शक्तिशाली पुरुषों द्वारा निर्मल पुरुषों का यौन शोषण कोई नई बात नहीं है। अब तो समलैंगिक प्रेम संबंध भी होने लगे हैं परंतु कुछ समय पहले तक यह केवल यौन प्रताड़ना ही थे। भारत के इतिहास में करीब 500 साल या इससे पहले भी, पुरुषों को यौन प्रताड़ना दिए जाने की घटनाओं का उल्लेख मिलता है। आप जानकर चौक जायेंगे कि बलात्कार की पीड़ित महिला की तुलना में यौन शोषण का शिकार पुरुष ज्यादा शर्मसार होता है और सामाजिक अपमान के डर से पुलिस थाने जाकर रिपोर्ट नहीं लिखा था। आइए जानते हैं इस तरह के अपराध के लिए भारतीय दंड संहिता में किस धारा का प्रावधान है।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 377 की परिभाषा:-
अगर कोई स्त्री या पुरूष निम्न प्रकार के से प्रकृति विरुद्ध इन्द्रिय भोग का अपराध करेगा:-
1. गुदा मैथुन(पुरुषों के साथ रेप) करेगा।
2. अप्राकृतिक मैथुन ,समलैंगिक संबंध बिना सहमति के।
3. पशुओं से मैथुन बनाना।
ऐसा करने वाला व्यक्ति धारा 377 के अंतर्गत दोषी होगा।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 377 के अंतर्गत दण्ड का प्रावधान:-
इस धारा का अपराध किसी भी प्रकार से समझौता योग्य नहीं है। यह अपराध संज्ञेय(Cognizable) एवं अजमानतीय (Non-Bailable) अपराध है। इनकी सुनवाई का अधिकार सेशन न्यायालय(Court of Session) को हैं। सजा(Punishment)- आजीवन कारावास या दस वर्ष की कारावास साथ में जुर्माने से दण्डित किया जा सकता है। लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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