भोपाल। एक देश, एक संविधान, एक निशान से पूरे भारत के साथ प्रदेशवासी व कर्मचारी भी फख्र महसूस करते है, लेकिन मप्र में कर्मचारी राज्य सरकार की उपेक्षा पूर्ण नीति के चलते सदैव आर्थिक रूप से परेशान रहे है। मप्र तृतीय वर्ग शास कर्म संघ के प्रदेश उपाध्यक्ष कन्हैयालाल लक्षकार ने जारी प्रेस विज्ञप्ति में बताया कि केंद्रीय कर्मचारियों के मुकाबले राज्य कर्मचारियों का आर्थिक शोषण सभी वेतनमानों में बदस्तूर जारी है।
वेतनमानों के साथ मिलने वाले प्रासंगिक भत्तों से लगातार वंचित रखा गया है। यहां तक कि "गृह भाड़ा" भत्ता भी प्रदेश कर्मचारियों को आजादी से अब तक वर्षों बाद भी समान दर पर नहीं दिया गया है। केंद्र में बोनस भुगतान बदस्तूर जारी है, लेकिन विडंबना है कि प्रदेश में "चंद वर्षों" भुगतान कर इसे बंद कर दिया गया है। केंद्र में बीस वर्ष सेवाकाल पूर्ण होने पर पूर्ण पेंशन का प्रावधान है, इसके उलट प्रदेश में इसके लिये तैतीस वर्ष सेवाकाल अनिवार्य है। राज्य में वर्षों तक नियमित भर्ती नहीं की जाती है, कर्मी, संविदा के नाम पर शोषण किया जाता रहा है। केवल भर्ती नियमों में उम्र बढ़ा दी जाती है।
संविदा में नियुक्त साठ हजार कंप्यूटर ऑपरेटरों एवं कोरोना काल में भर्ती डाक्टर पैरामेडिकल स्टाफ से रोजगार छिनने की तैयारी परवान चढ़ रही है।वर्तमान में आरक्षण के चलते तैंतीस से पैंतालीस वर्ष उम्र के अभ्यर्थियों को नियुक्ति में प्रावधान है। पैंतालीस वर्षीय नियुक्ति वाले बांसठ वर्ष उम्र में सेवानिवृत होने पर महज सत्रह वर्ष ही नोकरी कर पायेंगे। फिर तैंतीस वर्ष सेवाकाल पर "पूर्ण पेंशन" का प्रावधान कैसे न्यायोचित माना जा रहा है! माननीयों को शपथ ग्रहण करते ही पेंशन के लिये पात्र माना गया है, चाहे कार्यकाल पांच वर्ष भी पूरा न हो।
केंद्र में कर्मचारियों के लिए जनवरी 2005 से अंशदायी पेंशन योजना लागू की गई थी, जिसे राज्य ने हाथों हाथ लागू किया गया, लेकिन प्रदेश में 1995 से 1998 तक नियुक्त शिक्षाकर्मियों को जो कालांतर में "अध्यापक व अब जुलाई 2018 से उच्च माध्यमिक, माध्यमिक व प्राथमिक शिक्षक के नाम से जाने जाते है", इससे वंचित रखा गया है। इनका नवीन शिक्षक संवर्ग में संविलियन करने के बजाय नियुक्ति दी गई है, ताकि पुरानी पेंशन पर ये दावा न कर सके। इन्हें अंशदायी पेंशन योजना में शामिल किया गया, हालाकि देशभर में इसका विरोध किया जा रहा है।
पुरानी पेंशन योजना की राष्ट्र व्यापी मांग बलवती होती जा रही है। डीए/डीआर वर्तमान में केंद्र व राज्य के "भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारियों को" सत्रह फीसदी तो "राज्य कर्मचारियों" को बारह फीसदी दिया जा रहा है। केंद्र ने सातवें वेतनमान से उत्पन्न देय एरियर को दो किश्तों में वर्ष 2018 तक भुगतान कर दिया था, लेकिन प्रदेश में इसकी तीन किश्तें की गई थी, जो विगत "मई माह" तक भुगतान होना थी। दुखद है कि अंतिम किश्त को रोककर उसके महज पच्चीस फीसदी भुगतान के आदेश दिये गये।
नवीन शिक्षक संवर्ग को छठे/सातवें वेतनमान का एरियर लंबित रखा गया है। कुल मिलाकर केंद्र के मुकाबले प्रदेश के कर्मचारी अपने समकक्षों से ओसत पंद्रह से बीस हजार रूपये प्रतिमाह आर्थिक नुकसान उठा रहे है। कर्मचारी वर्ग एक बुद्धिजीवी व संगठित मतदाता है जो कई बार परिणाम प्रभावित करता है। इस वर्ग की उपेक्षा कई बार राजनीतिक रूप से नुकसानदायक सिध्द हो चुकी है। केंद्र व राज्य कर्मचारियों के वेतन,भत्तों का अंतर पाटा जाना चाहिए। जन जीवन सामान्य होता जा रहा है, ऐसे में कोरोना के बहाने रोके गये स्वत्वों को भुगतान किया जाना चाहिए।
मप्र तृतीय वर्ग शास कर्म संघ विधानसभा उप चुनाव के चलते कर्मचारियों से अपील करता है कि "अपने संवैधानिक अधिकारों का उपयोग करते हुए निर्वाचन ड्यूटी के दौरान डाक मतपत्र/निर्वाचन ड्यूटी प्रमाण पत्र से निश्चित तौर पर शत प्रतिशत "विवेकपूर्ण मतदान करें।" साथ ही परिवार व मित्रों को भी शत-प्रतिशत मतदान हेतु प्रोत्साहित करें।