नई दिल्ली। अयोध्या में रामलला के बाद मथुरा में श्री कृष्ण विराजमान ने कोर्ट में याचिका दाखिल करके अपने अधिकार की 13.37 एकड़ जमीन का स्वामित्व मांगा है।5247 साल पहले इसी स्थान पर भगवान श्री कृष्ण का जन्म हुआ था और मथुरा के राजा कंस का वध करने के बाद 13.37 एकड़ जमीन श्री कृष्ण के लिए आरक्षित की गई थी। 1669 तक इस जमीन पर भगवान श्री कृष्ण का 250 फीट ऊंचा भव्य मंदिर स्थापित था।
श्रीकृष्ण विराजमान ने 13.37 एकड़ जमीन का मालिकाना हक मांगा
उत्तर प्रदेश के मथुरा शहर में श्रीकृष्ण जन्मभूमि का मामला कोर्ट की चौखट पर आ खड़ा हुआ है। अयोध्या की तरह मथुरा में भी श्रीकृष्ण विराजमान नाम से अदालत में एक याचिका दाखिल कर 13.37 एकड़ जमीन का मालिकाना हक मांगा गया है। सुप्रीम कोर्ट के अधिवक्ता हरीशंकर जैन और विष्णु शंकर जैन ने श्रीकृष्ण विराजमान की ओर से मथुरा में सीनियर सिविल जज छाया शर्मा की अदालत में याचिका दाखिल की है। इनमें 13.37 एकड़ की श्रीकृष्ण जन्मभूमि का मालिकाना हक मांगा गया है।
शाही ईदगाह मस्जिद की सुरक्षा के लिए फोर्स तैनात
श्रीकृष्ण विराजमान की ओर से अदालत में याचिका दाखिल होने के बाद श्रीकृष्ण जन्मस्थान, शाही ईदगाह के साथ वृंदावन, गोवर्धन, बरसाना, दाऊजी जैसे प्रमुख धर्मस्थलों पर सुरक्षा बढ़ा दी गई है। एसपी सुरक्षा आरके मिश्रा ने बताया कि हमने संस्थान की सुरक्षा को और भी चाक-चौबंद कर दिया है। साथ ही शाही ईदगाह मस्जिद की सुरक्षा को भी सतर्क कर दिया है।
श्री कृष्ण जन्मस्थान मथुरा में 250 फीट ऊंचा भव्य मंदिर किसने बनवाया था
श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संस्थान के विशेष कार्याधिकारी विजय बहादुर सिंह ने बताया कि भगवान श्रीकृष्ण का प्राकट्य वर्तमान कटरा केशव देव स्थित कंस के कारागार में लगभग 5247 वर्ष पूर्व हुआ था। श्रीकृष्ण के प्रपौत्र व्रजनाभ ने उसी का कारागर स्थली पर श्री केशव देव के प्रथम मंदिर की स्थापना की। कालांतर में यहां बार-बार मंदिरों का निर्माण हुआ। अंतिम 250 फीट ऊंचा मंदिर जहांगीर के शासनकाल में ओरछा के राजा वीर सिंह देव ने बनवाया था।
मथुरा श्री कृष्ण जन्म स्थान का विवाद क्या है
इतिहासकार बताते हैं कि 1669 में मुगल शासक औरंगजेब ने ओरछा के राजा वीर सिंह देव द्वारा बनवाए गए भव्य मंदिर के अग्रभाग को तोड़कर मंदिर की सामग्री से ईदगाह मस्जिद बनवा दी थी। औरंगजेब का उद्देश्य एक धर्म स्थल का निर्माण नहीं था बल्कि हिंदू समुदाय के आराध्य भगवान श्री कृष्ण के भव्य मंदिर को तोड़कर समुदाय को अपमानित करना था। मंदिर के अग्रभाग पर ईदगाह का निर्माण इसलिए करवाया गया ताकि दशकों तक हिंदू समुदाय के लोगों को इस बात का एहसास होता रहे कि उनकी हैसियत मुगलों से बहुत कम है। और वह कभी भी मुगलों से बगावत करने की योजना नहीं बनाएं।
1967 में दोनों धर्मस्थल के पदाधिकारियों के बीच भाईचारा समझौता हुआ है
ईदगाह इंतजामिया कमेटी के सचिव तनवीर अहमद एडवोकेट ने कहा कि मथुरा सौहार्द की नगरी है। यहां ईद पर हिंदू गले मिलने आते हैं तो होली पर हम लोग उनके गले मिलते हैं। दीवाली और जन्माष्टमी साथ-साथ मनाते आए हैं। कोई विवाद की स्थिति है ही नहीं और आगे भी नहीं होगी। दोनों धर्म स्थल बराबर हैं। मंदिर में भगवान की पूजा होती है और मस्जिद में नमाज अदा होती है। 1967 में दोनों धर्मस्थल के पदाधिकारियों के बीच आपनी भाईचारे और आदर बनाए रखने के लिए भी समझौता हुआ है। हम देखेंगे कि दायर याचिका में हमें पार्टी बनाया गया है या नहीं। इसके बाद ही कमेटी आगे का निर्णय लेगी।