कन्हैयालाल लक्षकार। एक चलन चल पड़ा जो देखों मुफ्त प्राप्त करना चाहता है। कोई भी सुविधा, वस्तु या प्रकृति प्रदत्त शुद्ध हवा,पानी, वनस्पति जन्य उपज, बिजली, खनिज कभी मुफ्त नहीं मिलती। सबका मोल उपभोग हेतु चुकाना होता हैं। दुनिया में प्राकृतिक संसाधन हो या मानव निर्मित सुविधा; सतत प्राप्त करने के लिए यदि कीमत चुकाने की आदत नहीं है तो उनका पुनर्निर्माण कैसे होगा? इसकी कीमत कोई तो चुकाता है तो ही मुफ्त मिलती दिखाई देती है।
मुफ्तखोरी मानव समाज की सबसे बड़ी कमजोरी है। इसका दोहन आजकल राजनीति में भरपूर किया जा रहा है। वोट की फसल काटने का यह कारगर तरीका है। सभी राजनीतिक दल इसका उपयोग अपने तरीके से करते हुए सत्ता सुख भोग रहे है या भोग चुके है। मसलन एक किलों बर्फ लेकर पंक्तिबद्ध खड़े लोगों में पहले व्यक्ति को देकर कहें "अपने पास वाले को देते हुए राजा तक पहुंचाये। यहां आते-आते बर्फ कम होता चला जाता है। फिर राजा यही बर्फ अपनी व्यवस्था से अंतिम व्यक्ति तक भेजता है। यहां आते-आते बर्फ का क्या हश्र हुआ व कितना बचा है, मात्र कल्पना कीजिए।
सबने बर्फ राजा तक व राजा ने अपने मातहतों के माध्यम से अंतिम आदमी तक जैसा का तैसा पहुँचा दिया। किसी ने उसमें से कुछ नहीं लिया, सबने इमानदारी से पिघलते हिमखंड से केवल "हस्त प्रक्षालन" किया व आगे अग्रेषित कर दिया। कर संग्रह एवं वितरण में यही प्रक्रिया अपनाई जाती है। सब अपनी जवाबदेही इमानदारी से निभा रहे है, कोई भ्रष्टाचार नहीं केवल अपने पास आये बर्फ को आगे बढ़ाने में केवल हाथ गीले जरूर किये। फिर राजा हो या रंक सबने बहती गंगा में डुबकी लगाई है।" विडम्बना देखिये चुनाव दर चुनाव हमारे दावेदारों की दौलत में निरन्तर वृद्धि हो रही है।
हम प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कर रहे है, तो उसकी कीमत यह है कि वह अपने मूल स्वरूप व शुद्धता में बने रहे इसके तमाम ईमानदार प्रयास ही इसकी कीमत है। नगद राशि, सुविधा या वस्तु यदि मुफ्त में मिल रही है तो इसकी भरपाई निश्चित रूप से कोई न कोई कर रहा है। किसी दूसरे का हक मारकर ही हम मुफ्त का आनंद ले सकतें हैं।
हमें यह समझना होगा कि दुनिया में कुछ भी मुफ्त नहीं मिलता है किसी न किसी रूप में उसकी किमत अदा करना ही पड़ती है। किमत हम चुकाएं या कोई ओर, तो ही उसकी निरंतर उपलब्धता बनी रहती है। अन्यथा हमें हमेशा-हमेशा के लिए महरूम होना पड़ेगा। मुफ्तखोरी केवल भ्रम है, कोई अपने पास से नहीं देता है। बर्फ लेकर आगे बढ़ाने में सब गीले हाथों अपना हीत साध ही लेते हैं।
कन्हैयालाल लक्षकार-मनासा, नीमच से संपर्क: 9424098237, 9340839574