केंद्र सरकार के एक आदेश ने सभी मंत्रालयों और विभागों में हड़कंप मचा रखा है। इससे देश के 49 लाख सरकारी कर्मियों को दिन में तारे नजर आने लगे हैं । विशेष कर ऐसे कर्मचारी और अधिकारी, जिन्होंने अपनी सेवा के तीन दशक पूरे कर लिए हैं, केंद्र सरकार का आदेश जारी होने के बाद वे खुद को असुरक्षित महसूस करने लगे हैं। इसके साथ यह सवाल सिर उठाने लगा है भ्रष्टाचार, अक्षमता व अनियमितता के आरोप में अफसरों औए कर्मचारियों को “रिटायर” किया जा सकता है, तो इन्ही आरोपों से सिर से पैर तक सने “लोकसेवक” क्यों बख्शे जाते हैं ? उनके साथ सह्रदयता क्यों बरती जाती है?
सभी मंत्रालयों और विभागों को एक पत्र भेजा गया है, उसमें विस्तार से यह समझाया गया है कि जनहित में, विभागीय कार्यों को गति देने, अर्थव्यवस्था के चलते और प्रशासन में दक्षता लाने के लिए मूल नियमों 'एफआर' और सीसीएस (पेंशन) रूल्स-1972 में समय पूर्व रिटायरमेंट देने का प्रावधान है। इस पत्र में सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला भी दिया गया है। इस पत्र में सरकार ने यह साफ कर दिया है कि आवधिक समीक्षा को सख्ती से लागू किया जाएगा। जनहित में समय पूर्व रिटायरमेंट कोई पेनाल्टी नहीं है।
डीओपीटी (कार्मिक और प्रशिक्षण विभाग) के मुताबिक, माकूल अथॉरिटी को यह अधिकार है कि वह किसी भी सरकारी कर्मचारी को एफआर ५६ (जे)/रूल्स-४८ (1) (बी)ऑफ सीसीएस (पेंशन) रूल्स-१९७२ नियम के तहत रिटायर कर सकता है। बशर्ते वह केस जनहित के लिए आवश्यक हो। इस तरह के मामलों में संबंधित कर्मचारी को तीन माह का अग्रिम वेतन देकर रिटायर कर दिया जाता है। कई मामलों में उन्हें तीन महीने पहले अग्रिम लिखित नोटिस भी देने का नियम है।
जिस ‘जनहित’ शब्द का प्रयोग सरकार कर्मचारियों को रिटायर करने के मंसूबे बना रही है, वह जनहित “लोकसेवक” मंत्री और “जनसेवक” सांसद, विधायक, महापौर,पार्षद और सरपंच –पंच के मामले में इतर क्यों है ? जनहित के मामले में अंतिम निर्णय तो कोई जनसेवक या लोकसेवक ही लेता है | फिर कर्मचारी और अधिकारी ही दंड के भागी क्यों?
पात्र में 'ए' और 'बी' में तदर्थ या स्थायी क्षमता में कार्यरत किसी कर्मी ने ३५ साल की आयु से पहले सरकारी सेवा में प्रवेश किया है तो उसकी आयु ५० साल पूरी होने पर या तीस वर्ष सेवा के बाद, जो पहले आती हो, रिटायरमेंट का नोटिस दिया जा सकता है। अन्य मामलों में५५ साल की आयु के बाद का नियम है। अगर कोई कर्मी ग्रुप 'सी' में है और वह किसी पेंशन नियमों द्वारा शासित नहीं है, तो उसे ३० साल की नौकरी के बाद तीन माह का नोटिस देकर रिटायर किया जा सकता है।लेकिन “जनसेवक “ और “लोकसेवक” के लिए न्यूनतम आयु नियम प्रवेश के लिए है, पर कदाचरण के कारण जाँच या रिटायर करने का कोई नियम नहीं है | उन्हें इस बात की छूट है की वे जेल से से लेकर मृत्यु शैया पर आरूढ़ होने तक टिकट मांग सकते है, चुनाव लड सकते हैं |
इसी तरह पेंशन और अन्य राशियों के भुगतान के भी नियम हैं,रिटायर्मेंट के समय या उसके बाद किसी प्रकार का दोष प्रमाणित होने पर जनहित में पेंशन और अन्य भुगतान कर्मचारियों और अधिकारीयों के रोकने के अनेक उदाहरण हैं | परन्तु ”लोकसेवक” और “जनसेवकों” के भुगतान तश्तरी में रखकर उनके घर पहुंचाए जाते हैं | इनके प्रकरणों में कभी जनहित नहीं देखा जाता है।
अभी तो सेंट्रल सिविल सर्विसेज (पेंशन) 1972 के नियम 56 (जे) के अंतर्गत 30 साल तक सेवा पूरी कर चुके या 50 साल की उम्र पर पहुंचे अफसरों की नींद उडी हुई है कि उनकी सेवा कभी भी समाप्त की जा सकती है। संबंधित विभाग से इन अफसरों की जो रिपोर्ट तलब की जा रही है, उसमें भ्रष्टाचार, अक्षमता व अनियमितता के आरोप देखे जारहे हैं। यदि आरोप सही साबित होते हैं तो अफसरों को रिटायरमेंट दे दी जाएगी । नोटिस और तीन महीने का वेतन-भत्ता देकर घर भेजा जा सकता है। पर “लोकसेवक” और “जनसेवकों” के सब अपराध माफ़ |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।