स्कूल खुल रहे हैं, सचेत रहना जरूरी है - Pratidin

Bhopal Samachar
मध्यप्रदेश में स्कूल खोलने, और  कक्षाएं लगाने को लेकर दो आला अफसर उलझे हुए है ये फैसला नहीं हो पा रहा है कि कोरोना महामारी की वजह से चार महीने से अधिक समय से बंद रहने के बाद अब स्कूलों के खुलने की गुंजाइश दिख भी रही है या नहीं ?कोरोना पाजिटिव की संख्या में हर दिन इजाफा हो रहा है  | कहने को केंद्रीय गृह मंत्रालय ने अनलॉक के चौथे चरण में स्कूल खोलने की इजाजत दे दी है, लेकिन यह स्वैच्छिक होगा यानी आखिरी फैसला संस्थानों को यानी उस स्कूल को करना है जिसका चिकित्सीय ज्ञान शून्यवत है |ऐसे में  यदि विद्यालय खुलते हैं, तो उन्हें कौन से निर्धारित निर्देशों का पालन करना होगा इस बारे में कोई स्पष्टता नहीं है | सिवाय इस आदेश के कि इस महीने की 21 तारीख से नौवीं से 12वीं कक्षाओं के विद्यार्थी स्कूल जा सकेंगे|

मोटा-मोटी निर्देश है छात्रों, शिक्षकों और कर्मचारियों को कम से कम छह फुट की शारीरिक दूरी रखनी होगी तथा मास्क पहना जरूरी होगा| इसके अलावा समय-समय पर हाथ धोना सुनिश्चित करने के साथ छींकते व खांसते हुए मुंह ढंकना होगा तथा इधर-उधर थूकने की सख्त मनाही होगी. आरोग्य सेतु के उपयोग को प्रोत्साहित किया जायेगा ताकि संपर्कों की निगरानी की जा सके|

चूंकि अभी भी बड़ी संख्या में कोरोना संक्रमण के मामले सामने आ रहे हैं, इसलिए ऑनलाइन पढ़ाई और घर में सीखने की प्रक्रिया पहले की तरह जारी रहेगी. शिक्षकों के निर्देश के मुताबिक और अपनी इच्छा से ही बच्चे स्कूल आयेंगे| इसके लिए अभिभावकों की सहमति भी जरूरी है| इसका मतलब यह है कि स्कूल तो खुलेंगे, लेकिन बच्चों का आना अनिवार्य नहीं होगा| निर्देशों में स्कूलों के परिसर और आसपास के इलाकों के सैनिटाइजेशन का भी प्रावधान है| परन्तु यह स्पष्ट नहीं है कि यह कार्रवाई करगा कौन ?अनलॉक के अब तक के चरणों से जीवन धीरे-धीरे पटरी पर आ रहा है|ऐसे में  स्पष्ट निर्देश होना चाहिए | अभी सारी जिम्मेदारी घूम फिर कर स्कूल के अध्यापक के सर आती है, जो इस सब में उलझ कर अपने मूल काम को त्याग देते हैं |

शैक्षणिक गतिविधियों को सामान्य बनाने की कोशिश भी जरूरी है, लेकिन प्रशासकीय ढुलमुल रवैया ठीक नहीं है| इसलिए स्वेच्छा का प्रावधान सराहनीय है| बीते महीनों में सुरक्षा की हिदायतों के पालन की आदत बच्चों को भी हो गयी है और नौवीं से १२ वीं के छात्र-छात्राएं स्थिति की गंभीरता को अच्छी तरह समझते हैं| छोटे बच्चों की अपेक्षा उनसे अधिक सावधानी बरतने की उम्मीद की जा सकती है| शिक्षकों और अभिभावकों के लिए उन्हें समझाना आसान भी है तथा वे अपने स्वास्थ्य की स्थिति पर भी नजर रख सकते हैं|

लेकिन, इसका यह अर्थ कदापि नहीं है कि माता-पिता, शिक्षकों और अन्य कर्मचारियों की जिम्मेदारी कम हो जाती है| उन्हें अधिक सतर्कता से निर्देशों का पालन कराना होगा और किसी भी तरह की चूक या लापरवाही को रोकने के लिए मुस्तैद रहना होगा| मनोवैज्ञानिकों का कहना है कि लॉकडाउन का असर शिक्षा पर तो पड़ा ही है, इससे बच्चों की मानसिक स्थिति भी प्रभावित हुई है क्योंकि स्कूली गतिविधियों और दोस्तों से उनकी दूरी बन गयी है| इसके कारण कुछ मनोवैज्ञानिक प्रभाव देखने को मिल सकते हैं | यह समय सारे छात्रों, पालकों, शिक्षको, स्थानीय प्रशासन और सम्पूर्ण जिला प्रशासन के लिए सतर्कता का है | कोरोना का प्रसार यदि फैलता है, तो उसके दोषी हम सब होंगे |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।
संपर्क  9425022703        
rakeshdubeyrsa@gmail.com
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