श्रीराम अपनी दक्षिण यात्रा में किस मार्ग से गए इसकी खोज उन्हें चित्रकूट से नर्मदा तट जबलपुर जिले की शहपुरा तहसील तक लाता है। जहां श्रीराम ने नर्मदा को पार किया वह जगह रामघाट के नाम से जानी जाती है।मां नर्मदा यहां शांत, गंभीर और ममतामयी लगती हैं। उनका पाट विशाल है और जलराशि नीली आभा लिए किसी सरोवर का आभास देती है। इस स्थान पर शहपुरा छोर के पास एक पुराना राम मंदिर है। बदलते समय ने इसके मूल स्वरूप को काफी बदल दिया है। चरगवां छोर का तट सुरम्य है। नदियों के नारे इंसानों द्वारा किए गए कथित विकास के हस्तक्षेप के निशान यहां कम हैं। लोगों ने नर्मदा की दैवीय छटा को कम से कम नुकसान पहुुंचाया है।
नर्मदा पार कर श्रीराम ने इसी पहाड़ पर रात काटी थी
रामघाट राममंदिर, राम कुंड, रामवन चरगवां वाले किनारे से लगी हरी-भरी पर दुर्गम पहाड़ी है। हर तरफ एकांत, चुप्पी और नर्मदा की कलकल मन को आध्यात्म की तरफ ले जाती है। दोहरी पहाड़ी की चोटी पर बहुत पुराना एक मंदिर है। समय के साथ इसका नक्शा, बनावट और स्वरूप काफी बदल गया है, पर पत्थर के नक्काशीदार पाए और भारी दरवाजे मौजूदा युग के कतई नहीं हैं। जरा बारीक नजर डाले तो इसका अतीत झांकने लगता है। पहाड़ी के इसी चौकोर समतल से नीचे गहराई में चट्टानों और हरे-भरे जंगल से घिरा कांच से चमकते पानी का कुंड है, जो राम कुंड के नाम से ज्ञात है। इस तक पहुंचने का जमीन से कोई रास्ता पता नहीं चलता। पहाड़ी तक पहुंचने के लिए भी सीधी ऊंचाई और पहाड़ियों से घिरी खाई का बाजू थामे एक पतली सी पगडंडी है, जिस पर एक-एक कदम चलते हुए यह डर सा साथ चलता है कि जरा पैर फिसला और खाई में गिरे। ऊपर पहुंच कर फिर राम कुंड के लिए बिना रास्ते के नीचे उतरना होता है। नर्मदा पार कर श्रीराम ने इसी पहाड़ पर रात काटी थी। सुबह कुंड में स्नान किया। फल-फूल का आहार लिया और दक्षिण की ओर रवाना हुए। यहीं है वह रामवन जो आज भी आदिकाल जैसा आदिम नजर आता है। कुंड से निकली जलधारा यहां-वहां होते हुए नर्मदा में मिल जाती है पर कुंड का पानी कभी खाली नहीं होता है।
गुप्तेश्वर महादेव का शिवलिंग भगवान श्रीराम ने अपने हाथों से बनाया था
श्रीराम ने यहीं नर्मदा तट पर एक माह का गुप्तवास भी बिताया है। इस दौरान भगवान श्रीराम ने रेत से शिवलिंग बनाकर अपने प्रिय आराध्य का पूजन किया था। जो वर्तमान में गुप्तेश्वर महादेव के नाम से जाना जाता है। मतस्य पुराण, नर्मदा पुराण, शिवपुराण, बाल्मिकी रामायण, रामचरित मानस व स्कंद पुराण में जिस गुप्तेश्वर महादेव के प्रमाण मिलते हैं।