ग्वालियर। मध्य प्रदेश की 28 सीटों पर विधानसभा का उपचुनाव होना है लेकिन चुनावी दंगल का केंद्र ग्वालियर बन गया है। भारतीय जनता पार्टी और कांग्रेस दोनों दलों के विशेषज्ञ, पंडित और तांत्रिक ग्वालियर में अपना-अपना पंडाल सजाए बैठे हैं। सबसे बड़ा सवाल यह है कि यदि कोरोनावायरस के कारण लोग वोट डालने नहीं आए तो क्या होगा।
चुनाव का पूर्वानुमान लगाने वाले किसी भी पार्टी के हो या सरकारी अधिकारी, एक बात गारंटी के साथ कह रहे हैं कि वोट ऑफ परसेंट 2018 के चुनाव के मुकाबले कम होगा। कितना कम होगा, इसका अनुमान कोई नहीं लगा पा रहा। दोनों पार्टियों के उम्मीदवार इस कैलकुलेशन में पूरी तरह से व्यस्त हैं कि यदि मतदान का प्रतिशत कम हुआ तो फायदा किसे होगा।
चुनाव आयोग की हर चुनाव में कोशिश होती है कि अधिक से अधिक मतदान हो। इसके लिए मतदाताओं को मतदान करने के लिए प्रेरित करने जागरूकता अभियान चलाया जाता है। 2013 व 2018 के विधानसभा चुनाव में प्रदेश के साथ जिले में मतदान के प्रतिशत में रिकॉर्ड वृद्धि हुई थी। 2020 में विषम परिस्थितियों में जिले की 6 विधानसभा सीटों में से 3 विधानसभा क्षेत्रों में उपचुनाव होना हैं। ग्वालियर, ग्वालियर पूर्व व डबरा (अजा) विधानसभा क्षेत्र में पिछले दो विधानसभा चुनाव में मतदान का प्रतिशत बढ़ा है लेकिन इस बार बड़ी गिरावट दर्ज की जा सकती है।
ग्वालियर वालों को कोरोनावायरस से डर नहीं लगता साहब, डॉक्टरों से लगता है
मार्च में जब पूरा भारत देश टोटल लॉकडाउन हुआ तब से लेकर बाजार के अनलॉक होने तक ग्वालियर के आम नागरिकों में कोरोनावायरस का कोई डर दिखाई नहीं दे रहा था। ग्वालियर के लोगों की अपनी मान्यता थी। पहली: उन्हें खुद पर विश्वास था कि उनकी इम्यूनिटी पावर दूसरे शहरों के नागरिकों से ज्यादा है क्योंकि ग्वालियर का पर्यावरण काफी गर्म होता है। दूसरी: ग्वालियर के लोगों की मान्यता थी कि सरकारी रिपोर्ट में बढ़ते आंकड़े महामारी के कारण नहीं बल्कि कोरोना घोटाले के कारण है। लेकिन अब बात बदल गई है। ग्वालियर शहर का ऐसा कोई मोहल्ला/ कॉलोनी नहीं है जहां कोई ना कोई व्यक्ति संक्रमण का शिकार ना हुआ हो। लोगों को संक्रमित होने से डर नहीं लगता, लेकिन उसके बाद अस्पतालों में मरीज और परिजनों के साथ जो व्यवहार होता है उसकी दहशत मरीज से जुड़े कम से कम 100-200 लोगों में दिखाई देती है।