मप्र कांग्रेस की बाराखडी में उलझ गए कमलनाथ, खुली धमकियां मिल रही हैं - MP NEWS

Bhopal Samachar
भोपाल
। कांग्रेस पार्टी के मैनेजमेंट गुरु, विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष, प्रदेश अध्यक्ष और छिंदवाड़ा के विधायक कमलनाथ मध्यप्रदेश उपचुनाव में कांग्रेसी गुटबाजी की बाराखडी में उलझ कर रह गए हैं। कुल 27 सीटों पर चुनाव होना है। 15 सीटों पर प्रत्याशियों की घोषणा कर दी गई है परंतु शेष 12 सीटें भारी सिरदर्द साबित हो रही है। कमलनाथ का 40 साल का पॉलिटिकल एक्सपीरियंस काम करता नजर नहीं आ रहा है। सभी सीटें सामान्य वर्ग की हैं और दावेदार खुली धमकियां दे रहे हैं कि यदि उन्हें टिकट नहीं मिला तो कांग्रेस को हरा देंगे।

सर्वे के नाम पर दावेदारों को शांत कराने की कोशिश

प्रदेश कांग्रेस कार्यालय की ओर से बताया जा रहा है कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष कमलनाथ सर्वे के आधार पर नाम ऊपर आने पर प्रत्याशी का चयन कर रहे हैं। सर्वे के दौरान स्थानीय लोगों से फीडबैक लिया जा रहा है कि पार्टी का कौन सा प्रत्याशी ठीक रहेगा। मजेदार बात यह है कि कमलनाथ का सर्वे कहां हो रहा है और कौन कर रहा है किसी को नहीं पता। 

यह है कांग्रेस की बाराखडी, जिसे संभालना चुनौती बन गया है

जिन सीटों पर प्रत्याशियों का चयन किया जाना है, उनमें सुमावली, जौरा, मुरैना, ग्वालियर पूर्व, मेहगांव, पोहरी, सुरखी, मुंगावली, बड़ा मलहरा, मांधाता, बदनावर और सुवासरा विधानसभा सीट है जहां चुनाव होना है। कांग्रेस ने इन सीटों पर तीन से पांच नामों तक के पैनल तैयार कराए हैं, जिनमें से प्रत्याशी का चयन किया जाना है।

15 सीटों पर नाम फाइनल कैसे हुए

इधर ,कांग्रेस पार्टी 15 सीटों पर पहले ही प्रत्याशी घोषित कर चुकी है, इन सीटों पर नाम चयनित करने में दिक्कत इस वजह से नहीं हुई कि वहां ज्यादा प्रत्याशी नहीं थे और जो थे उन्हीं मे से प्रत्याशी का चयन किया जाना था। 

सत्ता का सेंट्रलाइजेशन नहीं करते तो दावेदार हर बात पर भरोसा करते 

दरअसल, दावेदार कमलनाथ पर भरोसा नहीं कर पा रहे हैं। उन्हें लगता है कि यदि टिकट नहीं मिला तो पॉलिटिक्स खत्म हो जाएगी फिर भले ही प्रदेश में कांग्रेस की सरकार क्यों न बन जाए। राजनीति में दावेदारों को बैलेंस करने के लिए कई तरह के गिफ्ट दिए जाते हैं। महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियां दावेदारों का सबसे पसंदीदा गिफ्ट होती हैं लेकिन 2018 में मुख्यमंत्री बनने के बाद कमलनाथ ने महत्वपूर्ण पदों पर नियुक्तियों में एक प्रकार का बैन लगा दिया था। इसलिए इस बार दावेदार यह उम्मीद भी नहीं कर पा रही कि टिकट नहीं मिला तो सरकार बनने के बाद कोई महत्वपूर्ण पद मिल जाएगा। 

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