हर घटना के हानि और लाभ दोनों होते है| कोविद-१९ के कारण आये दुष्काल का भी भारत को बड़ा लाभ हुआ है | इस काल अर्थात मार्च से मई, 2020 के बीच भारत में टीबी के नये मामलों के दर्ज होने में कमी आयी है| लेकिन इस बात की कोई गारंटी नही है की यह दृश्य ऐसा ही रहेगा, इस कारण एक स्पष्ट नीति की आवश्यकता है | इंडियन जर्नल ऑफ ट्यूबरकुलोसिस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, आठ हफ्ते के लॉकडाउन(२५ मार्च से १९ मई, 2020 तक) के दौरान टीबी मामलों की जांच में, लॉकडाउन से आठ हफ्ते पहले(२५ जनवरी से २४ मार्च, 2020 तक) के मुकाबले ५९ प्रतिशत की गिरावट आयी| इन आंकड़ों की तुलना पिछले वर्ष की इसी अवधि(२५ मार्च से 19 मई, 2019) से करें, तो यह गिरावट ६२ प्रतिशत रही|
‘निक्षय’ नामक एक वेबसाइट है | जहाँ पर इस प्रकार के आंकड़ों गणना की जाती है| ‘निक्षय’ भारत के राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम की केस आधारित इलेक्ट्रॉनिक टीबी अधिसूचना प्रणाली है|
इस बाबत शोधकर्ताओं ने लिखा है- ‘आठ हफ्ते के दौरान जांच प्रक्रिया में आयी ५९ प्रतिशत की गिरावट के मद्देनजर ८७७११ अतिरिक्त टीबीजनित मौतों (१९.५ प्रतिशत की बढ़त) का अनुमान है, इस प्रकार २०२० में टीबी से कुल ५३७१११ मौतें अनुमानित हैं| वर्ष २०१५ में टीबी से सर्वाधिक ५, १७,००० मौतें हुई थीं| उसके बाद से इसमें हर साल गिरावट आयी है| हालांकि, नये अनुमान से स्पष्ट है कि २०२० में मौतों का आंकड़ा २०१५ को पार कर जायेगा|
दुर्भाग्य है कि अभी भी टीबी के मामले समुचित तरीके से दर्ज नहीं हो रहे हैं| जून से सितंबर, २०२० की अवधि में दर्ज मामले बीते वर्ष की इसी अवधि में दर्ज मामलों की तुलना में 67 प्रतिशत ही हैं| लॉकडाउन में ढील देने के बावजूद ज्यादा बदलाव नहीं आया है|
सब जानते हैं इस बीमारी की तीव्रता और गंभीरता पोषण की स्थिति पर निर्भर है| रोजगार छिनने और खाद्य सुरक्षा नहीं होने से लोगों के पोषण पर बुरा प्रभाव पड़ा है| इससे हालात गंभीर होंगे और टीबी से मौतों में भी बढ़ोतरी होगी| हालांकि, दूसरा तर्क भी है कि कोविड संक्रमण को रोकने के लिए सामाजिक दूरी, मास्क के इस्तेमाल और खांसी से बचाव जैसे उपायों के कारण टीबी का फैलाव रुका है, जिससे मामले कम हुए हैं| ऐसे तर्कों से टीबी के खिलाफ हमारी लड़ाई जटिल हो सकती है|
एक और कारण भी क्माक्लं का हो सकता है| देश के ज्यादातर हिस्सों में लेबोरेटरी तथा रेडियोलॉजी सर्विसेज जैसी बाह्य स्वास्थ्य सेवाएं बंद रहीं| लैब टेक्नीशियन कोविड टेस्टिंग में व्यस्त रहे| मरीजों को जाँच केंद्र तक पहुंचने से रोका गया और उनकी जांच नहीं हो पायी| इससे टीबी मरीजों का आकलन और इलाज नहीं हो पाया| यातायात सुविधाएं बाधित होने से मरीज स्वास्थ्य केंद्रों तक नहीं पहुंच पाये और रोजगार छिनने और दुश्वारियों के कारण वे प्राइवेट अस्पतालों में इलाज वहन नहीं कर सकते|
यह देखने में आया है कि बिना इलाज के मरीजों की संख्या बढ़ रही है और इलाज से महरूम होने से बीमारी अधिक खतरनाक होती जा रही है| टीबी नियंत्रण पर दोबारा ध्यान केंद्रित करने के लिए कुछ अहम कदम उठाने की आवश्यकता है
अब कोविड की जांच और इलाज के साथ-साथ टीबी के लिए भी स्पष्ट रणनीति बनाने की जरूरत है. टीबी की जांच और इलाज के लिए पीएचसी तथा सीएचसी पर हफ्ते में कुछ दिन निर्धारित किये जाने चाहिए |. यातायात समस्याओं, नकदी की कमी जैसी दिक्कतों के मद्देनजर लार के नमूनों को लेकर जांच के लिए भेजा जा सकता है| साथ ही एक्स-रे सुविधा के लिए मोबाइल वैन का इस्तेमाल किया जा सकता है|
आंकड़े कहते हैं टीबी के मरीजों में आधे से अधिक पुरुष होते हैं, जो कि परिवार में आमदनी का अहम जरिया हैं| उनके बीमार होने से आमदनी और पौष्टिक खान-पान की दिक्कत बढ़ जाती है| टीबी मरीजों में कुपोषण सबसे गंभीर समस्या है| २०१९ में जिन टीबी मरीजों का इलाज हुआ , उनमें ९३ प्रतिशत कुपोषित थे,६१ प्रतिशत तो अतिगंभीर कुपोषित थे| सरकार को इस ओर ध्यान देना चाहिए।
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श्री राकेश दुबे वरिष्ठ पत्रकार एवं स्तंभकार हैं।