प्रस्तुत धारा 373 पूर्ववर्ती धारा 372 का ही संयुक्त रूप है, धारा 372 में हमने आपको बताया था कि अगर कोई व्यक्ति किसी नाबालिग बच्चों को देह व्यापार के लिए बेचता है तो वह उपयुक्त धारा का दोषी होगा परंतु आज की धारा में नाबालिग बच्चों को खरीदने वाले को दोषी बताया गया है।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 373 की परिभाषा:-
(वेश्यावृत्ति आदि के लिए बच्चों को खरीदना) अगर कोई व्यक्ति किसी 18 साल से कम उम्र के बच्चे को वेश्यावृत्ति, देह व्यापार, या गैर कानूनी संभोग, या किसी कानून के विरूद्ध, या डांस बार मे नाचने और दुराचारिक काम में लाए जाने या उपयोग किए जाने के लिए उसको खरीदता है या भाड़े पर लेता है। ऐसा करने वाला व्यक्ति धारा 373 के अंतर्गत दोषी होगा।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 373 में दण्ड का प्रावधान:-
इस धारा के अपराध किसी भी प्रकार से समझौता योग्य नहीं है, यह अपराध संज्ञेय एवं अजमानतीय अपराध होते हैं, इनकी सुनवाई का अधिकार सेशन न्यायालय को होता है। सजा:- इस अपराध के लिए 10 वर्ष की कारावास ओर जुर्माने से दण्डित किया जा सकता है।
न्यायालयों के देह व्यापार (अनैतिक व्यापार)से संबंधित महत्वपूर्ण निर्णय:-
(1). उच्चतम न्यायालय ने गौर जैन बनाम भारत संघ में कहा है कि वेश्यावृत्ति एक अपराध है, लेकिन जो महिलाएं देह व्यापार करती है, उनको दोषी कम और पीड़ित ज्यादा माना जाएगा। न्यायालय ने यह भी कहा है कि ऐसी परिस्थितियों में रहने वाली महिलाओं और उनके बच्चों को पढ़ाई के अवसर और आर्थिक सहायता भी दी जानी चाहिए तथा उनको समाज की मुख्य धारा से जोड़ने के लिए उनकी शादियां भी करवानी चाहिए , जिससे बाल देह व्यापार में कमी हो सके।
(2). उच्च न्यायालय ने प.न. कृष्णलाल बनाम केरल राज्य में कहा कि राज्य के पास यह शक्ति है कि वह कोई व्यापार या व्यवसाय जो गैर कानूनी, अनैतिक या समाज के लिए हानिकाकर है, उस पर रोक लगा सकता है। बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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