कम्युनिस्ट और कांग्रेस के बाद आज भाजपा लेकिन कल कौन / MY OPINION

Bhopal Samachar
डॉ प्रवेश सिंह भदौरिया। 1929 के कांग्रेस के लाहौर अधिवेशन में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस का एक लक्ष्य निर्धारित हुआ जो "पूर्ण स्वराज" के रुप में इतिहास में दर्ज हुआ।इसी लक्ष्य की प्राप्ति के लिए कांग्रेस संकल्पित थी जो अंततः 1947 में प्राप्त भी हुआ था।

नये आजाद भारत को संगठित रखने की जिम्मेदारी पटेल ने अपने हाथों में ली व अन्य राष्ट्रों से दोस्ताना संबंध बनाने का उत्तरदायित्व नेहरू के हाथों में था।ये दोनों अपने कार्य में सफल भी हुए।भारत को एकीकृत करने के बाद अंग्रेजों के कारण भ्रष्ट और कंगाल हो चुके देश को फिर से खुशहाल करने की जिम्मेदारी पुनः कांग्रेस पर आ गयी थी। लेकिन आजादी के बाद एकाधिकार पाने की मानसिकता तथा पटेल-गांधी के बिना कांग्रेस में सत्ता लोलुपता धीरे-धीरे बढ़ने लगी। 

पड़ोसी मुल्क भी बंटवारे में मिली जमीन से खुश नहीं थे। वहीं द्वितीय विश्व युद्ध के बाद कम्युनिस्ट भी अपनी ताकत बढ़ाना चाहते थे जिससे चाहे-अनचाहे भारत पर युद्ध का संकट आता जा रहा था।हम अभी भी हथियार और अन्य संसाधनों के लिए ताकतवर राष्ट्रों की तरफ मुंह ताक रहे थे।सत्ता के प्रति अविश्वास लोगों में घर कर रहा था जिससे पुरानी लेकिन "बंजर" ताकतें एकजुट हो रही थीं। अलग-अलग राजनीतिक दल अपने लक्ष्य लेकर आगे बढ़ रहे थे।लेफ्ट की पूरी लड़ाई गरीबों के प्रति आस्था रखने और अमीरों को देश के लिए ख़तरनाक साबित करने में केंद्रित थी।

वहीं जनसंघ से भाजपा में परिवर्तित दल कश्मीर और राममंदिर के मुद्दे को लेकर राजनीति में दाखिल होना चाह रहे थे। हालांकि भाजपा ने कभी ये नहीं बताया कि उन्हें जनसंघ से भाजपा में परिवर्तन क्यों करना पड़ा?ना ही उन्होंने बताया कि भाजपा बनाते ही उनका मूलभूत सिद्धांत "नेहरु का धर्मनिरपेक्षता" ही था।यही कारण रहा होगा कि भाजपा के नये  नवेले ध्वज में हिंदू के भगवा और मुस्लिम के हरे रंग को जगह दी गयी थी।

कांग्रेस अब धीरे-धीरे कमजोर होती जा रही है क्योंकि उसके पास अब पाने के लिए कोई लक्ष्य नहीं बचा है। कम्युनिस्ट लगभग खत्म होने पर है क्योंकि गणतंत्र राष्ट्र में उनके विचारों का कोई स्थान नहीं है। भाजपा भी जिस तरह से सबको समाहित करती जा रही और असल भाजपाई साइड लाइन होते जा रहे हैं तथा अनुच्छेद 370 और राममंदिर के मुद्दे का समाधान लगभग हो गया है उससे लगता है कि भाजपा भी अपने "लक्ष्य" की प्राप्ति कर चुकी है और अब वह लक्ष्यविहीन होकर कांग्रेस की श्रेणी में आती जा रही है जिसके लिए सत्ता महत्वपूर्ण है।

काल के गाल में क्या है ये कोई नहीं जानता। हो सकता है भाजपा की तरह ही कोई पुराना दल नया चोगा ओढ़कर नये लक्ष्य के साथ भविष्य में दिखाई दे।

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