अयोध्या: कुछ सही करने का वक्त / EDITORIAL by Rakesh Dubey

Bhopal Samachar
इलेक्ट्रॉनिक मीडिया हो या प्रिंट मीडिया हर जगह इन दिनों यही एक सवाल पूछा जा रहा है अब अयोध्या से आगे और अयोध्या में आगे क्या ? इस सवाल से कांग्रेस और भाजपा को नत्थी करना एंकर नहीं भूलते। अटलबिहारी वाजपेयी से लेकर नरेंद्र मोदी और जवाहर लाल नेहरु से प्रियंका वाड्रा तक के श्रेय और कृतित्व गिनाये जाने लगते हैं। इतिहास और वर्तमान को मिलाकर सोचने पर जो चित्र उभरता है वो भारत के भविष्य का चित्र है जो भारत के सामने गंभीर चुनौतियाँ दिखा रहा है।

इस बात से कोई इंकार नहीं करेगा कि अयोध्या में राम मंदिर का निर्माण भाजपा के चुनावी-घोषणापत्र का शुरू से ही हिस्सा रहा है। यह बात अलग है कि गठ्बन्धन धर्म निभाने के नाम पर वाजपेयी के शासनकाल में इसे ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था,पर इसका चुनावी-लाभ उठाने की कोशिशें लगातार हुई हैं और आगे भी हो रही हैं । बिहार और उत्तर प्रदेश के आगामी चुनावों में तो भाजपा मंदिर-निर्माण का हवाला देकर वोट जुटाने की कोशिश करेगी ही, लगभग चार साल बाद जब लोकसभा के लिए चुनाव होंगे, तब तक राम-मंदिर का निर्माण हो जायेगा, और एक बार फिर चुनावी वैतरणी पार | हिंदुत्व की और मुड रही कांग्रेस भी मध्यप्रदेश प्रदेश के उपचुनावों में  ऐसे ही फार्मूले का इस्तेमाल प्रयोग के रूप में कर रही है | उसने भी अब पी व्ही नरसिंहराव को तरजीह देना शुरू की है जिसके नाम से कांग्रेस को सालों परहेज रहा है | वैसे दोनों के समझना चाहिए कि अतीत के सहारे भविष्य को संवारने का लालच बुरी चीज़ है।

बीते इतिहास से भविष्य का सबक फिर एक अवसर के रूप में हमारे हाथ में है कि हम श्रीराम मंदिर को ही ऐसी प्रेरणा के रूप में देखें-समझें। ‘भगवान राम का मंदिर, सबके लिए  एक राष्ट्रीय भावना की अभिव्यक्ति और देश की पहचान बनें| श्रीराम अयोध्या का भरण-पोषण करते रहे हैं, आगे भी करेंगे। यह बात अपने आप में भरोसा देने वाली है कि इस विवाद को लेकर न्यायालय में जाने वाले मुस्लिम पक्षकार को भी श्रीराम मंदिर निर्माण के इस कार्यक्रम में आमंत्रित किया गया और वे वहां प्रधानमंत्री के लिए ‘रामचरित मानस’ की एक प्रति भेंट करने के लिए लेकर गए। अयोध्या में फूल बेचने वाले मुस्लिम व्यापारियों को भी यही लग रहा है कि अब उनके भी अच्छे दिन आएंगे।

जरा विचार कीजिये अब, जबकि विवाद समाप्त हो गया है और अयोध्या में आने वाले भारत के कल का एक नया अध्याय लिखा जा रहा है, अयोध्या को भारतीयता का एक नया उदाहरण बनाया जा रहा है तो इतिहास के खूंरेजी पृष्ठों को राजनीति क्यों पलट रही है ?  क्यों यह बातें उछाली जा रही हैं कि बाबरी मस्जिद थी और रहेगी | और इन उछलती बातों का वे लोग क्यों प्रतिकार नहीं कर रहे जिनका शगल सामाजिक समरसता है |

आधुनिक राम भक्तों को भी पलट कर देखना चाहिए की श्रीराम-कथा सामाजिक समरसता का संदेश देती है, निषाद को गले लगाकर, शबरी के जूठे बेर खाकर और वानर जाति की सहायता से रावण को पराजित करके राम ने सामाजिक भेदभाव को समाप्त करने के अनेक उदाहरण प्रस्तुत किये। अब भक्तों का यह दायित्व बनता है कि वे इस सामाजिक समरसता को विस्तार दें। और यह तभी संभव है जब धर्म की राजनीति करने वाले, धर्म के नाम पर अपनी राजनीति साधने वाले, अपनी दृष्टि और दिशा दोनों बदलें।श्री राम मंदिर के नाम पर देश में कटुता का वातावरण पैदा करने की कोशिशों का सही उत्तर देने का अब समय आ गया है। यह उत्तर हम नागरिकों को देना है। राम इस देश के आराध्य है और यह राष्ट्र भारत तो राम के युग से भी प्राचीन है| अयोध्या के राजा राम भी इस राष्ट्र की वन्दना करते रहे हैं | राष्ट्र प्रथम को वरीयता देना, हर उस नागरिक का धर्म है, जो यहाँ जन्मा है |
देश और मध्यप्रदेश की बड़ी खबरें MOBILE APP DOWNLOAD करने के लिए (यहां क्लिक करेंया फिर प्ले स्टोर में सर्च करें bhopalsamachar.com
श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
पूर्व में प्रकाशित लेख पढ़ने के लिए यहां क्लिक कीजिए
आप हमें ट्विटर और फ़ेसबुक पर फ़ॉलो भी कर सकते हैं

#buttons=(Ok, Go it!) #days=(20)

Our website uses cookies to enhance your experience. Check Now
Ok, Go it!