भोपाल। करीब 3 दिन तक दिल्ली में भारतीय जनता पार्टी के सभी प्रमुख नेताओं की परिक्रमा लगाने के बाद मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान बेरंग वापस लौट आए हैं। दिल्ली में उन्होंने कहा था कि भोपाल पहुंचते ही मंत्रियों के बीच विभागों का बटवारा कर दूंगा परंतु भोपाल आकर कह रहे हैं कि अभी एक-दो दिन और विचार करूंगा। संकेत स्पष्ट है, एक बार फिर सीएम शिवराज सिंह चौहान की लिस्ट को बीजेपी की सेंट्रल लीडरशिप का अप्रूवल नहीं मिला।
भाजपा में इस बार सारे फैसले दिल्ली से हो रहे हैं
कुछ साल पहले तक जब कांग्रेस के नेता बयान देते थे कि 'हाईकमान का फैसला ही सर्वमान्य होगा' तब मध्य प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी के नेता काफी चुटिया लेते थे। दावा करते थे कि भारतीय जनता पार्टी में लोकतंत्र मौजूद है। यहां प्रदेश के फैसले प्रदेश स्तर पर ही लिए जाते हैं परंतु अब बात बदल गई है। सारे फैसले केंद्रीय नेतृत्व द्वारा लिए जा रहे हैं। मंत्रियों की लिस्ट भी दिल्ली से आई थी और अब विभागों की लिस्ट भी दिल्ली से ही आएगी।
दिल्ली की दौड़ शिवराज सिंह के लिए हानिकारक तो नहीं
एक सवाल और भी उठता है। मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान जो बार-बार दिल्ली जाते हैं और फिर बिना नतीजे वापस आ जाते हैं, कहीं उन के लिए नुकसानदायक तो नहीं। मुख्यमंत्री जैसे पद पर बैठे हुए व्यक्ति के साथ साजिश और राजनीति तो होती ही है, गौर करने वाली बात यह है कि शिवराज सिंह चौहान इस बार अपनी मर्जी का मंत्रिमंडल का गठन करवाने में पूरी तरह से नाकाम रहे। विभागों का बंटवारा मुख्यमंत्री का विशेषाधिकार होता है, लेकिन शिवराज सिंह चौहान यह काम भी अपनी मर्जी से नहीं कर पाए। जो नेता केंद्रीय नेतृत्व को अपने विश्वास में नहीं ले पा रहा, क्या आम कार्यकर्ता उस पर विश्वास बनाए रखेगा।
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