आज हैकिंग एक आम बात होती जा रही है। कभी कभी सरकारें भी हैकिंग कराती है, तो कभी प्रायवेट हैकर ठेके पर इस कारगुजारी को अंजाम देते हैं। “ हैकर’ शब्द का परिचय विश्व को 1980 के दशक में मिला था। ‘द हैकर्स पेपर्स’ में ‘हैकर’ शब्द का उल्लेख आया था। इसके बाद 1982 में आई फिल्म ‘ट्रॉन’ में एक पात्र कंप्यूटर सिस्टम में घुसपैठ का अपना इरादा बताते हुए दिखा था। उस पात्र का डॉयलॉग था कि मैं इस कंप्यूटर में हैकिंग जैसा कुछ कर रहा हूं। इसके बाद ‘हैकिंग’ शब्द का इस्तेमाल आम बोलचाल में किया जाने लगा। यहां तक कि कुछ देशों में यह चर्चा भी होने लगी कि कैसे हैकर बनकर राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा बन सकते हैं। भारत में अब यह मर्ज फैल रहा है इससे पहले यह समस्या बने इसका इलाज़ जरूरी है। इसी की सहोदरा क्रिप्टो करेंसी है।
आमतौर पर हैकर वह व्यक्ति कहलाता है जो सुरक्षा के सारे उपायों को धता बताते हुए किसी कंप्यूटर या संबंधित नेटवर्क में घुसने में कामयाब हो जाता है। दुनिया उसे मूल रूप से खलनायक (विलेन) के रूप में ही देखती है। हैकरों की कुछ कैटेगरी भी बनाई गईं। जैसे कंप्यूटर सिक्टोरिटी की खामियां उजागर करने वाले हैकरों को ‘व्हाइट हैट’ नाम दिया गया। इन्हें एथिकल हैकर माना गया और कहा गया कि ये तो सिक्योरिटी से जुड़ी दिक्कतों को हल करने में दुनिया की मदद करते हैं। एक श्रेणी ‘ग्रे हैट हैकर्स’ की है। ऐसे हैकर वे लोग होते हैं जो सिर्फ मजे के लिए किसी नेटवर्क या सिस्टम को हैक करते हैं। तीसरी श्रेणी में ‘ब्लैक हैट हैकर्स’ आते हैं, जो बुरे इरादे से डाटा की चोरी करते हैं या किसी सिस्टम-नेटवर्क को हैक करके उसके बदले पैसा मांगते हैं। वैसे आज व्हाइट हैट हैकरों को कंप्यूटर और सूचना जगत में एक जरूरत के रूप में देखा जाता है।
आपको आश्चर्य होगा कि कई बड़ी इंटरनेट कंपनियां समय-समय जानकार हैकरों को पुरस्कार तक देती हैं ताकि वे उनके बनाये सिस्टम और नेटवर्क की खामियां बता सकें। जैसे वर्ष २०१६ में इंटरनेट कंपनी ‘गूगल’ ने ऐलान किया था कि वह अपने ऑपरेटिंग सिस्टम क्रोम को हैक करने वाले सिक्योरिटी रिसर्चरों को 2.7 मिलियन डॉलर (करीब 17 करोड़ रुपये) देगी। गूगल ने हैकिंग कॉन्टेस्ट के तहत इसके अलावा उन लोगों को भी 1.5 लाख डॉलर का पुरस्कार देने की घोषणा की थी जो कि उसके क्रोम ओएस बेस्ड एचपी या एसर क्रोमबुक को पूरी तरह से हैक करके दिखाएं। निजी कंपनियों के अलावा सरकारें भी अपने स्तर पर हैकिंग रोकने के इंतजाम करती रही हैं। जैसे भारत में इसके लिए वर्ष 2000 में सूचना एवं प्रौद्योगिकी कानून लागू किया गया था। लेकिन डिजिटल लेनदेन को लेकर इस कानून की कुछ खामियां नजर आई हैं। बेंगलुरू के थिंक टैंक सेंटर फॉर इंटरनेट एंड सोसायटी ने एक खामी की ओर संकेत भी किया था।
क्रिप्टो करेंसी दुनिया भर के काले धंधों की सरताज करेंसी है। हैकिंग और अन्य आपराधिक गतिविधियों में बिटकॉइन के बढ़ते इस्तेमाल ने यह भी साफ किया है कि मामला महज सावधानी हटने पर दुर्घटना का नहीं है, बल्कि कई किस्से तो बिटकॉइन या अन्य वर्चुअल करेंसियों में निवेश को पांव पर खुद कुल्हाड़ी मारने जैसा ठहराते हैं। 2018 में कुछ हैकरों ने एक अन्य चर्चित क्रिप्टो करेंसी में फर्जीवाड़ा कर जापान के एक एक्सचेंज को करीब 38 अरब रुपये के बराबर चूना लगा दिया था। एशिया में खुद को बिटकॉइन और क्रिप्टो करंसी का सबसे बड़ा एक्सचेंज बताने वाले कॉइनचेक में हुई इस घटना को 2014 में जापान के ही बिटकॉइन एक्सचेंज में 48 अरब येन की हैंकिंग से भी बड़ा पाया गया था। क्रिप्टो करेंसी में चूंकि लेनदेन करने वालों की कोई जानकारी नहीं मिल पाती है, इसलिए ज्यादातर सरकारें इस करेंसी को संदेह की नजर से ही देखती हैं। हमारे देश में भी रिजर्व बैंक ने बिटकॉइन में लेनदेन पर पाबंदी लगा रखी है। चूंकि लेनदेन एक खास ब्लॉकचेन प्रक्रिया से होता है। ऐसे में सिर्फ यह पता चलता है कि कोई लेनदेन हुआ है, पर ऐसा करने वालों की जानकारी नहीं मिलती। यही वजह है कि मनी लॉन्ड्रिंग यानी काले धन को सफेद में बदलने की प्रक्रिया में बिटकॉइन जैसी आभासी मुद्राएं काफी मददगार साबित हुई है।
भारत में मौजूद अपने खाते में रुपये बिटकॉइन में बदलवाकर डाल दिए जाएं और उन्हें दुनिया में कहीं भी जाकर डॉलर में भुना लिया जाए, तो उसकी धरपकड़ नहीं हो सकती। हवाला, टैक्स चोरी, मादक पदार्थों की खरीद-फरोख्त, हैंकिंग और आतंकी गतिविधियों में बिटकॉइन के बढ़ते इस्तेमाल से अर्थशास्त्रियों, सुरक्षा एजेंसियों और सरकारों तक की नींद उड़ती रहती है।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।