भगवान से जुड़ने या महसूस करने के लिए मन को साधना जरुरी है। कहा भी जाता है कि; भगवान तो भाव के भूखे होते हैं। इसलिए हिन्दू धर्म ग्रंथों में भगवान की पूजा को अधिक फलदायी बनाने मन शुद्धि के लिए अनेक विधान बनाए गए हैं। उन्हीं में से एक श्रेष्ठ विधी है- “शिव मानस पूजा” अर्थात्; मन से भगवान की पूजा।
मानस पूजा की रचना किसने की
मन से कल्पित सामग्री द्वारा की जाने वाली पूजा को ही मानस पूजा कहा जाता है। मानस पूजा की रचना आदि गुरु शंकराचार्य जी ने की है। हिन्दू धर्म के पंच देवों में एक; भगवान शिव की मानस पूजा का विशेष महत्व माना गया है। शिव को ऐसे देव के रुप में जाना जाता है; जो स्वयं सरल हैं, भोले हैं और मात्र बेलपत्र चढ़ाने, जल के अर्पण, यहां तक कि; शिव व्रत की कथानुसार अनजाने में की गई आराधना से भी प्रसन्न हो जाते हैं।
शिव मानस पूजा के लिए सामग्री की लिस्ट
भगवान शिव को सिर्फ भक्ति मार्ग द्वारा प्राप्त किया जा सकता है; अपितु किसी आडम्बर से नही। “शिव मानस पूजा” में हम प्रभू को भक्ति द्वारा मानसिक रूप से तैयार की हुई वस्तुएं समर्पित करते हैं; अर्थात; किसी भी बाहरी वस्तुओं या पदार्थो का उपयोग नहीं किया जाता। मात्र मन के भावों मानस से ही भगवान को सभी पदार्थ अर्पित किए जाते हैं।
मानस पूजा में कौन सा पुष्प चढ़ाएं
पुराणों में लिखा है कि; ब्रह्मर्षि नारद ने देवताओं के राजा इन्द्र को बताया कि; असंख्य बाहरी फूलों को देवताओं को चढाने से जो फल मिलता है, वही फल मात्र एक मानस फूल के अर्पण से ही हो जाता है। इसलिए मानस फूल श्रेष्ठ है।
शिव मानस पूजा का महत्व क्या है
शास्त्रों में भगवान “शिव मानस पूजा” को हजार गुना अधिक महत्वपूर्ण बताया गया है। आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा रचित “शिव मानस पूजा” मंत्र में मन और मानसिक भावों से शिव की पूजा की गई है। इस पूजा की विशेषता यह है कि; इसमें भक्त भगवान को बिना कुछ अर्पित किए बिना मन से अपना सब कुछ सौंप देता है।
शिव मानस पूजा की विशेष बात क्या है
आदि गुरु शंकराचार्य द्वारा रचे गए इस स्त्रोत में भगवान की ऐसी पूजा है जिसमें भक्त किसी भौतिक वस्तु को अर्पित किये बिना भी, मन से अपनी पूजा पूर्ण कर सकता है। आदि गुरू शंकराचार्य द्वारा रचित शिव मानस पूजा, भगवान शिव की एक अनुठी स्तुति है। यह स्तुति शिव भक्ति मार्ग के अत्यंत सरल एवं एक अत्यंत गुढ रहस्य को समझाता है। यह स्तुति भगवान भोलेनाथ की महान उदारता को प्रस्तुत करती है।
इस स्तुति को पढ़ते हुए भक्तों द्वारा भगवान शिव को श्रद्धापूर्वक मानसिक रूप से समस्त पंचामृत दिव्य सामग्री समर्पित की जाती है।
“शिव मानस पूजा” में मन: कल्पित यदि एक फूल भी चढ़ा दिया जाए, तो करोड़ों बाहरी फूल चढ़ाने के बराबर होता है। इसी प्रकार मानस- चंदन, धूप, दीप नैवेद्य भी भगवान को करोड़ गुना अधिक संतोष देते हैं। अत: मानस-पूजा बहुत अपेक्षित है।
वस्तुत: भगवान को किसी वस्तु की आवश्यकता नहीं, वे तो भाव के भूखे हैं। संसार में ऐसे दिव्य पदार्थ उपलब्ध नहीं हैं, जिनसे परमेश्वर की पूजा की जा सके, इसलिए पुराणों में मानस-पूजा का विशेष महत्त्व माना गया है।
शिव मानस पूजा की तैयारी
मानस-पूजा में भक्त अपने इष्ट साम्बसदाशिव को सुधासिंधु से आप्लावित कैलास-शिखर पर कल्पवृक्षों से आवृत कदंब-वृक्षों से युक्त मुक्तामणिमण्डित भवन में चिन्तामणि निर्मित सिंहासन पर विराजमान कराता है। स्वर्गलोक की मंदाकिनी गंगा के जल से अपने आराध्य को स्नान कराता है, कामधेनु गौ के दुग्ध से पंचामृत का निर्माण करता है। वस्त्राभूषण भी दिव्य अलौकिक होते हैं। पृथ्वीरूपी गंध का अनुलेपन करता है। अपने आराध्य के लिए कुबेर की पुष्पवाटिका से स्वर्णकमल पुष्पों का चयन करता है। भावना से वायुरूपी धूप, अग्निरूपी दीपक तथा अमृतरूपी नैवेद्य भगवान को अर्पण करने की विधि है। इसके साथ ही त्रिलोक की संपूर्ण वस्तु, सभी उपचार सच्चिदानंदघन परमात्मप्रभु के चरणों में भावना से भक्त अर्पण करता है।
यह है- मानस-पूजा का स्वरूप। इसकी एक संक्षिप्त विधि पुराणों में वर्णित है।
मानस पूजा का सबसे बड़ा आनंद क्या है
मानस पूजा साधक के मन को एकाग्र व शांत करती है। शिव मानस पूजा में जितना समय भगवान के स्मरण और ध्यान में बीतता है अर्थात् व्यक्ति अन्तर जगत में रहता है, उतने ही समय वह बाहरी जगत से प्राप्त तनाव व विकारों से दूर रहकर मानसिक स्थिरता प्राप्त करता है। मानस पूजा में साधक बाहरी पूजा में आने वाली अनेक भय, बाधा और कठिनाईयों से मुक्त होता है। साधक के पास भगवान के सेवा हेतु मानसी पूजा सामग्री जुटाने के लिये असीम क्षेत्र होता है। इसके लिये वह भूलोक से शिवलोक तक पहुँचकर भगवान की उपासना के लिये श्रेष्ठ व उत्तम साधन प्रयोग कर सकता है। जैसे वह पृथ्वी रुपी चन्दन, आकाश रुपी फूल, वायुरुपी धूप, अग्निदेव रुपी दीपक, अमृत के समान नैवेद्य आदि से भगवान की पूजा कर सकता है। इस प्रकार वह बंधनमुक्त होकर भावनापूर्वक मानस पूजा कर सकता है।
मानस पूजा से क्या ईश्वर की प्राप्ति होती है
मानस पूजा में समय बीतने के साथ भक्त ईश्वर के अधिक समीप होता जाता है। एक स्थिति ऐसी भी आती है, जब भक्त, भगवान और भावना एक हो जाते हैं। साधक स्वयं को निर्विकारी, वासनारहित स्थिति में पाता है और सरस हो जाता है। इससे बाहरी जगत और बाहरी पूजा भी आनंद भर जाती है।
इस स्तुति में मात्र कल्पना से शिव को सामग्री अर्पित की गई है और पुराण कहते हैं कि; साक्षात भगवान शिव ने इस पूजा को स्वीकार किया था।
।। श्री शिव मानस पूजा स्तोत्र ।।
रत्नैः कल्पितमासनं हिमजलैः स्नानं च दिव्याम्बरं
नानारत्नविभूषितं मृगमदामोदाङ्कितं चन्दनम्।
जातीचम्पकबिल्वपत्ररचितं पुष्पं च धूपं तथा
दीपं देव दयानिधे पशुपते हृत्कल्पितं गृह्यताम्॥१॥
सौवर्णे नवरत्नखण्डरचिते पात्रे घृतं पायसं भक्ष्यं
पञ्चविधं पयोदधियुतं रम्भाफलं पानकम् ।
शाकानामयुतं जलं रुचिकरं कर्पूरखण्डोज्ज्वलं ताम्बूलं
मनसा मया विरचितं भक्त्या प्रभो स्वीकुरु॥२॥
छत्रं चामरयोर्युगं व्यजनकं चादर्शकं निर्मलम्
वीणाभेरिमृदङ्गकाहलकला गीतं च नृत्यं तथा।
साष्टाङ्गं प्रणतिः स्तुतिर्बहुविधा ह्येतत्समस्तं मया
सङ्कल्पेन समर्पितं तवविभो पूजां गृहाण प्रभो॥३॥
आत्मा त्वं गिरिजा मतिः सहचराः प्राणाः शरीरं गृहं
पूजा ते विषयोपभोगरचना निद्रा समाधिस्थितिः।
सञ्चारः पदयोः प्रदक्षिणविधिः स्तोत्राणि सर्वागिरो
यद्यत्कर्म करोमि तत्तदखिलं शम्भो तवाराधनम्॥४॥
करचरण कृतं वाक्कायजं कर्मजं वा
श्रवणनयनजं वा मानसंवापराधम्।
विहितमविहितं वा सर्वमेतत्क्षमस्व
जय जय करुणाब्धे श्रीमहादेवशम्भो॥५॥
॥ इति श्रीमच्छङ्कराचार्यविरचिता शिवमानसपूजा संपूर्ण॥
उपरोक्त जानकारी श्री महाकालेश्वर ज्योतिर्लिङ्ग, उज्जैन के साहित्य केंद्र द्वारा उपलब्ध कराई गई।