आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा भी कहते है। इस दिन गुरु की पूजा का विधान है। कहते हैं कि इस दिन गुरु की पूजा करने से वर्ष भर की पूर्णिमाओं के सत्कर्मो का फल मिलता है। महाभारत के रचयिता वेद व्यास का जन्मदिन भी आज ही के दिन मनाया जाता है। उन्होंने चारो वेदों की भी रचना की थी, इस कारण उन्हें वेद व्यास कहा जाता है। उन्हें आदि गुरु भी कहा जाता है और, उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा भी कहा जाता है।
शास्त्रों में गु का अर्थ बताया गया है- अंधकार या मूल अज्ञान और रु का अर्थ बताया गया है- उसका निरोधक। अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने वाले को "गुरु" कहा जाता है। भारतीय संस्कृति में गुरु को भगवान का दर्जा दिया गया है। पुराणों में भी गुरु की महत्ता का वर्णन है। गुरु वैसी शक्ति हैं, जिनके माध्यम से हम पूरा विश्व जीत सकते हैं। गुरु पूर्णिमा का एक अनोखा महत्त्व भी है। अन्य दिनों की तुलना में इस तिथि पर गुरुतत्त्व सहस्र (हजार) गुना अधिक कार्यरत होता है। इसलिए इस दिन किसी भी व्यक्ति द्वारा जो कुछ भी अपनी साधना के रूप में किया जाता है, उसका फल भी उसे सहस्र गुना अधिक प्राप्त होता है।
ऐसे करें गुरु पूजा
इस दिन (गुरु पूजा) प्रात:काल स्नान पूजा आदि नित्य कर्मों से निवृत्त होकर उत्तम और शुद्ध वस्त्र धारण कर गुरु के पास जाना चाहिए। उन्हें ऊंचे सुसज्जित आसन पर बैठाकर पुष्पमाला पहनानी चाहिए। इसके बाद वस्त्र, फल, फूल व माला अर्पण करनी चाहिए। इस प्रकार श्रद्धापूर्वक पूजन करने से गुरु का आशीर्वाद प्राप्त होता है।
गुरु के आशीर्वाद से ही विद्यार्थी को विद्या आती है। उसके हृदय का अज्ञानता का अन्धकार दूर होता है। गुरु का आशीर्वाद ही प्राणी मात्र के लिए कल्याणकारी, ज्ञानवर्धक और मंगल करने वाला होता है। संसार की संपूर्ण विद्याएं गुरु की कृपा से ही प्राप्त होती हैं और गुरु के आशीर्वाद से ही दी हुई विद्या सिद्ध और सफल होती है। इस पर्व को श्रद्धापूर्वक मनाना चाहिए।
गुरु पूजन का मन्त्र है-
गुरु ब्रह्मा गुरुर्विष्णु: गुरुदेव महेश्वर:।
गुरु साक्षात्परब्रह्म तस्मैश्री गुरुवे नम:।।