कहानियों में, इतिहास की किताबों में और यहां तक की फिल्मों में हमने देखा है कि कबूतर को संदेशवाहक के रूप में उपयोग किया जाता था। कबूतर किसी संदेश या संकेत को बड़ी ही आसानी से एक जगह से दूसरी जगह ले जाते थे। कहते हैं कि जब तक डाक विभाग स्थापित नहीं हुआ तब तक राजा-महाराजा यहां तक कि अंग्रेज अधिकारी भी कबूतर का उपयोग चिट्ठी पहुंचाने के लिए करते थे। सवाल यह है कि एक कबूतर चिट्ठी के प्राप्तकर्ता का पता कैसे खोज लेता था। क्या वह किसी दूसरे कबूतर से पूछकर कंफर्म करता था या फिर उसे भेजने वाला उसके कान में कोई विशेष किस्म का मंत्र फूंक देता था। आइए जानते हैं एक मजेदार रहस्य की बात:-
क्या सभी किस्म के कबूतर संदेशवाहक होते हैं
कबूतर में इंसानों की तरह लैंड मार्क पहचानने की क्षमता होती है लेकिन फिर भी सभी कबूतर संदेशवाहक नहीं होते। होमिंग पिजन या रॉक पिजन को ही संदेशवाहक के रूप में उपयोग किया जाता था क्योंकि रॉक पिजन में रास्तों को समझने के लिए खास मैग्नेटोरिसेप्शन स्किल पाई जाती है। मैग्नेटोरिसेप्शन स्किल, पक्षियों में पाया जाना वाला वह विशेष गुण है जिसके कारण उन्हें इस बात का अंदाजा लग जाता है कि वे (पृथ्वी के) किस मैग्नेटिक फील्ड में हैं। रॉक पिजन इसमें सबसे कुशल पक्षी माना जाता है।
मजेदार रहस्य की बात क्या है
मजेदार रहस्य की बात यह है कि इतनी जबरदस्त स्किल होने के बावजूद कोई भी कबूतर किसी भी एड्रेस को खोजने की क्षमता नहीं रखता। दरअसल कबूतर में एक और विशेष गुण होता है। पालतू कबूतर को आप आसपास के किसी भी इलाके में ले जाइए, यदि उसे स्वतंत्र कर देंगे तो वापस अपने घर लौट जाएगा। वह अपने प्रथम पालक का पता कभी नहीं भूलता। राजा-महाराजा अपने मित्र राजा-महाराजाओं के पालतू कबूतर मंगवा लिया करते थे, ताकि समय आने पर संदेश के साथ उन्हें वापस भेजा जा सके। तो समझ में आया जो कबूतर संदेश लेकर जाता था वह सेंडर का नहीं बल्कि रिसीवर का पालतू कबूतर होता था। Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article
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