दुनिया में बहुत सारे लोग अपनी असफलताओं का कारण पेरेंट्स, परिस्थितियां और किस्मत को बताते हैं परंतु आज सफलता के शिखर पर चमक रहे जिस सितारे की बात हो रही है एक समय उसकी जिंदगी मौत से भी मुश्किल हो गई थी लेकिन सिर्फ पढ़ाई करते रहने के कारण ना केवल वह अपनी लाइफ बदल पाई बल्कि सारी दुनिया के लिए मिसाल बन कर स्थापित हो गई। उम्मूल खेर की कहानी, दशकों तक सुनाई जाएगी।
उम्मूल खेर: जन्म के साथ ऐसी बीमारी आई थी कि जिंदा रहना मुश्किल
उम्मूल खेर का जन्म दिल्ली के निजामुद्दीन की एक झुग्गी में हुआ था। उनके पिता फुटपाथ पर सामान बेचा करते थे। उम्मूल खेर जन्म से ही एक ऐसी बीमारी से ग्रसित थी जिसके कारण हड्डियां काफी कमजोर हो जाती हैं। एक सामान्य मनुष्य की हड्डियां जितना दबाव या झटके सहन कर पाती है, इस बीमारी में उतने से दबाव में हड्डी टूट जाती है। उम्मूल खेर स्कूल से कॉलेज तक नहीं पहुंच पाई थी और 15 फैक्चर एवं 8 सर्जरी हो चुकी थी।
उम्मूल खेर: स्कूली शिक्षा पूरी होने से पहले मां का साया उठ गया
इतनी गंभीर बीमारी के बीच उम्मूल खेर की मां का देहांत हो गया। इतनी गंभीर बीमारी और गरीबी के बीच स्कूल जाती हुई मासूम बच्ची के सिर से मां का साया उठ जाना कितना कष्टकारी होता है, बहुत सारे लोग इसकी कल्पना तक नहीं कर सकते।
उम्मूल खेर: सौतेली मां ने घर से निकाल दिया
गंभीर बीमारी, गरीबी के साथ लावारिस हो चुका जीवन बता रही उम्मूल खेर की जिंदगी में अभी और दुख आने वाले थे। सरकार ने निजामुद्दीन की झुग्गियों को बलपूर्वक हटा दिया। उम्मूल खेर के पिता त्रिलोकपुरी में किराए पर कमरा लेकर रहने लगे। सरकारी कार्यवाही के दौरान उम्मूल खेर के पिता का सब कुछ बर्बाद हो गया था। अब वह फुटपाथ पर दुकान भी नहीं लगाते थे। घर चलाने के लिए उम्मूल खेर ने गरीब बस्ती के बच्चों को ₹50 महीने में ट्यूशन पढ़ाना शुरू किया। इधर पिता ने दूसरी शादी कर ली है। सौतेली मां ने फैसला सुनाया कि उम्मूल खेर 10वीं के बाद पढ़ाई छोड़ देगी और सिलाई का काम करके घर का खर्चा चलाएगी। उम्मूल के पिता भी इस बात से सहमत थे लेकिन उम्मूल खेर को यह फैसला मंजूर नहीं था। नतीजा सौतेली मां ने उम्मूल खेर को घर से निकाल दिया।
उम्मूल खेर: ट्यूशन पढ़ाकर खर्चा चलाया लेकिन पढ़ाई नहीं छोड़ी
उम्मूल खेर ने इतनी विषम परिस्थितियों में भी पढ़ाई नहीं छोड़ी। ₹50 महीने में ट्यूशन पढ़ाकर वह न केवल अपना खर्चा और दवाई के पैसे निकाल दी थी बल्कि पढ़ाई के लिए भी पैसे जमा कर लेती थी। बढ़ती उम्र की लड़की के लिए इस तरह की बस्ती में अकेले रहना कितना जोखिम भरा है बताने की जरूरत नहीं है लेकिन फिर भी उम्मूल खेर का संघर्ष जारी रहा।
उम्मूल खेर: और 1 दिन किस्मत ने घुटने टेक दिए
प्राइमरी स्कूल में एडमिशन लेने से लेकर ग्रेजुएशन कंप्लीट करने तक उम्मूल खेर कि जिंदगी कदम कदम पर मौत से ज्यादा दर्दनाक थी लेकिन उम्मूल खेर की लगातार पढ़ाई करते रहने की जिद ने किस्मत को उसके सामने घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया। उम्मूल ने इंटरनेशनल स्टडीज में मास्टर के लिए जेएनयू प्रवेश परीक्षा पास की। जिसमें उन्हें 2,000 रुपये का साधन-सह-योग्यता छात्रवृत्ति मिल रही थी। 2013 में, उसने जूनियर रिसर्च फेलोशिप (JRF) को क्रैक किया जिसके तहत उसे प्रति माह 25,000 रुपये मिलने लगे। JRF के साथ ही उम्मूल ने UPSC की परीक्षा दी। साल 2017 में उनका रिजल्ट आया। यही वह दिन था जिसने उम्मूल खेर को एक लड़की से प्रेरणादायक कहानी में बदल दिया। पहले ही प्रयास में उम्मूल खेर UPSC पास कर चुकी थी।
MORAL OF THE STORY
उम्मूल खेर खुद बताती है कि पढ़ाई यह कैसी चीज है जो किसी की भी लाइफ बदल सकती है। पेरेंट्स और परिस्थितियों का चुनाव किसी के हाथ में नहीं होता लेकिन पढ़ाई करना किसी के भी हाथ में हो सकता है। पढ़ाई करने का एक और फायदा यह है कि सोसाइटी अपने आप आप को प्रोटेक्ट करने लगती है। भगवान कुछ लोगों को पास पड़ोसी बना कर भेज देता है। जो आपसे प्यार करते हैं। अपने बच्चों की तरह आपका ध्यान रखते हैं। आपको अकेले होने का एहसास नहीं होता।