gk question answer in hindi,)