कोरोना का दुष्काल और भारतीय संस्कार के जो बेमेल, देखने सुनने में आ रहे हैं, ह्र्द्यविदारक हैं | भोपाल, क्या पूरे देश में ऐसे कई मामले हुए हैं | भोपाल के मामले अत्यंत नजदीक थे, दोनों बेहद खास | परिजन और मित्र घर में बैठ कर श्रुद्धांजलि के के अतिरिक्त कुछ न कर सके| अंतिम समय में सूरत देखना भी नसीब नहीं हो सका | देश में विभिन्न जगहों से कई वीडियो वायरल हुए, जिनमें कोविड-१९ के मरीज भी हृदयविदारक स्थितियों में नजर आए। एक तो लाइलाज महामारी, दूसरे चिकित्सा कर्मियों की खुद की जान की फिक्र में सुरक्षित दूरी और अपनों की पर्याप्त देखभाल के अभाव में मरीज, करुण वेदना के साथ असहाय नजर आये।ऐसे में राजस्थान सरकार के स्वास्थ्य विभग ने जो दर्द बाँटने की पहल की है, उसके लिए शाबाशी तो बनती है |
यह विडंबना पूरे देश की है कि कोविड-१९ के प्रोटोकॉल के हिसाब से परिजन मरीज के पास रह नहीं सकते। ऐसे मुश्किल वक्त में अपनों का पास न होना दयनीय बना देता है। रोगियों की इस टीस को देखते हुए राजस्थान के स्वास्थ्य विभाग ने कोविड मरीजों के दर्द को बांटने की पहल की है। विभाग ने परिजनों को इस शर्त के साथ अपने रोगी तक पहुंचने की अनुमति देने का फैसला किया कि वार्ड में प्रवेश करने से पहले तमाम सुरक्षात्मक उपायों का पालन करेंगे। जैसे वे मास्क, पीपीई किट और हाथ में दस्ताने पहनकर वार्ड में प्रवेश करेंगे।
यह राजस्थान के स्वास्थ्य विभाग की सार्थक पहल है और पूरे देश में ऐसी संवेदनशील कोशिश करने की सख्त जरूरत है। मानवीय प्रवृत्ति होती है कि संकटकाल में जब अपने पास होते हैं तो आधे कष्ट खुद ही कम हो जाते हैं। मरीज पर इसका सकारात्मक मनोवैज्ञानिक प्रभाव पड़ता है। अपने प्रियजन की उपस्थिति और घर का बना कुछ खाने को मिल जाये तो रोगी इसे उपचार की तरह देखता है। निश्चित रूप से रोगी में इससे सुधार स्पष्ट तौर पर नजर भी आता है जिसे एक किस्म से उपचार प्रणाली का हिस्सा माना जा सकता है जो उन्हें तनाव व अवसाद से मुक्त करने में निर्णायक भूमिका निभा सकता है।
कोविड-१९ प्रोटोकॉल की सख्ती से तीमारदार अपने मरीजों को न मिल पाने की वजह से किंकर्तव्यविमूढ़ स्थिति में नजर आ रहे है । उन्हें नहीं पता था कि अस्पताल में उनका परिजन किस हाल में है। कई दफा तो उन्हें आखिरी वक्त में उनके प्रिय का शव पीपीई किट में लिपटा मिलता है तो वे अंतिम दर्शन तक नहीं कर पाते है । एक अपराधबोध-सा उनके मन में रहता है कि काश वे अपने प्रियजन से आखिरी वक्त में दो बोल कह पाते।
निस्संदेह सख्त नियमों में ढील देना एक राहत की बात है।इससे लोग अपने माता-पिता, भाई-बहन आदि से मुश्किल घड़ी में संवाद कायम कर पाएंगे। जिनकी स्थिति गंभीर है और बचने की संभावना नहीं है, उनके साथ बिताये गये अंतिम क्षण जीवन की यादगार पूंजी बन जाती है। निस्संदेह कोरोना की क्रूर महामारी ने हमारी संवेदनाओं को गहरे तक झकझोरा है और एक बड़ी आबादी को असहाय जैसी स्थिति में ला खड़ा कर दिया है।
सत्ताधीशों को कोरोना संकट की तमाम वर्जनाओं के बीच इनसानी रिश्तों को संवेदनशील ढंग से देखना चाहिए। देश ने बहुत संयम और धैर्य से सरकार के कायदे-कानूनों का पालन किया है, लेकिन ऐसी स्थिति में जब दुनिया के सबसे सख्त लॉकडाउन के बावजूद संक्रमण के लिहाज से हम नंबर एक की ओर अग्रसर हैं, पीड़ितों व उनके परिजनों को किसी हद तक राहत देने की दिशा में कुछ और कदम उठाने चाहिए।
देश के तमाम हिस्सों से कोरोना संक्रमण से गहरे अवसाद में गये कई लोगों की आत्महत्या तक करने की खबरें आई हैं और आ रही हैं । बीमारी की त्रासदी, अपनों का पास न होना और उपचार का अभाव उन्हें तोड़ देता है। बहरहाल, जब तक वैक्सीन नहीं आ जाती, हमें महामारी के साथ जीने के लिये अनुकूल माहौल तो बनाना ही होगा। अन्य राज्य भी इस दुष्काल में राजस्थान की तरह कुछ कायदे तय करें।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।