आज सच में बड़ा मुश्किल है यह कहना कि हम भारतीयों का आर्थिक भविष्य क्या है ? बिकती राष्ट्र सम्पदा, खाली खजाना, बिजली पानी स्वास्थ्य और यातायात पर बाजार का कब्जा, बैंकों के मुकाबले में उतर आये निजी वित्तीय संस्थानों की मनमानी,बेरोजगारों की फ़ौज, रोज छूटती नौकरियां, सकल घरेलू उत्पाद का 23 प्रतिशत से ज्यादा गिरना, देश को कहाँ ले जायेगा? आर्थिक विकास के बारह पंचवर्षीय पैमाने ध्वस्त हो गये | पिछले छह बरसों में प्रधानमंत्री मोदी ने योजना आयोग की जगह नीति आयोग को नीतियाँ बनाने का जो काम सौंपा, उसने देश के सार्वजनिक क्षेत्र को निजी क्षेत्र के साये तले जाने पर मजबूर कर दिया | सवाल यह है कि हम कौन से नये समन्वयवादी समाज की रचना कर रहे हैं? पालने में झूल रहे पूत के पाँव टेड़े-मेढे दिख रहे हैं | ऐसे में वो कैसे “आत्मनिर्भर” होगा ?
अभी हुआ एक ताजा फैसला, आपकी नज़र है | “केंद्र सरकार ने 20 सितंबर को सभी राज्यों को स्टैंडर्ड बिडिंग डॉक्युमेंट भेजा है जो वास्तव में बिजली वितरण कंपनियों के संपूर्ण निजीकरण का दस्तावेज है। यह पूरा दस्तावेज बिजली वितरन का निजीकरण किस प्रकार किया जाए उसका ब्लू प्रिंट है। केंद्रीय बिजली मंत्रालय ने बोली दस्तावेजों पर 5 अक्तूबर तक स्टेकहोल्डरों से आपत्ति आमंत्रित की हैं।“ केंद्र द्वारा सभी राज्यों को यह पत्र जारी किए जाने के बाद अब बिजली कंपनियों के निजीकरण का भी रास्ता साफ हो गया है। दस्तावेज को इस प्रकार तैयार किया गया है कि किसी प्रदेश को बिजली डिस्ट्रीब्यूशन का निजीकरण करने में देर नहीं लगेगी। इससे अभी चल रही सार्वजनिक क्षेत्र की बिजली वितरण कम्पनी,कर्मचारी और आम उपभोक्ता सभी प्रभावित होंगे इसमें कोई संदेह नहीं है |
अब इसके साथ कोरोना की मानवीय विभीषिका को समझिये । जिसे आज तक सही मानकर चलते रहे, वही गलत होता हुआ नजर आता है। कभी नेहरू युग की दूसरी पंचवर्षीय योजना से भारत में औद्योगिक क्रांति का नारा दिया गया था। तब घरेलू और विदेशी निवेश की सहायता से बड़े-बड़े औद्योगिक संस्थान उभरे। कृषक भारत में किसानी जीने का ढंग नहीं रही। वह हानि-लाभ का सौदा हो गयी। तब भारत में हजारों गांवों से किसी बेहतर जिंदगी की तलाश में करोड़ों युवक महानगरों के उभरते हुए औद्योगिक संस्थानों के लिए निकल पड़े और वहां निराशा हाथ लगी तो कबूतरबाजों के साथ परदेस की ओर चल पड़े ।लॉकडाउन के पांच चरण, जिन्हें आज अनलॉक के चार चरण भी संभाल नहीं पा रहे। कभी देश के गांव घरों से करोड़ों श्रमिक इन महानगरों और विदेशों के विकल्प की तलाश में चले आये थे। आर्थिक निष्क्रियता के इस नये सत्य ने उन्हें पंगु बना दिया। विदेशों और महानगरों में अपनी जड़ें तलाशते हुए ये लोग उखड़ गये और वापस अपनी ग्रामीण सभ्यता की ओर भी न लौट सके |आंकड़े यह बताते हैं कि इस आर्थिक दुरावस्था के दिनों में जहां सकल घरेलू उत्पादन 23.9 प्रतिशत कम हो गया। ऐसे में आत्मनिर्भर भारत किन उम्मीदों पर खड़ा होगा सोचिये |
क्या आपको नहीं मालूम कि बिजली कंपनियों के निजीकरण का सबसे अधिक असर आम लोगों पर पड़ेगा। बिजली दरें महंगी होनी तय हैं, जबकि इसका असर किसानों पर भी होगा |नई नीति और निजीकरण के बाद सब्सिडी समाप्त होने से स्वाभाविक तौर पर सारे उपभोक्ताओं के लिए बिजली महंगी होगी।नए कानून के अनुसार बिजली दरों में मिलने वाली सब्सिडी पूरी तरह समाप्त हो जाएगी और किसानों सहित सभी घरेलू उपभोक्ताओं को बिजली की पूरी लागत देनी होगी| जरा इलेक्ट्रिसिटी(अमेंडमेंट) बिल 2020 पर नजर डालिए इसमें कहा गया है कि नई टैरिफ नीति में आने वाले तीन सालो में सब्सिडी और क्रास सब्सिडी समाप्त कर दी जाएगी और किसी को भी लागत से कम मूल्य पर बिजली नहीं दी जाएगी। अभी किसानों, गरीबी रेखा के नीचे और 500 यूनिट प्रति माह बिजली खर्च करने वाले उपभोक्ताओं को सब्सिडी मिलती है जिसके चलते इन उपभोक्ताओं को लागत से कम मूल्य पर बिजली मिल रही है।
अब बात बैंकों के मुकाबले खड़े निजी वित्तीय संस्थानों की भी हो जाये | कोरोना काल के पहले इण्डिया बुल्स नामक एक निजी वित्तीय कम्पनी ने जिस ब्याज दर पर ऋण दिया था, उस ब्याज दर एकाएक बड़ा दिया, एक मित्र जब किश्त चुकाने पहुंचे, हतप्रभ रह गये | ऐसी कलाकारी लगभग सभी निजी वित्तीय कम्पनियों ने की है | दूसरी तरफ बैंक ऋण देने के लिए आतुर हैं, पर छोटे व्यापारियों को नहीं, सिर्फ बड़े व्यापारियों और खास तौर पर उनको जिनकी सिफारिश सत्तारूढ़ दल कर रहे हैं | क्या यह आत्मनिर्भर भारत का चित्र है ?
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।