नई दिल्ली। भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने 28 जुलाई 2020 को दिए एक फैसले में स्पष्ट रूप से कहा कि ट्रायल कोर्ट में अभियुक्त के बयान को गलत मान कर सजा निर्धारित करना गलत प्रक्रिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सीआरपीसी की धारा 313 के तहत अभियुक्त के बयान का सावधानी पूर्वक परीक्षण करना ट्रायल कोर्ट के लिए जरूरी है।
अभियुक्त को सीआरपीसी की धारा-313 के तहत मिला अवसर बेहद महत्वपूर्ण: सुप्रीम कोर्ट
जस्टिस एनवी रमन्ना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस कृष्णा मुरारी की पीठ ने अपने एक फैसले में कहा है कि मुकदमे के अंत में दर्ज किए गए अभियुक्त के बयान को हल्के ढंग से झूठा व अविश्वसनीय मानकर दरकिनार नहीं किया जाना चाहिए। अभियुक्त को धारा-313 के तहत दिया जाने वाला यह अवसर बेहद महत्वपूर्ण होता है। इसके जरिए उसे अपना बचाव करने और न्याय मांगने का अधिकार प्राप्त है।
अभियुक्त को केवल उचित संदेह पैदा करने की आवश्यकता होती है: सुप्रीम कोर्ट
पीठ ने कहा कि ट्रायल कोर्ट द्वारा अभियुक्त के बयान को निष्पक्ष तरीके से न लेने व बिना दिमागी कसरत किए उस पर विचार न करने से वह दोषी ठहराया जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि जहां अभियोजन पक्ष को संदेह से परे अपने मामले को साबित करने की आवश्यकता होती है वहीं इनके ठीक विपरीत अभियुक्तों को केवल उचित संदेह पैदा करने या वैकल्पिक थ्योरी को साबित करने की आवश्यकता होती है। यह अभियोजन पक्ष की जिम्मेदारी है कि वह कैसे अभियुक्त के बचाव को काटे।
सुप्रीम कोर्ट ने इन बातों का उल्लेख करते हुए ट्रायल कोर्ट और पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट के एक फैसले बदल दिया। सुप्रीम कोर्ट ने महिला परमिंदर कौर को एक नाबालिग लड़की को अमीर लड़के (किराएदार) से जबरन यौन संबंध बनाने के लिए मजबूर करने व आपराधिक धमकी के आरोप से बरी कर दिया है। महिला की ओर से एडवोकेट दुष्यंत परासर पेश हुए थे।
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सुप्रीम कोर्ट के कुछ महत्वपूर्ण फैसले
आरक्षण किसी का मौलिक अधिकार नहीं: सुप्रीम कोर्ट5 साल की नौकरी के बाद इस्तीफा देने वाला कर्मचारी 100% ग्रेच्युटी का अधिकार
पुलिस की क्लोजर रिपोर्ट पर कोर्ट केस बंद नहीं कर सकता, पीड़ित को सुनना जरूरी
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