जबलपुर। मध्य प्रदेश राज्य प्रशासनिक सेवा की महिला अधिकारी एवं सबडिवीजन गोरखपुर जिला जबलपुर की तत्कालीन एसडीएम मनीषा वास्कले द्वारा एक जमीन विवाद के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट में दाखिल की गई याचिका की प्रक्रिया में प्रस्तुत की गई जानकारी, गुमराह करने वाली पाई गई है। सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस जारी करके जवाब तलब किया है। जवाब पेश करने की तारीख 5 अक्टूबर 2020 सुनिश्चित की गई है।
जबलपुर की जमीन का मामला: हाई कोर्ट में सरकार हार गई
जबलपुर में गढ़ा क्षेत्र निवासी केसर इकबाल की ओर से 2009 में हाइकोर्ट में याचिका दायर की गई थी। जिसमें कहा गया था कि उनकी जमीन को अर्बन सीलिंग एक्ट के तहत सरकार ने अपने नाम कर लिया। इसके लिए एक्ट व सुको के निर्देशों के तहत विहित प्रक्रिया का पालन नही किया गया। 15 मई 2017 को मप्र हाइकोर्ट के न्यायमूर्ति जेके माहेश्वरी की एकलपीठ ने याचिका मंजूर करते हुए राज्य सरकार की प्रक्रिया को गलत बताया। कोर्ट ने प्रक्रिया निरस्त कर विवादित जमीन को रिकॉर्ड में याचिकाकर्ता के नाम दर्ज करने के निर्देश दिये।
जबलपुर अर्बन सीलिंग एक्ट: सरकार ने हाईकोर्ट के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई
इसके खिलाफ सरकार की ओर से अपील की गई, लेकिन 4 जनवरी 2018 को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश हेमंत गुप्ता की युगलपीठ ने इसे खारिज कर दिया। इस आदेश को फिर से सरकार ने पुनरीक्षण याचिका के जरिए चुनौती दी लेकिन इसे भी 19 मार्च 2019 को तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश एसके सेठ की युगलपीठ ने निरस्त कर दिया। उक्त आदेशों के खिलाफ सरकार की ओर से 2019 में सुको में यह एसएलपी दायर की गई।
झूठ बोल कर लिया स्टे :
सुप्रीम कोर्ट में इकबाल की ओर से सीनियर एडवोकेट रवि प्रकाश और अनुज त्यागी ने पक्ष रखा। उन्होंने दलील दी कि SDM ने गलतबयानी की है। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट जानकारी दी कि राज्य सरकार की ओर से इसके पूर्व कोई SLP इस मसले पर दायर नहीं की गई। जबकि पूर्व में वापस लेने के आधार पर 18 दिसंबर 2018 को उनकी एसएलपी सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दी थी। इसके अलावा यह भी झूठ बोला गया कि उन्हें हाइकोर्ट में पुनरीक्षण याचिका दायर करने की छूट मिली थी। इन घोषणाओं को कोर्ट ने गुमराह करने वाली मानकर सुप्रीम कोर्ट द्वारा SDM के प्रति नाराजगी जाहिर की गई।