भारत के कुछ समुदायों में लड़की के 16 वर्ष होते ही उसे किसी पुरुष के हवाले कर दिया जाता है। पुरुष लड़की के बदले उसके माता-पिता को तय की गई रकम अदा करता है। लेन देन की लिखा पढ़ी भी होती है। कुछ माता-पिता गरीबी के कारण अपनी लड़की को बेच देते हैं, कुछ लड़कियां शहर में नौकरी के कारण ह्यूमन ट्रैफिकिंग का शिकार हो जाती है। कुल मिलाकर भारत में लड़कियों की खरीद-फरोख्त और उनसे वेश्यावृति करवाने अपराध लगातार किया जा रहा है।
भारतीय दण्ड संहिता में धारा 366- क, 1923 के संशोधन अधिनियम की धारा 3 द्वारा स्थापित की गई है, इस धारा को जोड़ने का उद्देश्य ये है कि समाज में नाबालिग लड़कियों पर हो रहे अत्याचार को खत्म किया जाएगा एवं लड़कियों के आयात-निर्यात पर रोक लग सके और जबरदस्ती उनसे कराया जा रहा वेश्यावृत्ति का काम वह रुक सके।
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 366 - क, की परिभाषा:-
अगर कोई व्यक्ति किसी अवस्यक (नाबालिग) महिला का निम्न प्रकार से शोषण करेगा:-
1. बहला-फुसला कर उसको ले जाएगा और वेश्यावृत्ति के लिए मजबूर करेगा।
2. पैसे से किसी महिला को गलत काम के लिए खरीदेगा या बेचेगा (भारत में कही भी आयात-निर्यात करेगा) तब।
3. जबरदस्ती किसी नाबालिक महिला को वेश्यावृत्ति के लिए मजबूर करेगा।
ऐसा करने वाला व्यक्ति धारा 366- क,के अंतर्गत दोषी होता है।
【नोट:- किसी वयस्क महिला की सहमति से कराया जा रहा वेश्यावृत्ति का कार्य इस धारा के अंतर्गत दंडनीय अपराध नहीं है।】
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 366- क, के अंतर्गत दण्ड का प्रावधान:-
इस धारा के अपराध किसी भी प्रकार से समझौता योग्य नहीं है।यह अपराध संज्ञेय एवं अजमानतीय अपराध होते है, इनकी सुनवाई का अधिकार सेशन न्यायालय को होता है। सजा- इस अपराध के लिए 10 वर्ष की कारावास और जुर्माने से दण्डित किया जा सकता है।