कई बार आपकी जीत इसलिए सुनिश्चित हो जाती है क्योंकि आप हार मानने के लिए तैयार नहीं होते। चंबल के लाडले मनोज शर्मा की कहानी कुछ ऐसी ही है। स्कूल में 33% भी नहीं आते थे। ग्यारहवीं तक नकल करके पास हुए। 12वीं में नकल नहीं कर पाए इसलिए फेल हो गए। ग्वालियर में टेंपो चलाया, सिर पर छत नहीं थी भिखारियों के संग सोए, दिल्ली में अफसरों के कुत्ते घुमाने की नौकरी की लेकिन हार नहीं मानी और आज मनोज शर्मा भारतीय पुलिस सेवा के जांबाज अधिकारी है। पूरा ग्वालियर-चंबल उनकी जिद और जुनून पर गर्व करता है।
9वीं से 11वीं तक नकल से पास हुए, 12वीं में फेल हो गए
मनोज शर्मा का जन्म मुरैना, मध्यप्रदेश में हुआ था। नौवीं, दसवीं, और ग्यारहवीं में तीसरे स्थान पर रहे। उन्होंने बताया कि इसके लिए उन्होंने नकल का सहारा लिया लेकिन 12वीं परीक्षा में नकल करना मुश्किल था इसलिए वे फेल हो गए।
SDM से मिले तो सिर्फ एक सवाल पूछा, प्रतियोगी परीक्षा कैसे पास की
उन्होंने बताया कि 12वीं परीक्षा में पास होने के लिए उन्होंने नकल की सारी तैयारी कर ली थी। पर उस वक्त वहां के एसडीएम ने स्कूल में नकल न होने के लिए ज्यादा से ज्यादा अच्छे इंतजाम करवाएं। एसडीएम की पावर को देखकर मनोज के मन में ऐसा ही पावरफुल इंसान बनने का ख्याल आया। चूंकि वे 12वीं में फेल हो गए थे इसलिए उन्होंने और उनके भाईयों ने टैंपो चलाया। एक बार की घटना है, उनका टैंपो पकड़ा गया तो मनोज एसडीएम से मदद मांगने गए, जब उनसे मिले तो उन्होंने उनसे बस एक प्रश्न पूछा कि उन्होंने कैसे तैयारी की।
लाइब्रेरी में चपरासी की नौकरी ने लाइफ बदल दी
उस वक्त मनोज ने एसडीएम को नहीं बताया था कि वो 12वीं में फेल हो गए हैं। उनसे मिलने के कुछ दिनों बाद वे ग्वालियर आ गए। चूंकि मनोज के पास पैसे नहीं थे इसलिए वो मंदिर में भिखारियों के पास सोते थे। उस दौरान मनोज को लाइब्रेरी कम चपरासी की नौकरी मिल गई।लाइब्रेरी में गोर्की और अब्राहम लिंकन से लेकर मुक्तबोध जैसे बड़े-बड़े लोगों के बारे में पढ़ा और उनके द्वारा किए काम को समझा।
दिल्ली में कुत्ते घुमाने की नौकरी की
मनोज की एसडीएम बनने की तैैयारी शुरू हो गई थी। वे एक लड़की से प्यार करते थे लेकिन 12वीं फेल होने के कारण वे अपने दिल की बात कहने से डरते थे। फिर वे ग्वालियर से दिल्ली आ गए। क्योंकि वहां भी मनोज के पास पैसे नहीं थे इसलिए उन्होंने कुत्ते टहलाने की नौकरी मिल गई। उस वक्त उन्हें चार सौ रुपए प्रति कु्त्ते के मिलते थे।
दिव्यकीर्ति सर ने फीस भरी थी
मनोज के सर दिव्यकीर्ति ने इनके एडमिशन की फीस भरी थी। पहले अटेंप्ट में प्री बड़ी आसानी से निकाल लिया पर दूसरे और तीसरे अटेंप्ट में क्लीअर नहीं हुआ। चौथी बार में परीक्षा उत्तीर्ण की और मेंस में पहुंच गए। चूंकि वे अंग्रेजी में कमजोर थे इसलिए मेंस में दिक्कतें आई।
एक लड़की से प्यार करते थे, वादा किया था इसलिए IPS बन गए
वे बताते है कि वे एक लड़की से प्यार करते थे और उससे कहा था कि अगर तुम साथ दो तो मैं दुनिया पलट सकता हूं। इस तरह उन्होंने मेंस भी क्लीअर कर लिया और वो आईपीएस बन गए।
MORAL OF THE STORY
मोरल ऑफ द स्टोरी यह है कि किसी भी परीक्षा का रिजल्ट और किसी भी तरह की नौकरी आपका करियर डिसाइड नहीं कर सकती जब तक कि आप उसे एक्सेप्ट ना कर लें। जब आप अपनी लाइफ का टारगेट सेट कर लेते हैं तो आपको वह आवाजें प्रभावित नहीं कर पाती जिन से आहत होकर कुछ स्टूडेंट्स सुसाइड कर लेते हैं।