भोपाल। भोपाल के जेपी हॉस्पिटल 1250 में कोरोना संक्रमित एक महिला की मौत के बाद उनकी बेटी ने अस्पताल प्रबंधन पर लापरवाही के गंभीर आरोप लगाए हैं। उसका कहना है कि अपने चाचा के साथ वह मां का शव लेकर भटकती रही। पहले तो इलाज में देरी की गई। ऑक्सीजन सप्लाई सही से नहीं हुई। अस्पताल प्रबंधन ने कोई जवाब नहीं दिया
कलेक्टर और मंत्री के दरवाजे तक खटखटा आई
राजधानी भोपाल निवासी प्रियंका ने बताया कि वह अस्पताल से कलेक्टर और मंत्री के दरवाजे तक खटखटा आई, लेकिन मदद नहीं मिली। मौत के बाद भी उसकी मां को सुकून नहीं मिला और उन्हें यूं ही छोड़ दिया गया। परिजनों ने ही रात में शव को मोर्चरी में रखा। 43 साल की मां संतोष भोपाल कोऑपरेटिव सेंट्रल बैंक कोटरा सुल्तानाबाद ब्रांच में कार्यरत थीं। पिता की 8 साल पहले मौत के बाद मां को अनुकंपा नियुक्ति मिली थी। वह 14 सितंबर को कोरोना पॉजिटिव हुई थीं। दो प्राइवेट अस्पतालों में उनसे 50-50 हजार महज 18 घंटे के अंदर ले लिए गए, लेकिन इलाज अच्छे से नहीं किया गया। मजबूर होकर मैं अपनी मां को एंबुलेंस में बिठाकर करीब 13 घंटे तक शहर में इधर से उधर घूमती रही, लेकिन कहीं भी उनकी मां को भर्ती नहीं किया गया।
उन्होंने कलेक्टर से गुहार लगाई, तब जाकर जेपी अस्पताल में मां को भर्ती किया गया, लेकिन भर्ती करने के अलावा उनका किसी तरह का इलाज नहीं किया गया। मैं दिन भर अस्पताल के बाहर रहती थी। जरूरत पड़ने पर आईसीयू में जाकर मां की मदद करती थी। खाना-पीना भी उनकी तरफ से ही दिया जाता था। प्रियंका ने आरोप लगाया कि गुरुवार रात मां की मौत हो गई उसके बाद डॉक्टरों ने कहा कि अब तुम शव को ले जाओ। उन्होंने ना तो मां को पीपीई किट पहनाई और ना ही वार्डबॉय तक दिया।
प्रियंका ने बताया कि इलाज में लापरवाही को देखते हुए वह मंत्री विश्वास सारंग से भी मिलने गई थी। उन्होंने आश्वासन दिया था कि वह दिखाते हैं, लेकिन उसके बाद भी कुछ नहीं हुआ। मां को काफी तकलीफ हो रही थी। शाम 4:00 बजे मां से मिली थीं। उस दौरान वे ठीक लग रही थीं। उन्होंने बताया कि बीच-बीच में ऑक्सीजन नहीं मिलती है। प्रियंका ने आरोप लगाया कि अस्पताल प्रबंधन उनसे ही ऑक्सीजन के सिलेंडर भी यहां से वहां रखवाया गया। इस संबंध में जेपी के सिविल सर्जन आरके तिवारी से संपर्क किया, लेकिन उन्होंने न तो फोन रिसीव किया और ना ही का SMS जवाब दिया।