नमस्कार, मध्यप्रदेश के कॉलेज बेरोजगार पैदा करने की फैक्ट्रियां हो गए है। कॉलेज में फीस देकर हम सभी कॉलेज से बेरोजगार बनकर बाहर निकलते है। ये इसलिए है क्योंकि शिक्षकों और कर्मचारियों के पद युगों से खाली छोड़ दिये गए है क्योंकि जब विद्यार्थियों को पढ़ाने वाला ही नही होगा तो आज का नौजवान, रोजगार पाने वाला नही बल्कि बेरोजगार नौजवान ही बन पायेगा। छोटे-छोटे कामों के लिए आम आदमी सरकारी कार्यालयों के दस दस चक्कर काट रहा है। क्योंकि सरकारें कर्मचारियों की भर्ती ही नही कर रही है।
जब गांव शहर घर बाहर सब जगह नौकरियों की बातें होती रहती है तो मीडिया में नौकरी की बात नही होती है। विपक्ष में रहते हुए नेता बेरोजगारी का मुद्दा उठाते है लेकिन सरकार में आते ही नौकरी और रोजगार के मुद्दे को भूल जाते हैं। यह बात सभी पार्टियों, सभी मुख्यमंत्रियों और प्रधानमंत्री जी पर भी लागू होती है।
चुनाव के समय के विज्ञापन और इनके रोड शोज को देखिए उस वक्त इनके एजेंडे में नौकरी प्रमुख होगी लेकिन सरकार में आते ही ये बातें वही राजनेता और राजनीतिक दल सत्ता में आकर भूल जाते है या शायद जानबूझकर भूलना चाहते है।
मुख्यमंत्री जी मध्यप्रदेश के नौजवान वास्तविकता में बहुत परेशान है उनकी दिक्कतों को सुनिए उन्हें दुत्कारिये मत, फिलहाल मुझे ऐसा लगता है कि राजनेताओं की समस्या को सुनने और सुनने के बाद समाधान करने की क्षमता भी समाप्त होती जा रही है। अगर क्षमता और संवेदनशीलता कम नही हुई होती तो आप इस बात से भलीभांति अवगत है कि रिटायरमेंट की उम्र सीमा 60 वर्ष से बढ़ाकर 62 वर्ष किये जाने के बाद प्रदेश में कितने पदों में नई भर्तीयां की गई है। जबकि प्रदेश में लाखों की संख्या में प्रत्येक वर्ष 10वी 12वी स्नातक स्नातकोत्तर की परीक्षा पास करके नौजवान नौकरी की तलाश में लग जाते है।
मध्यप्रदेश सरकार के पास भी इन सभी योग्यता धारकों के लिए हजारों की संख्या में पद रिक्त हैं, लेकिन क्या सरकार प्रत्येक वर्ष भर्ती परीक्षाओं का आयोजन कर पाती है ? नही बिल्कुल नही! बल्कि 2017 से 2020 की भर्ती परीक्षाओं को देखें तो लगातार भर्ती परीक्षा के आयोजनो की संख्या में भारी गिरावट आती जा रही है जो इक्के दुक्के विज्ञापन निकले भी है तो उनमें पदों की संख्या 226 होती है। ये भयावह स्थिति देखकर मुझे ऐसा लगता है राजनेता नौजवानों को सरकारी नौकरी का कॉमेडी शो दिखा रहें है।
सभी देश भर के चयन आयोग किसी गिरोह की तरह काम कर रहें है नौजवानों से फॉर्म भरने के लिए करोड़ो में पैसे लिए जाते है लेकिन परीक्षा और नौकरी का कोई पता नही चल रहा है। परीक्षा हो भी गयी तो गलत प्रश्न, गलत उत्तर, डिलीट प्रश्न, नॉर्मलाईजेशन, की शुद्धिकरण की घोर विवादित प्रक्रिया के बाद परीक्षा परिणाम जारी किए जाते है, वेरिफिकेशन से जोइनिंग तक पहुंचते पहुंचते सरकारें ही बदल जाती है।
यह समस्या अब विकराल हो चुकी है, और कोई भी इसके समाधान की बात ही नही करना चाहता है। अभी कोरोना काल के बहाने भर्तियों में रोक लगी हुई है तो कल को कोई और बहाना मिल जाएगा क्योंकि बहाने खोजने के लिए उत्कृष्ट सरकारी सेवा के नौकरशाहों को ये जिम्मेदार सौंपी गई है और वे पूर्ण ईमानदारी से उच्च कोटि के बहाने खोजते है ये वही लोग है जो ac कमरों में बैठ के चिलचिलाती धूप और कपकपाती ठंड में खेतों में काम करने वाले किसान के लिए कुछ भी योजनाएं बना देते है।
रावेंद्र पांडेय, एक बेरोजगार