जबलपुर। मध्यप्रदेश हाईकोर्ट ने दंपति के बीच विवाद के बाद महिला द्वारा प्रस्तुत की गई बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को खारिज कर दिया है। हाई कोर्ट का कहना है कि महिला अपनी बेटी को अपने साथ रखना चाहती है तो इसके लिए कई अन्य कानूनी प्रक्रिया आए हैं जिनका उपयोग किया जा सकता है लेकिन यह नहीं कहा जा सकता कि पिता ने अपनी बेटी को बंधक बना लिया है।
न्यायमूर्ति संजय द्विवेदी की एकलपीठ के समक्ष मामले की सुनवाई हुई। इस दौरान बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाकर्ता जबलपुर निवासी महिला की ओर से पक्ष रखा गया। अधिवक्ता ने दलील दी कि महिला के पति ने पांच वर्षीय पुत्री को अवैध रूप से बंधक बनाकर रखा है। लिहाजा, मुक्त कराकर याचिकाकर्ता के हवाले किया जाए। यह मांग इसलिए की जा रही है क्योंकि महिला का अपने पति से विवाद चल रहा है। ऐसे में मासूम बच्ची की जान को खतरा बना हुआ है। महिला ने अपने पति के खिलाफ दहेज प्रताड़ना की रिपोर्ट दर्ज कराई है। जिसके बाद से वह मायके में रह रही है।
सुनवाई के दौरान राज्य शासन की ओर से पैनल लॉयर मनोज कुशवाहा ने पक्ष रखा। कोर्ट ने पूरी बहस सुनने के बाद साफ किया कि एक पुत्री अपने पिता के संरक्षण में रह सकती है। पिता अपनी पुत्री का नैसर्गिक संरक्षक होता है। ऐसे में उस पर अपनी ही पुत्री को बंधक बनाने का आरोप वैधानिक दृष्टि से उचित नहीं है।