छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर के ब्राह्मणपारा में स्थित कंकाली मठ को साल में एक बार दशहरा के दिन ही खोला जाता है। यह परंपरा लगभग 400 साल से निभाई जा रही है। कहा जाता है कि पहले मां कंकाली की प्रतिमा नागा साधुओं द्वारा स्थापित मठ में ही प्रतिष्ठापित थीं, जिसे बाद में भव्य मंदिर में स्थानांतरित किया गया। नागा साधुओं के प्राचीन शस्त्रों को वहीं रहने दिया गया। इन्हीं शस्त्रों को दशहरा के दिन भक्तों के दर्शनार्थ रखा जाता है। मान्यता है कि मां कंकाली दशहरा के दिन वापस मठ में आतीं हैं, उनकी आवभगत के लिए मठ खुलता है। रात्रि को पूजा पश्चात फिर एक साल के लिए मठ का द्वार बंद कर दिया जाता है।
17वीं शताब्दी में मठ से मंदिर में प्रतिष्ठापित हुई प्रतिमा
मठ के महंत हरभूषण गिरी बताते हैं कि वर्तमान में कंकाली मंदिर में जो प्रतिमा है, वह पहले मठ में थी। 13वीं शताब्दी से लेकर 17वीं शताब्दी तक मठ में पूजा होती थी। नागा साधु ही पूजा करते थे। 17वीं शताब्दी में नए मंदिर का निर्माण होने के पश्चात कंकाली माता की प्रतिमा को मठ से स्थानांतरित कर मंदिर में प्रतिष्ठापित किया गया। आज भी उसी मठ में अस्त्र-शस्त्र रखे हुए हैं। साथ ही मठ में रहने वाले नागा साधुओं में जब किसी नागा साधु की मृत्यु हो जाती तो उसी मठ में समाधि बना दी जाती थी। उन समाधियों में भी भक्त मत्था टेकते हैं।
मठ के पहले महंत कृपालु गिरी
मठ के पहले महंत कृपालु गिरी हुए। इसके बाद भभूता गिरी, शंकर गिरी महंत बने। तीनों निहंग संन्यासी थे, लेकिन समय परिवर्तन के साथ महंत शंकर गिरी ने निहंग प्रथा को समाप्त कर शिष्य सोमार गिरी का विवाह कराया। उनकी संतान नहीं हुई तो शिष्य शंभू गिरी को महंत बनाया। शंभू गिरी के प्रपौत्र रामेश्वर गिरी के वंशज वर्तमान में कंकाली मठ के महंत एवं सर्वराकार हैं।
महंत ने ली थी जीवित समाधि
स्पप्न में दर्शन देकर माता ने मंदिर बनवाकर स्थापित करने का आदेश दिया था। महंत ने मंदिर का निर्माण करवाया। माता ने बालिका के रूप में दर्शन दिया किंतु महंत समझ नहीं पाए। जब चेतना जागी तब पछतावा हुआ और महंत ने जीवित समाधि ले ली।
ये शस्त्र हैं कंकाली मठ में
कंकाली मठ में एक हजार साल से अधिक पुराने शस्त्रों में तलवार, फरसा, भाला, ढाल, चाकू, तीर-कमान जैसे शस्त्र रखे हुए हैं। इनका दर्शन रविवार को दशहरा पर किया जा सकेगा।
कंकाली तालाब में स्नान करने से त्वचा रोग समाप्त हो जाते हैं
कंकाली मंदिर को लेकर एक मान्यता ये भी है कि मंदिर के स्थान पर पहले शमशान था जिसकी वजह से दाह संस्कार के बाद हड्डियां कंकाली तालाब में डाल दी जाती थी। कंकाल से कंकाली तालाब का नामकरण हुआ। कंकाली तालाब में लोगों की गहरी आस्था है। ऐसी मान्यता है कि इस तालाब में स्नान करने मात्र से त्वचा संबंधी बीमारी से निजात मिल जाती है। कंकाली तालाब पर कई शोध भी हुए हैं। जिसमें ये कहा गया है कि शमशान होने की वजह से मृतक अस्थि कंकाल का विसर्जन तालाब में किया जाता था। और यही वजह है कि हड्डी के फास्फोरस के अंश घुलने की वजह से इस तालाब में नहाने से चर्मरोग दूर होते हैं। श्रद्धालु पहले कंकाली तालाब में स्नान करते हैं। फिर इसी मंदिर में झाड़ू चढ़ाते हैं जिससे उन्हे चर्म रोग से मुक्ती मिलती है। आज भी घर-घर में घट स्थापना के दौरान बोए जाने वाला जवारा और प्रज्ज्वलित ज्योति का विसर्जन रायपुर शहर के लोग कंकाली तालाब में ही करते हैं। तालाब में विसर्जन करने आने वाले मन्नतधारी श्रद्धालु अपने पूरे शरीर पर नुकीले सांग-बाणा धारण कर आते हैं और तालाब के पानी को शरीर पर छिड़कते हैं।