भोपाल। सुप्रीम कोर्ट ने मध्यप्रदेश शासन को 2 से अधिक बच्चों वाले कर्मचारियों के खिलाफ कार्यवाही करने के लिए स्वतंत्र कर दिया है। न्यायालय के कर्मचारियों द्वारा सेवा नियम 2016 के तहत लगाए गए जुर्माने के खिलाफ अपील की थी। सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया कि न्यायालय के कर्मचारी सिविल सेवा नियम 2016 के अंतर्गत आते हैं और मध्यप्रदेश शासन एवं मध्य प्रदेश के न्यायालयों के जज नियम का उल्लंघन करने वाले सभी कर्मचारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र है।
आपको बता दें कि चीफ जस्टिस एसए बोबडे की अगुवाई वाली पीठ ने 7 अगस्त 2019 को मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के उस आदेश में संशोधन किया था, जिसमें जिला जजों के वेतन वृद्धि को वापस नहीं लेने का निर्देश दिया गया था। इस मामले में दो से अधिक बच्चों वाले कर्मचारियों के वेतन रोकने के साथ ही दो इंक्रीमेंट (वेतन बढोतरी) रोकने के आदेश दिये गये थे। जिसके खिलाफ कई कर्मचारियों ने हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया था। इसके बाद हाईकोर्ट ने कर्मचारियों की वेतन वृद्धि रोकने की सजा को बरकरार रखा था।
मामले में सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा था कि दो या तीन वेतन बढ़ोतरी (इंक्रीमेंट) रोकने का जुर्माना गैर-आनुपातिक है और आपराधिक आचरण के आनुपातिकता सिद्धांत के खिलाफ है। यह फैसला हाईकोर्ट ने कर्मचारियों द्वारा दायर 9 याचिकाओं पर सुनाया था, जिनमें कर्मचारियों पर लगाए गए जुर्माने को ग़लत बताया गया था।
आपको बता दें कि सिविल सर्विसेज अधिनियम 1965 के नियम 22 के उपखंड (4) के अनुसार यदि किसी कर्मचारी के दो से अधिक बच्चे होते हैं और यदि उनमें से किसी एक बच्चे का जन्म 26 जनवरी 2001 के बाद हुआ हो तो उसे सेवा में बुरे आचरण वाला माना जाएगा।
मध्य प्रदेश जिला अदालत प्रतिष्ठान 2016 के नियम के अनुसार उपरोक्त प्रावधान राज्य के सभी सरकारी कर्मचारियों पर लागू होगा। क्योंकि राज्य न्यायपालिका के कर्मचारी 2016 के सेवा नियमों द्वारा शासित होते हैं, वैधानिक प्रावधानों के अनुसार 26 जनवरी 2001 के बाद पैदा हुए दो से अधिक बच्चों वाला कर्मचारी नियमों का उल्लंघन करेगा और इसे सर्विस में अपराध माना जाएगा।
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