इंदौर। प्रदेश सरकार संपत्ति कर निर्धारण के फॉर्मूले में बदलाव कर रही है। बाजारों में इसका विरोध शुरू हो गया है। कारोबारियों के मुताबिक संपत्ति कर के मूल्यांकन के तरीके में बदलाव से टैक्स की दर मौजूदा से दोगुनी हो जाएगी। साथ ही हर साल बढ़ा हुआ टैक्स जमा करना पड़ेगा। कोरोनाकाल में मंदे धंधे से परेशान व्यापारियों ने सरकार के बदलाव के खिलाफ प्रदेशव्यापी आंदोलन खड़ा करने का आव्हान किया है।
कॉन्फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स (केट) ने प्रदेशभर के व्यापारियों को पत्र लिखकर संपत्ति कर निर्धारण के तरीके में हो रहे परिवर्तन का विरोध करने के लिए कहा है। केट ने व्यापारियों से कहा है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री और नगरीय प्रशासन मंत्री को ई-मेल के जरिये प्रस्तावित बदलाव के खिलाफ हर जिले से पत्र भेजे जाएं। पत्र से सरकार नहीं मानी तो बाजारों में विरोध किया जाएगा। केट के प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र जैन और इंदौर अध्यक्ष मोहम्मद पीठावाला के अनुसार अभी नगर निगम शहर की संपत्तियों को जोन में विभाजित कर चिन्हित करता है। हर जोन के संपत्ति कर की दर निर्धारित होती है।
उसी के अनुसार उस क्षेत्र से आवासीय, व्यावसायिक और औद्योगिक श्रेणी में संपत्ति कर वसूला जाता है। अब सरकार मप्र नगर पालिका विधि विधेयक में संशोधन कर रही है। संपत्ति कर को कलेक्टर गाइडलाइन से जोड़ा जा रहा है। प्रत्येक वित्त वर्ष में गाइडलाइन बढ़ती है और कर भी बढ़ेगा। संपत्ति के मूल्य के आधार पर अब ज्यादा कर देना पड़ेगा। व्यापारियों के साथ तमाम नागरिकों पर भी इसका बोझ बढ़ेगा।
केट के पदाधिकारियों के मुताबिक पहले ही नगर निगम अलग-अलग कई करों की वसूली कर रहा है। संपत्ति कर के अलावा सफाई का अलग से शुल्क लिया जाता है। इसके साथ शिक्षा उपकर भी नगर निगम वसूलता है। संपत्ति के पंजीयन पर एक प्रतिशत कर भी अलग से निगम को देना पड़ता है। सफाई की नई व्यवस्था के नाम पर इंदौर में गारबेज शुल्क भी लगा दिया गया है। 2017 से दुकानों के साइन बोर्ड पर भी नगर निगम टैक्स वसूलने लगा है। इतने कर लेने के बाद भी नगर निगम का पेट नहीं भर रहा और नागरिकों को बढ़े कर से परेशानी में डालने की तैयारी कर ली है।