अपराध तो अपराध होता है, इससे क्या फर्क पड़ता है कि अपराध कितने बजे किया गया, लेकिन भारतीय दंड संहिता के अनुसार लूट के मामले में इससे फर्क पड़ता है कि अपराध कितने बजे किया गया। यदि लूट दिन के समय हुई है तो सजा कुछ और होगी और यदि रात के समय किसी को लूट लिया गया तो लुटेरों की सजा अलग से निर्धारित होगी। आइए कानून के इस लॉजिक को समझने की कोशिश करते हैं:-
भारतीय दण्ड संहिता,1860 की धारा 392 की परिभाषा:-
1. धारा 392 लूट के दण्ड की बात करती है। उपर्युक्त धारा के अनुसार लूट के अपराध में न्यूनतम सजा 10 वर्ष की कठिन कारावास होगी। साथ में जुर्माने से भी दण्डित किया जा सकता है।
2. अगर कोई व्यक्ति किसी राजमार्ग में सूर्यास्त के बाद और सूर्योदय के पहले लूट करता है तब उपर्युक्त धारा के अनुसार 14 वर्ष की कठिन कारावास एवं जुर्माने से दण्डित किया जा सकता है।
नोट:- हत्या के साथ अगर लूट करता है तब हत्या के अपराध के साथ धारा 392 जोड़ी जाना वैध होगी।
उधरणानुसार वाद:- जमनादास परस राम बनाम मध्यप्रदेश- मद्रास उच्च न्यायालय ने विनिशिचत किया कि कुछ व्यक्तियों ने एक साथ मिलकर एक ही समय हत्या और लूट का अपराध किया हो वहाँ आरोपियों के लिए धारा 392 लागू होगी।
न्यायालय द्वारा संज्ञान:-
यह अपराध समझौता योग्य नहीं होते हैं, यह संज्ञेय एवं अजमानतीय अपराध होते हैं। इनकी सुनवाई का अधिकार प्रथम श्रेणी में मजिस्ट्रेट को होता है। :- लेखक बी. आर. अहिरवार (पत्रकार एवं लॉ छात्र होशंगाबाद) 9827737665 | (Notice: this is the copyright protected post. do not try to copy of this article)
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