देश में हर दिन कोरोना के मरीजों की संख्या बढती जा रही है |दवा और वैक्सीन का कुछ पता नहीं है |प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अब एक एक नारा देकर समझाने की कोशिश कर रहे है| उन्होंने कोरोनावायरस वैक्सीन बनने तक सतर्कता बनाए रखने की अपील की है | मोदी का नया नारा है ''जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं| दो गज की दूरी, मास्क है जरूरी|'' परन्तु देश को अब कारगर उपाय दवा या वेक्सीन चाहिए | नारेबाजी निदान नहीं, बहलाव मात्र है |
वैज्ञानिकों की मानें तो भारत में जब वैक्सीन को मंजूरी प्रदान की जायेगी, तो दुनिया के अन्य देशों में हुए ट्रायल और भारत में हुए ट्रायल के डेटा को मिलाकर देखा जायेगा| डेटा के विश्लेषण और परिणाम के आधार पर ही वैक्सीन को स्वीकृति दी जाएगी |ब्रिटेन में एक वॉलंटियर को वैक्सीन देने के बाद जो परेशानी हुई उसके बाद ट्रायल को वहीं रोक दिया गया है| आक्सफोर्ड में वेक्सिन परिक्षण जारी है |स्वतंत्र रूप से भी जाँच जारी है |ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (डीजीसीआइ) ने नोटिस जारी कर सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया से सवाल किया है कि दूसरे देशों में चल रहे ट्रायल के नतीजों के बारे में जानकारी क्यों नहीं दी? ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्राजेनेका पीएलसी की ओर से इस समय इस वैक्सीन का ट्रायल किया जा रहा है|
भारत में इस पर रोक लगायी गयी है, तो कोई नयी बात नहीं है|
इसकी पूरी कथा कुछ ऐसी है :-वैक्सीन ट्रायल में काफी लोगों को शामिल किया जाता है| जब ट्रायल के दौरान किसी को वैक्सीन दी जाती है, तो उसमें कई लोगों को पहले से भी बीमारी होती है| पहले और दूसरे चरण में हर एक व्यक्ति की पहले क्लीनिकल जांच की जाती है| उसे देखा जाता है कि उस व्यक्ति को कहीं पहले से कोई और बीमारी तो नहीं है| लेकिन, जब तीसरे चरण में तो सामान्य जनता को चुना जाता है और उसमें पहले से लोगों की जांच नहीं की जाती है|यहाँ प्लेश्बो भी उपयोग किया जाता है | जिसका अर्थ मनोवैज्ञनिक अध्ययन है |
इसके लिए डेटा एंड सेफ्टी मॉनिटरिंग बोर्ड (डीएसएमबी) एक जांच समिति होती है, सारी जानकारी और आंकड़े उसे दिये जाते हैं| यह स्वतंत्र निकाय होता है और वैक्सीन बनाने वाले के साथ उनका कोई मतलब नहीं होता है| यह निकाय जांच करता है कि जो दिक्कत आयी है, क्या वह वैक्सीन के कारण है या किसी अन्य वजह से है| इसी जांच के आधार पर आगे की कार्रवाई निर्भर होती है|
इसीलिए, जांच कमेटी की रिपोर्ट आने के बाद उक्त कारण स्पष्ट हो पायेगा|इससे जुडी खबरों में कहा गया है कि ट्रायल के दौरान एक वॉलंटियर को ट्रांसवर्स मायलाइटिस का पता चला|इसके रीढ़ की हड्डी में गंभीर परिणाम आशंकित हैं | हालांकि, इसकी पुष्टि अभी नहीं हुई है|
पहले और दूसरे चरण में यह निर्धारित होता हैं कि वैक्सीन की कितनी डोज देनी चाहिए और दूसरी बात यह देखी जाती है- इम्यूनोजेनेसिटीजो यह बताती है कि वैक्सीन इम्यून रिस्पांस बना रही है या नहीं| यदि बना रही है, तो किस प्रकार का प्रभाव है| देखा जाता है कि इम्यून का प्रभाव क्या वाकई वायरस को मार देने में सक्षम है या नहीं| न्यूट्रलाइजिंग एंटीबॉडीज के बनने के बारे में भी पता लगाया जाता है|
अभी सभी वैक्सीन विकसित होरहे है| दुनिया में केवल तीन वैक्सीन को स्वीकृति मिली है| लेकिन, यह इमरजेंसी इस्तेमाल के लिए है| इसमें रूस की स्पुतनिक वैक्सीन और दो चीनी वैक्सीन हैं| इन वैक्सीन की चरण तीन के सीमित ट्रायल के बाद स्वीकृतकिया गया | लंबी अवधि में सुरक्षित वैक्सीन का आना अभी बाकी है| सुरक्षा के लिए जरूरी है कि इसके प्रभावों को बारीकी से जांचा जाये. जब तक सकारात्मक परिणाम नहीं निकलते, उसे सामान्य जनता को नहीं दिया जाये |
अभी भारत में सीरम के अलावा बाकी जो तीन-चार कंपनियों की वैक्सीन हैं, वे शुरुआती चरण में हैं. इसमें जायडस, भारत बायोटेक की वैक्सीन हैं, उन्हें फेज दो के परीक्षण की अनुमति मिली है| किसी से छिपा नहीं है कि वैक्सीन का सबसे अहम चरण तीसरा ही होता है.| जो बताता है कि कितनी देर तक इम्युनिटी और सुरक्षा रहती है, इसी चरण में देखा जाता है| कुछ रिएक्शन तुरंत होते हैं, कुछ में छह से आठ महीने का समय भी लगता है|
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।