ऑनलाइन क्लास के लिए क्या मोबाइल भी सरकार देगी, बच्चे दूसरा वीडियो चलाने लगे तो..? / MP NEWS

Bhopal Samachar
भोपाल। भारत के प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी ने 30 जून 2020 को देश से अपील की कि सोशल डिस्टेंसिंग का कड़ाई से पालन करें। मध्य प्रदेश का राज्य शिक्षा केंद्र गांव-गांव में 10-10 बच्चों का क्लासरूम तैयार कर रहा है और वह भी ऐसा है जिसमें एक भी शिक्षक नहीं होगा। बच्चों को मोबाइल पर पढ़ाया जाएगा। सवाल यह है कि सरकारी स्कूल के बच्चों पर मोबाइल नहीं होते। पिताजी के पास होते हैं। पिता मजदूरी के लिए चले जाते हैं। ऑनलाइन क्लास के लिए क्या सरकार की तरफ से मोबाइल भी मिलेंगे। सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या गारंटी है कि बच्चे मोबाइल पर केवल ऑनलाइन क्लास अटेंड करेंगे। कोई दूसरा वीडियो चलाने लगे तो....?

एक स्टूडेंट के घर में 10-10 विद्यार्थियों की क्लास, कोरोना फैल गया तो...

रोजी-रोटी के लिए संघर्षरत परिवार के लिए "डीजीलेप" से बच्चों की शिक्षा हेतु मोबाइल उपलब्ध करवाना "दिवा स्वप्न" से कम नहीं हैं। राज्य शिक्षा केंद ने डीजीलेप से शिक्षा के माध्यम से अपनी छवि सरकार के सामने बनाये रखने का कुत्सित प्रयास किया है। जमीनी हकीकत इसके उलट है। कोरोना संक्रमण से बचने बचाने के लिए माननीय प्रधानमंत्री जी ने दो गज की दूरी, चेहरे पर गमछा या मास्क व दिन में कई बार बीस सेकेंड तक हाथ धोना बताया है। माननीय प्रधानमंत्री जी की भावना का मखौल उड़ाते हुए 06 जुलाई से शिक्षकों को जबरिया समाज में धकेल कर घंटी-थाली बजाकर एक पालक के घर में दस बच्चों को एकत्र कर पढ़ाने को प्रोत्साहित करने का जिम्मा दिया है जो अव्यवहारिक व जोखिम भरा है। संक्रमण फैलता है तो इसकी जवाबदेही सुनिश्चित की जानी चाहिए।    

बच्चे की क्लास के लिए पापा मोबाइल लिए बैठे रहेंगे

एक तो एंड्रायड मोबाइल सहज सभी के पास उपलब्ध नहीं हैं, यदि है भी तो आपरेट करने में शिक्षकों को तो आपस में मदद लेना पड़ती है, वहीं यह कैसे मान लिया गया है कि ऐसे मोबाइल पालक कुशलतापूर्वक संचालित कर अपने परिवार में काम धंधा छोड़कर अपने चार-पांच बच्चों को डीजीलेप से शिक्षा दे रहे होंगे? 

पाठ्य पुस्तक सरकार देती है, मोबाइल भी सरकार उपलब्ध कराएं

मप्र तृतीय वर्ग शास कर्म संघ के प्रांताध्यक्ष प्रमोद तिवारी व उपाध्यक्ष कन्हैयालाल लक्षकार ने आगाह किया है कि "शिक्षा का अधिकार अधिनियम" लागू होने के बाद कोई भी बच्चा शिक्षा से वंचित नहीं रहना चाहिए। इसके लिए समान अवसर व बुनियादी जरूरतें पूरी करना होगी। सरकार की ओर से बच्चों को निशुल्क पाठ्यपुस्तकें, गणवेश, मध्यान्ह भोजन, साइकिल, छात्रवृत्ति उपलब्ध करवाने से स्वयंसिद्ध है कि बच्चों की शिक्षा की जरूरतें पालक पूरी नहीं कर सकते हैं। फिर यह कपोल कल्पित ही है कि शत-प्रतिशत बच्चें मोबाइल से डीजीलेप शिक्षा सफलतापूर्वक प्राप्त कर लेंगे। यह निर्णय अधिनियम व संवैधानिक प्रावधानों के विरुद्ध है। 

यदि विद्यार्थियों का समूह मोबाइल पर कुछ और देखने लगा तो...?

नीति नियंताओं ने कभी विचार किया है कि टच स्क्रीन एंड्रायड मोबाइल पर बच्चें अपनी अंगुली नहीं रखेंगे, व केवल डीजीलेप ही देखेंगे। यहां ढेरों साइडे अश्लीलता परोसने से बाज नहीं आती। शरारती बच्चों को इनसे रोज-रोज कैसे बचाया जा सकता है? तर्कसंगत जवाब किसी के पास नहीं है। इससे समाज का ताना-बान ध्वस्त होगा। वर्षो से शिक्षा विभाग प्रयोगशाला व राज्य शिक्षा केंद्र सफेदपोशो के लिए चरागाह बना हुआ है। यह कटू सत्य व शोध का नया विषय हो सकता है कि "राज्य शिक्षा केंद्र के अस्तित्व में आने पर शिक्षा का स्तर लगातार रसातल में क्यों जा रहा है।"  

शिक्षकों को स्वतंत्र छोड़ दो, उन्हें मत समझाओ के पढ़ाते कैसे हैं

राजधानी के एसी कार्यालयों में बैठकर अव्यवहारिक निर्णय लेने वाले राजनीतिक पहुँच वाले आला अधिकारी दबाव पूर्वक अनुशासनात्मक कार्रवाई की आड़ में निचले स्तर से बेहतर फीडबैक लेकर सरकार से प्राप्त मोटे बजट पर हाथ साफ करते रहते है,आखिर अफसर का अफसर कौन? जितनी जल्दी हो राज्य शिक्षा केंद्र बंद कर राजधानी से लेकर संकुल स्तर तक प्रतिनियुक्ति समाप्त हो तो बहुत बड़ा अमला बच्चों को पढ़ाने के लिए उपलब्ध हो जाएगा। निःसंदेह जब भी विद्यालय नियमित चालू होंगे शिक्षक प्राण-प्रण से अपने छात्रों को सहेज लेंगे,समर्पित होकर कोरोना काल की भरपाई कर लेंगे। आला अधिकारियों का अवांछित हस्तक्षेप ही शिक्षक व शिक्षा के मध्य रोड़ा बना हुआ है। 

स्वतंत्र रूप से शिक्षकों को केवल व केवल पढ़ाने का मौका दिया जावे परिणाम चौंकाने वाले होगे! कर्मचारी नेताओं ने चेतावनी देते हुए कहा है कि समय रहते सरकार कड़ा फैसला लेते हुए शिक्षकों की पदीय गरिमा के खिलाफ आदेश देने वाले अधिकारियों के खिलाफ योग्य अनुशासनात्मक कार्रवाई करते हुए राज्य शिक्षा केंद्र के उपयोगिता की समीक्षा कर समाप्त किया जावे। अन्यथा शिक्षकों की नाराजगी व आक्रोश सड़कों पर देखने को मिलेगा।

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