कोलिन्स के शब्दकोष में पुलिस को यूँ परिभाषित [ “The police are the official organization that is responsible for making sure that people obey the law.”]किया गया है | आज पुलिस इस परिभाषा से इतर सरकारों को नीचा दिखाने वाले सन्गठन में बदलती जा रही है | चाहे वो महारष्ट्र में सुशांत राजपूत का मामला हो या मध्यप्रदेश में शनै:-शनै: नेपथ्य में भेजा जा रहा “हनी-ट्रेप” का गर्मागर्म किस्सा अथवा छत्तीसगढ़ में 13 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर गढा गया झूठा मुकदमा | ये मामले पुलिस और राजनीति के कुत्सित गठजोड़ के नग्न सत्य है | अभी इसका परिणाम छत्तीसगढ़ सरकार एक –एक लाख रूपये का मुआवजा देकर भुगत रही है | यह देश की पुलिस के लिए कलंक से कम नही है |
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने छत्तीसगढ़ सरकार को उन 13 मानवाधिकार कार्यकर्ताओं, विधिवेत्ताओं और शिक्षाविदों को एक- एक लाख रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया है। जिनके खिलाफ अक्टूबर 2016 में छत्तीसगढ़ पुलिस ने सुकमा, बस्तर में आर्म्स एक्ट के तहत IPC की विभिन्न धाराओं में छह मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के खिलाफ और आईपीए- यूएपीए के तहत सात लोगों के खिलाफ FIR दर्ज की थी। १५ नवंबर २०१८ को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में सुनवाई करते हुए तत्कालीन सरकार को आदेश दिया था कि वह कार्यकर्ताओं को गिरफ्तार न करे और SIT गठित करके मामले की जांच कराए, लेकिन नई सरकार बनने तक [2018] इस मामले की कोई जांच नहीं हुई। फरवरी 2019 में FIR भी वापस हुई ।
राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग ने अपने फैसले में कहा है कि- हम मानते हैं कि उनके खिलाफ दर्ज की गई 'झूठी FIR' के कारण उन्हें मानसिक रूप से परेशानी का सामना करना पड़ा है और यह मानवाधिकारों का भी उल्लंघन है। छत्तीसगढ़ सरकार को उन्हें मुआवजा देना चाहिए। इसलिए, हम मुख्य सचिव के माध्यम से छत्तीसगढ़ सरकार को सलाह और निर्देश देते हैं कि प्रोफेसर नंदिनी सुंदर, अर्चना प्रसाद, विनीत तिवारी, संजय परते, मंजू और मंगला राम कर्म को उनके मानवाधिकारों के उल्लंघन के लिए मुआवजे के रूप में १ लाख रुपये दिए जाएं। इसी निर्देश में, आयोग ने तेलंगाना के अधिवक्ताओं के एक तथ्य खोजने वाले दल के सात सदस्यों के लिए मुआवजे का भी आदेश दिया है। पुलिस ने बस्तर में आगजनी की घटना पर तथ्य खोजने निकले इन अधिवक्ताओं की टीम के खिलाफ एफआईआर दर्ज कर उन्हें गिरफ्तार कर लिया था। इन्हें भी सुकमा की जेल में सात महीने बिताने पडे थे। इस दल में सी.एच. प्रभाकर, बी दुर्गा प्रसाद, बी रबींद्रनाथ, डी प्रभाकर, आर लक्ष्मैया, मोहम्मद नज़र और के राजेंद्र प्रसाद शामिल थे।अब छत्तीसगढ सरकार ने मुआवजा देने का एलान कर दिया है | इस सारी व्यूह रचना को प्रश्रय देने वाली सरकार और व्यूह रचनाकार पुलिस अधिकारी तत्कालीन पुलिस महानिरीक्षक एसआरपी कल्लूरी अब पद पर नहीं है, परन्तु कालिख तो पुलिस सन्गठन के विधि पालन [obey the law} कर्तव्य पर पुत चुकी है |
सुशांत राजपूत मामले में महारष्ट्र पुलिस और राजनीति का गठजोड़ उस दिन ही सामने आ गया था जब बिहार पुलिस के लोगों के साथ दुर्व्यवहार किया गया था | एक पुलिस ने दूसरे राज्य की पुलिस को घटिया हथकंडे अपना कर जाँच करने नहीं दी थी | अब सी बी आई द्वारा उधेड़ी जा रही परतें अपराध जगत राजनीति और पुलिस के घालमेल की कुत्सित कथा पर से नकाब हटा रही हैं | यहाँ भी सारी जाँच जिस दिशा में जा रही है वो भी राजनीति,पुलिस और अपराध जगत के गंदे समीकरण ही हैं |
मध्यप्रदेश के इंदौर में दर्ज “हनी ट्रेप” का मामला भी ऐसा ही राजनीतिक खेल समझ आता है | एक सेवा निवृत मुख्य सचिव स्तर के अधिकारी का मानना है “एक राजनीतिक दल के कारकूनो के पास से बेहिसाब धन मिलने की कहानी का यह उत्तरार्ध “हनी ट्रेप” है |सरकार बदलने के साथ जाँच की दिशा और जाँच अधिकारीयों का बदलना इस मामले के पूर्णविराम की और जाने के संकेत हैं | वैसे मध्यप्रदेश पुलिस द्वारा जोर शोर से शुरू किये गये व्यापम कांड, मंत्री द्वारा अपने कर्मचारी से यौनाचार भी इधर उधर भटकते न्याय की दिशा को भटका रहे हैं | इस पर सरकार का यह तुर्रा की हमने दोषी मंत्रियों और अन्य को जेल भेजा सरकार के चेहरे पर लगी कालिख को कम नहीं करता | बल्कि यह सवाल पैदा होता है कि इन अपराधों के घटते समय प्रदेश का शीर्ष क्या सो रहा था ?मध्यप्रदेश में सरकार भले ही कुछ भी कहे सत्ता और प्रतिपक्ष की नुर्राकुश्ती जारी है | दुःख इस बात का है “देश भक्ति और जन सेवा” की शपथ लेने वाली पुलिस इनकी या उनकी अवैधानिक सेवा में लगी है |
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।