इंदौर। कोरोनावायरस के खतरे के चलते लॉकडाउन खत्म हो जाने के बाद भी बच्चों को घर से बाहर निकलने नहीं दिया जा रहा है। इधर फीस के लालच में पहले प्राइवेट और बाद में सरकारी स्कूलों ने ऑनलाइन क्लास शुरु कर दी है। घर में लॉकडाउन और ऑनलाइन क्लास के कारण बच्चों में ऑप्थमोलॉजिकल समस्या सामने आने लगी है।
बच्चों में ऑप्थमोलॉजिकल समस्या तीन गुना बढ़ी है: डॉ अमित बंग
संस्था क्रिएट स्टोरीज सोशल वेलफेयर सोसायटी द्वारा आयोजित वेबिनार में बालरोग विशेषज्ञ डॉ. अमित बंग ने कहा कि लंबे वक्त से बच्चे घर में ही हैं और इस दौरान उनकी सेहत पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है। शारीरिक और मानसिक समस्याएं तो बच्चों में होती रहती हैं, लेकिन ऑप्थमोलॉजिकल समस्या तीन गुना बढ़ी है।
ऑप्थमोलॉजिकल समस्या में क्या होता है
इसमें दो समस्या आती है। पहली तो ये कि स्क्रीन पर ज्यादा देखने से 'डिजिटल स्ट्रेन' होती है जिसमें बच्चों को धुंधला दिख सकता है या डबल विजन व सिरदर्द हो सकता है। दूसरी समस्या कंप्यूटर विजन सिंड्रोम होता है। इसके होने की वजह यह है कि बच्चे पलकें नहीं झपकाते जिससे आंखों में रूखापन आता है और आंखें थक जाती हैं। इसलिए अभिभावक ध्यान रखें कि जहां बच्चे पढ़ें वहां पर्याप्त उजाला और स्क्रीन बड़ी हो, एंटीग्लेयर स्क्रीन, स्क्रीन की ब्राइटनेस कम और कंट्रास्ट ज्यादा हो।
लॉकडाउन के कारण बच्चे कौन-कौन सी बीमारियों का शिकार हो रहे हैं
डॉ. बंग ने कहा कि पिछले कुछ महीने में जीवन में जो बदलाव आए हैं, उसमें बड़ों से ज्यादा बच्चों ने समझौते किए हैं। उनकी जीवनशैली पूरी तरह बदल गई है। शारीरिक गतिविधियां कम होने से बच्चों का वजन तेजी से बढ़ा है। कब्ज के मामलों में दोगुनी वृद्धि हुई है।
लॉकडाउन में बच्चों को बीमारियों से बचाने के लिए क्या करें
अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चों की दिनचर्या निर्धारित करें, उन्हें संतुलित भोजन दें और पर्याप्त मात्रा में पानी पिलाएं। बच्चों के स्क्रीन टाइम और स्लीप टाइम के बीच एक घंटे का अंतर होना चाहिए। स्क्रीन टाइम ठीक करने के लिए अभिभावक खुद शारीरिक व्यायाम करें और अपने साथ बच्चों को भी व्यायाम कराएं। कोशिश करें कि रात 9 बजे बाद बच्चा ब्लू स्क्रीन का उपयोग नहीं करे। स्क्रीन से आने वाली ब्लू लाइट नींद पर बुरा प्रभाव डालती है। वेबिनार का संचालन दीपक शर्मा ने किया।