20-50 फार्मूला पर अनिवार्य सेवानिवृत्ति: सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों पर आधारित स्थापित सिद्धांत - EMPLOYEE and LAW

Bhopal Samachar
अमित चतुर्वेदी। अनिवार्य सेवा निवृत्ति या समय पूर्व सेवा रिटायरमेंट (20 वर्ष की सेवा या 50 साल की आयु पर) पर, सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों के आधार पर कुछ स्थापित सिद्धांत निम्न प्रकार से देखे जा सकते हैं:-

1) जब किसी कर्मचारी की सेवाएं, सामान्य प्रशासन हेतु उपयोगी नही रह जाती है या कर्मचारी डेड वुड (अनुपयोगी) हो जाता है तब संबंधित सरकार कर्मचारी को लोकहित में समयपूर्व रिटायर कर सकती है।

2) सामान्यतः अनिवार्य या समय पूर्व रिटायर किया जाना, संविधान के अनुच्छेद 311 के आधीन दंड नही माना जाता है।

3) बेहतर प्रशासन हेतु, अनुपयोगी कर्मचारियों (डेड वुड) को रिटायर किया जा सकता है परंतु,  अनिवार्य सेवानिवृत्ति का आदेश, कर्मचारी के संपूर्ण सेवा रिकॉर्ड /अभिलेख को विचार करने के बाद ही करना चाहिए।

4)  गोपनीय चरित्रावली में की गई विपरीत टिप्पणियों को अनिवार्य सेवानिवृत्ति का आदेश जारी करते हुए विचार में लिया जाना चाहिए। सर्विस अभिलेख में जिन टिप्पणियों को किया गया है एवं उनकी सूचना कर्मचारी को नही है उन्हें भी कंपल्सरी सेवानिवृत्ति आदेश जारी करते समय विचार में लिया जाना चाहिए।

5) जब अनिवार्य सेवानिवृत्ति के आदेश जारी करने के पूर्व विभागीय जांच की जरूरत हो तब जांच टालने के उद्देश्य से अनिवार्य सेवानिवृत्ति को शार्ट कट विधि के रूप में नही अपनाया जाना चाहिये, जब जांच जरूरी हो।

6) कर्मचारी को विपरीत टिप्पणी के पश्चात भी, दिया प्रमोशन, विचार में लिया जाता है।यह कर्मचारी के लिए लाभकारी स्थिति होती है कि विपरीत टिप्पणी के बाद भी पद्दोन्नति प्राप्त हुई।

6) दंड के उपाय के रूप में, अनिवार्य सेवानिवृत्ति अधिरोपित नही की जानी चाहिये।
लेखक श्री अमित चतुर्वेदी मध्यप्रदेश हाईकोर्ट, जबलपुर में एडवोकेट हैं। (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)

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