शिक्षामंत्री के ब्लॉग में कई शिक्षकों के नाम, जिन्होंने कोरोना के बीच कुछ खास कर दिखाया / MP NEWS

Bhopal Samachar
बंदउँ गुरू पद कंज, कृपा सिंधु नररूप हरि। महामोह तम पुंज, जासु बचन रबि कर निकर।।
भावार्थ - मैं उन गुरूओं के चरणकमल की वंदना करता हूँ, जो कृपा के समुद्र और नर रूप में श्री हरि ही हैं और जिनके वचन महामोह रूपी घने अंधकार का नाश करने के लिए सूर्य किरणों के समूह हैं।

गुरूर्ब्रह्मा गुरूर्विष्णु गरूर्देवो महेश्वरः। गुरूः साक्षात परं ब्रह्म तस्मै श्रीह गुरवे नमः।
अपनी महत्ता के कारण गुरू को ईश्वर से भी उच्च पद दिया गया है। गुरू को ब्रह्मा कहा गया है क्योंकि वह शिष्य को बनाता है नव जन्म देता है। गुरू, विष्णु भी है, क्योंकि वह शिष्य की रक्षा करता है। गुरू, साक्षात महेश्वर भी हैं क्योंकि वह शिष्य के सभी दोषों का संहार भी करता है।

शिक्षक पीढ़ी का निर्माता होता है। देश के विकास में शिक्षक का अमूल्य योगदान होता है। शिक्षक किसी भी राष्ट्र की रीढ़ होता है। शिक्षक समाज को प्रज्ञावान, सभ्य, सुसंस्कृत और सदाचारी बनाने के लिये सदैव नि:स्वार्थ भाव से प्रयत्नशील रहता है। शिक्षक के लिये उसके विद्यार्थी सदैव जीवन की पूंजी की भांति होते हैं। शिक्षक अपने विद्यार्थियों के भविष्य को कुम्हार की तरह गढ़ता है।

विदित है कि भारत के द्वितीय राष्ट्रपति डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन एक अनुकरणीय शिक्षक, दार्शनिक और विद्वान थे, जिन्होंने अपना जीवन शिक्षा और देश के युवाओं के लिए समर्पित किया। डॉ. सर्वपल्ली राधाकृष्णन ने कहा था कि, ''यदि मेरा जन्मदिन मनाने के बजाय, 5 सितंबर को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है, तो यह मेरे लिये गौरवपूर्ण सौभाग्य होगा।'' इसलिए वर्ष 1962 से 5 सितम्बर को राष्ट्रीय शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है।

वर्तमान में कोविड-19 ने शिक्षा का संपूर्ण परिदृश्य ही परिवर्तित कर दिया है। अब विशेष परिस्थितियाँ निर्मित होने से हमारे शिक्षकों से विद्यार्थियों की आशायें और अपेक्षायें तथा उनके नैतिक मार्गदर्शन की आवश्यकता बढ़ गई है। इन विकट परिस्थितियों में भी शिक्षक अपने विद्यार्थियों के अज्ञान के अंधकार को दूर करते हुए उनके जीवन को प्रकाशित करने का प्रयास कर रहे हैं।

वैसे तो शिक्षक प्रतिवर्ष नवीन शिक्षण सत्र के प्रारंभ होने से पूर्व ही आगामी कार्य योजना बनाकर उसके अनुसरण का प्रयास करते हैं। परन्तु कोरोना महामारी के चलते इस बार संपूर्ण विश्व के साथ-साथ हमारा राष्ट्र तथा उसकी शैक्षणिक व्यवस्था भी प्रभावित हुई है। लॉकडाउन, सोशल डिस्टेंसिंग के कारण इस बार शैक्षणिक सत्र का आरंभ ऑनलाइन स्टडी, रेडियो एवं टेलीविजन प्रसारण, दूरभाष संपर्क, व्हॉट्सएप के माध्यम से पढ़ाई एवं कोरोना संक्रमण से बचाव के लिये मास्क, सेनेटाइजर के त्वरित उपयोग इत्यादि के साथ हुआ।

इन परिस्थितियों में नये माध्यमों का उपयोग तथा उससे शिक्षण शिक्षण की कठिन चुनौती का शिक्षकों ने सामना किया। इसका विकल्प था बिना विद्यालय बुलाए बच्चों को उनके घर में ही पढ़ाना। यह कार्य इतना सरल नहीं था, लेकिन शिक्षकों की लगन एवं अथक प्रयासों ने यह कार्य भी कर दिखाया।

एक और चुनौती थी उस गरीब विद्यार्थी तक पहुँचना जो इन साधनों का प्रबंध नहीं कर सकता। इसका विकल्प था बिना विद्यालय बुलाए बच्चों को उनके घर में ही पढ़ाना इसके लिए 'हमारा घर हमारा विद्यालय' कार्यक्रम चलाया गया। इस कार्यक्रम में शिक्षकों द्वारा 4-5 विद्यार्थियों का समूह बनाकर उन्हें उनके द्वारा चिन्हित स्थान पर उनकी आवश्यकता अनुसार शिक्षा दी गई। इसमें सोशल डिस्टेंसिंग का पालन भी हुआ और विद्यार्थियों को प्रत्यक्ष रूप से शिक्षित भी किया जा सका। कार्यक्रम से जनसमुदाय को भी प्रेरणा मिली और पालकों ने पूरा सहयोग दिया। निश्चित रूप से यह कार्यक्रम हमारे शिक्षकों के समर्पण तथा विद्याथियों के प्रति उनकी संवेदनशीलता का अभिनव प्रतीक है।

01 अप्रैल, 2020 से प्रसारित रेडियो प्रसारण तथा डिजिटल ग्रुप के माध्यम से ''अब पढ़ाई नहीं रूकेगी' थीम पर बच्चों की पढ़ाई के लिये शिक्षक सतत प्रयासरत हैं। प्रतिदिन प्राप्त होने वाली सामग्री छात्रों का उपलब्ध कराकर उनसे गृहकार्य करवाया जाता है। शिक्षक गाँव सम्पर्क के दौरान बच्चे के समझ के स्तर अनुसार कार्य प्रदान करते है। हमारे शिक्षकों द्वारा छात्रों को आपस में पुरानी किताबों का आदान-प्रदान, पेम्फलेट छपवाकर बंटवाना, ग्राम सपर्क, गृहकार्य जाँच, जरूरतमंद छात्रों को सामग्री वितरण कार्य सोशल डिस्टेसिंग का पालन करते हुए सफलता पूर्वक किया जा रहा हैं।

 'रेडियो स्कूल' कार्यक्रम के माध्यम से भी बच्चों को पढ़ाया गया। जिन ग्रामों और घरों में रेडियो नहीं थे, वहां शिक्षकों ने लाउड स्पीकर के माध्यम से बच्चों तक स्कूल पहुंचाया। कोरोना संक्रमण की परवाह किये बिना विद्यार्थियों के भविष्य के लिये कई शिक्षकों ने आशातीत प्रयास किये हैं। खंडवा के शासकीय प्राथमिक विद्यालय भकराड़ा की शिक्षिका ने अपने विद्यार्थियों को घर-घर पहुंचकर पढ़ाया। इसी प्रकार रायसेन जिले के ग्राम शालेगढ़ की प्राथमिक शाला के शिक्षक श्री नीरज सक्सेना ने मोहल्ला क्लास लगाकर बच्चों को पढ़ाया। 

उन्होंने अपने स्कूल की फुलवारी और शैक्षिक वातावरण से सजाया-संवारा जिसके लिये भारत सरकार के इस्पात मंत्रालय ने उन्हें ब्रांड एंबेसडर बनाया। मंदसौर के बावड़ीकला चंद्रपुर गाँव के प्राथमिक स्कूल के शिक्षक श्री रामेश्वर नागरिया दिव्यांग होने के बावजूद अपनी तिपहिया स्कूटर से अलग-अलग बस्तियों में पहुंचकर बच्चों को पढ़ाते हैं। राष्ट्रपति पुरस्कार प्राप्त शिक्षक श्री संजय जैन ने टीकमगढ़ जिले के डूंडा माध्यमिक स्कूल के बच्चों को डिजीटल शिक्षा से जोड़ने के लिये समाज के सहयोग से लैपटॉप एवं अन्य साधन जुटाए, शाला परिसर को सुंदर बनाया जिससे बच्चों में शिक्षा के प्रति रूचि जाग्रत हुई। ऐसे और भी कई शिक्षक हैं जिन्होंने विद्यार्थियों की पढ़ाई और उनके भविष्य के लिये कर्त्तव्य की पराकाष्ठा को भी लांघा है। ऐसे शिक्षक ही गुरू के नाम को स्वयंसिद्ध कर गुरू की महत्ता को प्रमाणित करते हैं।

शिक्षा, विशेष रूप से शालेय शिक्षा राष्ट्र की दशा और दिशा निर्धारित करने का आरंभ बिंदु है। शिक्षक दिवस के इस अवसर पर भारत सरकार द्वारा घोषित नवीन शिक्षा नीति 2020 की चर्चा स्वाभाविक है। स्वतंत्रता के बाद से ही हम ऐसी शिक्षण पद्धति व नीति से वंचित रहे हैं जो हमारे गौरवमयी ऐतिहासिक तथ्यों को सही तरीके से नवीन पीढ़ी के समक्ष प्रस्तुत कर सके।

नवीन शिक्षा नीति 2020 ने इस कमी की पूर्ति करते हुए राष्ट्र की शिक्षा संस्कृति तथा उससे लाभांवित होने वाले समुदाय में नवीन उत्साह का संचार किया है। इतिहास पुरूष लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक ने भारत के प्राचीन गौरव की पुनर्स्थापना तथा सामुदायिक चेतना की पुनः प्राण प्रतिष्ठा के लिए जिस प्रकार सार्वजनिक गणेश उत्सव को प्रारंभ किया और हमारे जन मानस को हमारी लुप्तप्रायः अस्मिता की ओर मोड़ा, उसी तरह यह नवीन शिक्षा नीति भी जन-जन की नीति के रूप में हमारे सांस्कृतिक मूल्यों परम्पराओं की वाहक बनेगी तथा आधुनिक विश्व की चुनौतियों के लिए हमारे नौनिहालों और युवा पीढ़ी को तैयार करेगी। 

यह नीति गौरवमयी परम्परा और आधुनिकता का संगम बिन्दु है जिसमें शामिल आधुनिक विषय जैसे आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस, डिजाइन थिकिंग से हमारे विद्यार्थी आधुनिक जगत की अपेक्षाओं के लिए तैयार होगें वहीं होलिस्टिक हेल्थ, आर्गेनिक लिविंग, वैश्विक नागरिकता शिक्षा जैसा समसामयिक विषयों के शिक्षण से हम ओजस्वी एवं विवेकवान नागरिक तैयार कर सकेगें।

हमारे छोटे बच्चों में मातृ भाषा में मूल्यों की सीख सबसे सहज एवं सरल है। इसीलिए शिक्षा नीति में मातृ भाषा में शिक्षण को स्थान दिया गया है। मध्यप्रदेश सरकार ने शिक्षा नीति 2020 के क्रियान्वयन पर कार्य प्रारंभ कर दिया है और कोविड-19 काल में भी हमारे शिक्षक समुदाय का इस दिशा में संवेदनीकरण किया जा रहा है। हमारा प्रयास है कि इस शिक्षा नीति के स्वरूप और उद्देश्य जन-जन तक पहुंचे उसके लिये समाज के समस्त जनप्रतिनिधिगण, बौद्विक वर्ग एवं समुदाय से आव्हान करता हूँ।

आशा है हम शीघ्र ही इस कोविड-19 महामारी से मुक्त होंगे, हमारे शिक्षकों के अथक प्रयासों से छात्रों को सफलता तक पहुँचाएंगे। पुनः विद्यालय खुलते ही सभी विद्यार्थी पहले से दोगुने उत्साह के साथ अपने प्रिय और सम्मानीय शिक्षकों से मिल सकेंगे और उनका आशीर्वाद पायेंगे।
लेखक श्री इन्दर सिंह परमार मध्यप्रदेश शासन में स्कूल शिक्षा राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) हैं।

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