यूँ तो भारत में अनेक अबूझ किस्म खेल चला करते हैं, इनमे से एक कर मूल्यांकन होता है। वो आयकर हो या अन्य कोई कर, कर मूल्यांकन की प्रक्रिया हमेशा जटिल थी और रहेगी। इसे पूरी तरह समझने का दावा सिर्फ दो व्यक्ति कर सकते हैं। पहला –निर्धारण अधिकारी दूसरा – निर्धारण करवाने वाला कर सलाहकार। कर सलाहकार भी कर निर्धारण कब और कैसे आसानी से कराता है, इसके कई किस्से कहानी सब जानते हैं।
अब सरकार ने आयकर को सरल बनाने के लिए फेसलेस एसेसमेंट का नया प्रयोग शुरू किया है। वैसे तो फेसलेस एसेसमेंट भी कर निर्धारण की एक सामान्य-सी प्रक्रिया है, जहां ऑनलाइन आपका निर्धारण होता है और आपको यह भी पता नहीं चलता कि कौन-सा अधिकारी आपका मूल्यांकन कर रहा है। उस अधिकारी को भी आपके बारे में कुछ पता नहीं होता कि आप कौन हैं? वह केवल वित्तीय लेन-देन का ऑनलाइन मूल्यांकन होता है। फेसलेस एसेसमेंट को अगर साधारण भाषा में समझें, तो यह टेक्नोलाजी के माध्यम से करदाता द्वारा जमा किये गये कर का मूल्यांकन है। यह प्रक्रिया तो शुरू भी हो चुकी है। कहते हैं इससे पारदर्शिता आयेगी और भ्रष्टाचार को रोकने में सहायता मिलेगी। चूंकि इस प्रक्रिया के तहत करदाता और आयकर अधिकारी का एक-दूसरे से आमना-सामना नहीं होगा, ऐसे में तमाम तरह के कदाचार पर लगाम लगेगी।
अगर यह सब मान भी लिया जाये तो कर निर्धारण की अपील अभी फेसलेस नहीं है। इसमें करदाता और अधिकारी का आमना-सामना होता है। एक करदाता को अपील के लिए आयकर अधिकारी के पास जाना ही पड़ता है, लेकिन अब जिस प्रक्रिया को लाने की बात हो रही है, उसमें अपील भी फेसलेस होगी। ऐसा होता है तो सराहनीय बात होगी।
अभी तक अपील करने के लिए आयकर अधिकारी या कमिश्नर के पास जाना पड़ता है अब एक नयी प्रक्रिया की शुरुआत की जा रही है, जहां अपील भी ऑनलाइन होगी और आपकी अपील किसी अधिकारी को सौंप दी जायेगी, लेकिन आप जान नहीं पायेंगे कि किस अधिकारी को आपकी अपील सौंपी गयी है। अगर चार्टर की बात करें, तो इसका अर्थ होता है पारदर्शी तरीके से सभी चीजें विभाग द्वारा घोषित कर देना कि वे किसी तरीके से काम करेंगे, किस तरीके से आपका कर निर्धारण होगा आदि।
वैसे जब भी जिस कार्य में पारदर्शिता लायी जाती है, तो भ्रष्टाचार की संभावनाएं कम हो जाती हैं। इससे कर विभाग और करदाता, दोनों को चीजों को समझने में आसानी होगी, गलती करने की भी संभावना कम हो जायेगी| यहां किसी विशेष परिस्थिति में ही कोई गलती होगी। असल में, चार्टर करदाता और कर विभाग दोनों के लिए सीमाएं तय कर देता है।
सरकार का आकलन है कि देशभर में एक से डेढ़ करोड़ व्यक्ति ही कर का भुगतान कर रहे हैं; बाकी लोग भुगतान नहीं कर रहे हैं। इसका सबसे बड़ा नुकसान है कि सरकार को कर की दर बढ़ानी पड़ती है, लेकिन अब कोशिश यह है कि कर के दायरे को और बढ़ा दिया जाये। इस कारण पारदर्शिता बढ़ेगी। अगर सब ठीक से होता है तो इससे धीरे-धीरे पारदर्शिता की प्रक्रिया स्वतः विकसित होती चली जायेगी और इसमें टेक्नोलाजी की बहुत बड़ी भूमिका होगी।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।