ग्वालियर। मध्य प्रदेश में ग्वालियर हाईकोर्ट के आदेश के बाद 17 प्रोफेसरों की भर्ती प्रक्रिया की जांच के लिए सीआइडी सक्रिय हुई है। सीआइडी ने जीवाजी विश्वविद्यालय के कुलसचिव को नोटिस जारी कर तीन दिन में नियुक्तियों का पूरा रिकार्ड मांगा है। जिससे आठ सप्ताह में जांच खत्म की जा सके। वहीं दूसरी ओर एक प्रोफेसर ने इस्तीफा भी दे दिया है, जिसे जेयू ने स्वीकार कर लिया है।
जीवाजी विश्वविद्यालय में गलत तरीके से हुई 17 प्रोफेसरों की नियुक्तियों के मामले में हाई कोर्ट की युगल पीठ ने सीआइडी को 8 सप्ताह में जांच खत्म करने के आदेश दिए हैं। इसके बाद सीआइडी सक्रिय हुई और जांच अधिकारी यशपाल सिंह चौहान ने नोटिस जारी कर रिकार्ड मांगा है। वहीं प्रो. सुविज्ञा अवस्थी ने इस्तीफा दे दिया, जिसे जेयू ने स्वीकार लिया। इनका नाम भी इन 17 प्रोफेसरों की नियुक्ति की शिकायत में शामिल था। यह नियुक्ति प्रबंध अध्ययन शाला में हुई थी। गौरतलब है कि पूर्व कार्य परिषद सदस्य राजेन्द्र सिंह यादव की शिकायत पर इस मामले की जांच शुरू हुई है।
CID ने मांगी जानकारी
चयन के दौरान 17 प्रोफेसरों ने अपनी योग्यता संबंधी दस्तावेज पेश किए थे, उसकी सत्यापित प्रतियां उपलब्ध कराई जाएं। अध्यापन कार्य, अनुभव, शोध कार्य, सेमिनार, रिसर्च पेपर जो आवेदन के साथ संलग्न किए थे।अभ्यर्थियों के संदर्भ में एपीआई स्कोर की गणना की सत्यापित प्रति प्रदान की जाए। भर्ती के समय जो एपीआई स्कोर की गणना अपनाई थी, वह देनी होगी। विश्वविद्यालय ने प्रोफेसरों के चयन के लिए समिति का गठन किया था। विषयवार गठन की प्रक्रिया की सत्यापित कॉपी। सीआइडी से जब हाई कोर्ट ने जवाब मांगा तो उनकी तरफ से लिखकर दिया गया कि जीवाजी विश्वविद्यालय को 12 पत्र लिखे जा चुके हैं, लेकिन रिकार्ड उपलब्ध नहीं कराया गया है। हाई कोर्ट का आदेश आने के बाद जेयू की परेशानी बढ़ गई है।
जीवाजी विश्वविद्यालय में इसलिए मची खलबली
जीवाजी विश्वविद्यालय में शैक्षणिक सत्र 2011 से 2013 के बीच 17 प्रोफेसर, एसोसिएट प्रोफेसर व असिस्टेंट प्रोफेसरों की नियुक्तियां की गईं थी। विधि विभाग में 5, फार्मेसी में 5, बॉटनी में 3, मैनेजमेंट में 2, पर्यावरण विज्ञान में 1, पर्यावरण रसायन में 1 नियुक्ति हुई थी। इन नियुक्तियों में योग्यता व नियमों का ध्यान नहीं रखा गया था। गलत तरीके से नियुक्ति करने की शिकायत सरकार के पास की गई, लेकिन कोई जांच नहीं कराई गई। कार्य परिषद में सीबीआई व सीआइडी से जांच का प्रस्ताव पारित किया गया था। मामला सीआइडी को भेजा गया, लेकिन सीआइडी जांच में भी कोई प्रोग्रेस नहीं थी।